श्री गणेश उपासना | Shri Ganesh Upasana

Shri Ganesh Upasana (Mantra, Stotra, Kavach): हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश को एक विशेष स्थान प्राप्त है। इन्हें प्रथम पूज्य माना जाता है, इसलिए किसी भी हवन, यज्ञ, पूजन, धार्मिक उत्सव या विवाहोत्सव इत्यादि में गणेश पूजन सबसे पहले होता है, जिससे कि सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन्न हो जाएँ।

सम्पूर्ण भारत में गणेशोत्सव ( गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक ) बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, इन दिनों में गणेश जी की विशेष पूजा व आराधना की जाती है। इसलिए श्री गणेश जी से संबन्धित पूजा विधि, कथाएँ, स्तोत्र, मंत्र, कवच, आरती, भजन व चालीसा का एक संग्रह तैयार किया गया है, जिससे भक्तजन अपने आराध्य श्री गणपति को प्रसन्न करके मनवांछित फल प्राप्त करें।

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सम्पूर्ण श्री गणेश पूजा उपासना

श्री गणेश के ३२ मंगलकारी स्वरूप

अलग-अलग युगों में श्री गणेश के अलग-अलग अवतारों ने संसार के संकट का नाश किया। शास्त्रों में वर्णित है भगवान श्री गणेश के ३२ मंगलकारी स्वरूप-

  • श्री बाल गणपति - छ: भुजाओं और लाल रंग का शरीर।
  • श्री तरुण गणपति - आठ भुजाओं वाला रक्तवर्ण शरीर।
  • श्री भक्त गणपति - चार भुजाओं वाला सफेद रंग का शरीर।
  • श्री वीर गणपति - दस भुजाओं वाला रक्तवर्ण शरीर।
  • श्री शक्ति गणपति - चार भुजाओं वाला सिंदूरी रंग का शरीर।
  • श्री द्विज गणपति - चार भुजाधारी शुभ्रवर्ण शरीर।
  • श्री सिद्धि गणपति - छ: भुजाधारी पिंगल वर्ण शरीर।
  • श्री विघ्न गणपति - दस भुजाधारी सुनहरी शरीर।
  • श्री उच्चिष्ठ गणपति - चार भुजाधारी नीले रंग का शरीर।
  • श्री हेरंब गणपति - आठ भुजाधारी गौर वर्ण शरीर।
  • श्री उद्ध गणपति - छ: भुजाधारी कनक यानि सोने के रंग का शरीर।
  • श्री क्षिप्र गणपति - छ: भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर।
  • श्री लक्ष्मी गणपति - आठ भुजाधारी गौर वर्ण शरीर।
  • श्री विजय गणपति - चार भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर।
  • श्री महागणपति - आठ भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर।
  • श्री नृत्त गणपति - छ: भुजाधारी रक्त वर्ण शरीर।
  • श्री एकाक्षर गणपति - चार भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर।
  • श्री हरिद्रा गणपति - छ: भुजाधारी पीले रंग का शरीर।
  • श्री त्र्यैक्ष गणपति - सुनहरे शरीर, तीन नेत्रों वाले चार भुजाधारी।
  • श्री वर गणपति - छ: भुजाधारी रक्तवर्ण शरीर।
  • श्री ढुण्डि गणपति - चार भुजाधारी रक्तवर्णी शरीर।
  • श्री क्षिप्र प्रसाद गणपति - छ: भुजाधारी रक्ववर्णी, त्रिनेत्र धारी।
  • श्री ऋण मोचन गणपति - चार भुजाधारी लालवस्त्र धारी।
  • श्री एकदंत गणपति - छ: भुजाधारी श्याम वर्ण शरीरधारी।
  • श्री सृष्टि गणपति - चार भुजाधारी, मूषक पर सवार रक्तवर्णी शरीरधारी।
  • श्री द्विमुख गणपति - पीले वर्ण के चार भुजाधारी और दो मुख वाले।
  • श्री उद्दण्ड गणपति - बारह भुजाधारी रक्तवर्णी शरीर वाले, हाथ में कुमुदनी और अमृत का पात्र होता है।
  • श्री दुर्गा गणपति - आठ भुजाधारी रक्तवर्णी और लाल वस्त्र पहने हुए।
  • श्री त्रिमुख गणपति - तीन मुख वाले, छ: भुजाधारी, रक्तवर्ण शरीरधारी।
  • श्री योग गणपति - योगमुद्रा में विराजित, नीले वस्त्र पहने, चार भुजाधारी।
  • श्री सिंह गणपति - श्वेत वर्णी आठ भुजाधारी, सिंह के मुख और हाथी की सूंड वाले।
  • श्री संकष्ट हरण गणपति - चार भुजाधारी, रक्तवर्णी शरीर, हीरा जडि़त मुकूट पहने।

