समरथ को नहीं दोष गुसाईं सूक्ति पर निबंध
समरथ को नहीं दोष गुसाईं सूक्ति पर निबंध
संकेत बिंदु- (1) तुलसीदास की चौपाई का अर्थ (2) समर्थवान और तेजस्वी का अर्थ (3) समर्थवान और धनवान में सर्वगुण (4) ऐतिहासिक उदाहरण (5) उपसंहार।
तुलसीदास की चौपाई का अर्थ
देवर्षि नारद पर्वतराज हिमवान् और उनकी पत्नी को बता रहे हैं कि तुम्हारी पुत्री पार्वती का पति गुणहीन, मानहीन, माता-पिता-विहीन, उदासीन, लापरवाह, योगी, जटाधारी, निष्काम हृदय, नंगा और अमंगल वेशधारी होगा। ये गुण शिवजी में हैं। यदि शिवजी के साथ पार्वती का विवाह हो जाए तो शिवजी के इन दोषों को लोग गुणों के समान कहेंगे। क्योंकि 'समरथ को नहिं दोष गोसाईं।' अर्थात् समर्थवान् को दोष नहीं लगता।
'समरथ को नहिं दोष गोसाई' चौपाई की यह अर्धाली अपूर्ण है। कारण, 'गुसाईं' यहाँ सम्बोधन नहीं, समरथ उपमेय का उपमान है। यहाँ गुसाईं का अर्थ है हरि। इसलिए इसके आगे के तीन उपमानों के बिना यह पंक्ति अपंग है। पूरी चौपाई इस प्रकार है
समरथ को नहिं दोष गोसाईं। रवि पावक सुरसरि की नाई।
ऊपर भी गोस्वामी तुलसीदास जी इन चारों उपमानों से दोष बताते हैं-
(1) जो अहिसेज सयन हरि करहीं।
(2-3) भानु कृपानु सर्व रस खाहीं