श्री गणेश जी के ध्यान मंत्र

बालगणपति
क्रोडं तातस्य गच्छन विशदबिसधिया शावकं
शीतभानोराकर्षन बालवैश्वानरनिशितशिखारोचिषा तप्यमान: ।
गंगांम्भ: पातुमिच्छन भुजगपतिफणाफूत्कृतैर्दूयमानो
मात्रा सम्बोध्य नीतो दुरितमपनयेद बालवेषो गणेश: ॥

अर्थबालक गणेश जी अपने पिता शंकर जी के मस्तक पर सुशोभित बाल चन्द्र कला को कमल नाल समझकर उसे खींच लाने के लिये उनकी गोद में चढ़कर ऊपर लपके लेकिन तृतीय नेत्र से निकली लपटों की आँच लगी तब जटाजूट में बहने वाली गंगा का जल पीने को बढ़े तो सर्प फुफकार उठा। इस फुफकार से घबराए हुए गणेश जी को माता पार्वती बहला-फुसलाकर अपने साथ ले जाती हैं। ऎसे बाल गणेश हमारे सभी पाप-ताप का निवारण करें।

गणेश
सिन्दूरवर्णं द्विभुजं गणेशं लम्बोदरं पद्मदले निविष्टम ।
ब्रह्मादिदेवै: परिसेव्यमानं सिद्धैर्युतं तं प्रणमामि देवम ॥

अर्थ भगवान गणेश की अंगकान्ति सिन्दूर के समान है, उनकी दो भुजाएँ हैं, वे लम्बोदर हैं और कमल दल पर विराजमान हैं। ब्रह्मा आदि देवता उनकी सेवा में लगे हैं और वे सिद्धसमुदाय से युक्त हैं। ऎसे श्रीगणेशपतिदेव को मैं प्रणाम करता/करती हूँ।

गणपति
सिन्दूराभं त्रिनेत्रं पृथुतरजठरं हस्तपद्मैर्दधानं दन्तं
पाशांकुशेष्टान्युरुकरविलसद बीजपूराभिरामम ।
बालेन्दुद्योतमौलिं करिपतिवदनं दानपूरार्द्रगण्डं
भोगीन्द्राबद्धभूषं भजत गणपतिं रक्तवस्त्रांगरागम ॥

अर्थजो सिन्दूर की सी अंगकान्ति धारण करने वाले तथा त्रिनेत्रधारी हैं, जिनका उदर बहुत विशाल है, जो अपने चार हस्त कमलों में – दन्त, पाश, अंकुश तथा वर मुद्रा धारण करते हैं, जिनके विशाल शुण्ड – दण्ड में बीजपूर अर्थात बिजौरा नींबू या अनार शोभा दे रहा है, जिनका मस्तक बालचन्द्र से दीप्तिमान व गण्डस्थल मद के प्रवाह से आर्द्र है, नागराज को जिन्होने भूषण के रुप में धारण किया हुआ है, जो लाल वस्त्र व अरुण अंगराग से सुशोभित है, उन गजेन्द्र-वदन गणपति का भजन करो।

गजवक्त्र
अविरलमदधाराधौतकुम्भ: शरण्य:
फणिवरवृतगात्र: सिद्धसाध्यादिवन्द्य: ।
त्रिभुवनजनविघ्नध्वान्तविध्वंसदक्षो
वितरतु गजवक्त्र: संततं मंगलं व: ॥

अर्थजिनका कुंभस्थल निरंतर बहने वाली मदधारा से धुला हुआ है, जो सब के शरण दाता हैं, जिनके शरीर में बड़े-बड़े सर्प लिपटे रहते हैं, जो सिद्ध और साध्य आदि देवताओं के वन्दनीय हैं और तीनों लोकों के निवासी जनों के विघ्नान्धकार का विध्वंस करने में दक्ष हैं, वे गजानन गणेश आप लोगों को सदा मंगल प्रदान करें।

महागणपति
ओंकारसंनिभमिभाननमिन्दुभालं
मुक्ताग्रबिन्दुममलद्युतिमेकदन्तम ।
लम्बोदरं कलचतुर्भुजमादिदेवं
ध्यायेन्महागणपतिं मतिसिद्धिकान्तम ॥

अर्थओंकार के समान, हाथी के समान मुख वाले, जिनके ललाट पर चंद्रमा और बिन्दुतुल्य मुक्ता विराजमान हैं, जो बड़े तेजस्वी और एक दाँत वाले हैं, जिनका पेट लंबा हैं, जिनकी चार सुंदर भुजाएँ हैं। उन बुद्धि और सिद्धि के स्वामी आदि देव गणेश जी का हम ध्यान करते हैं।

विघ्नेश्वर
विघ्नध्वान्तनिवारणैकतरणिर्विघ्नाटवीहव्यवाड्
विघ्नव्यालकुलाभिमानगरुडो विघ्नेभपंचानन: ।
विघ्नोत्तुंगगिरिप्रभेदनपविर्विघ्नाम्बुधौ वाडवो
विघ्नाघौघघनप्रचण्डपवनो विघ्नेश्वर: पातु व: ॥

अर्थ वे विघ्नेश्वर लोगों की रक्षा करें जो विघ्नान्धकार का निवारण करने के लिये एकमात्र सूर्य हैं। विघ्नरुपी विपिन को जलाकर भस्म करने के लिये दावानाल रुप हैं। विघ्नरुपी सर्पकुल के अभिमान को कुचल डालने के लिये गरुड़ हैं। विघ्नरुपी गजराज को पछाड़ने के लिये सिंह हैं। विघ्नों के ऊँचे पर्वत का भेदन करने के लिये वज्र हैं। विघ्न समुद्र के लिये वड़वानल हैं तथा विघ्न व पाप समूहरुपी मेघों की घटा को छिन्न-भिन्न करने के लिये प्रचण्ड पवन हैं।

एकाक्षरगणपति
रक्तो रक्तांगरागांशुककुसुमयुतस्तुन्दिलश्चन्द्रमौलि-
र्नेत्रेर्युक्तस्त्रिभिर्वामनकरचरणो बीजपूरान्तनास: ।
हस्ताग्राक्लृप्तपाशांकुशरदवरदो नागवक्त्रोsहिभूषो
देव: पद्मासनो वो भवतु नतसुरो भूतये विघ्नराज: ॥

अर्थवे विघ्ननाशक श्रीगणपति शरीर से रक्त वर्ण के हैं। उन्होने लाल रंग के ही अंगराग, वस्त्र और पुष्पहार धारण कर रखे हैं, वे लम्बोदर हैं। उनके मस्तक पर चन्द्राकार मुकुट है, उनके तीन नेत्र हैं तथा छोटे-छोटे हाथ – पैर हैं, उन्होंणे शुण्डाग्र भाग में बीजपूर अर्थात बिजौरा नींबू ले रखा है। उनके हस्ताग्र भाग में पाश, अंकुश, दन्त तथा मुद्रा है शोभायमान है, उनका मुख गज यानि हाथी के समान है और सर्पमय आभूषण धारण किये हुए हैं। वे कमल के आसन पर विराजमान हैं। सभी देवता उनके चरणों में नतमस्तक हैं, ऎसे विघ्नराजदेव लोगों के लिये कल्याणकारी हों।

हेरम्बगणपति
मुक्ताकांचननीलकुन्दघुसृणच्छायैस्त्रिनेत्रान्वितै-
र्नागास्यैर्हरिवाहनं शशिधरं हेरम्बमर्कप्रभम ।
दृप्तं दानमभीतिमोदकरदान टंकं शिरोsक्षात्मिकां मालां
मुद्गरमंकुशं त्रिशिखिकं दोर्भिर्दधानं भजे ॥

अर्थ हेरम्बगणपति पाँच हस्तिमुखों से युक्त हैं। चार हस्तिमुख चारों ओर है तो एक ऊर्ध्व दिशा में हैं। उनका ऊर्ध्व हस्तिमुख मुक्तावर्ण का है। दूसरे चार हस्तिमुख क्रमश: कांचन, नील, कुंद अर्थात श्वेत और कुंकुम वर्ण के हैं। प्रत्येक हस्तिमुख तीन नेत्रों वाला है। वे सिंहवाहन हैं। उनके कपाल में चन्द्रिका विराजित है और देह की कान्ति सूर्य के समान प्रभायुक्त है। वे बलदृप्त हैं और अपनी दस भुजाओं में वर और अभयमुद्रा तथा क्रमश: लड्डू, दन्त, टंक, सिर, अक्षमाला, मुद्गर, अंकुश और त्रिशूल धारण करते हैं। मैं उन भगवान हेरम्ब का भजन करता/करती हूँ।

सिंहगणपति
वीणां कल्पलतामरिं च वरदं दक्षे विधत्ते करै-
र्वामे तामरसं च रत्नकलशं सन्मंजरीं चाभयम ।
शुण्डादण्डलसन्मृगेन्द्रवदन: शंखेन्दुगौर: शुभो
दीव्यद्रत्ननिभांशुको गणपति: पायादपायात स न: ॥

अर्थ जो दायें हाथों में वीणा, कल्पलता, चक्र तथा मुद्रा धारण करते हैं और बाएँ हाथों में कमल, रत्नकलश, सुंदर धान्य मंजरी व अभय मुद्रा धारण किए हुए हैं, जिनका सिंह के समान मुख शुण्डादण्द से सुशोभित है, जो शंख और चन्द्रमा के समान गौरवर्ण हैं तथा जिनका वस्त्र दिव्य रत्नों के समान दीप्तिमान हैं, वे शुभस्वरुप गणपति हमें विनाश से बचायें।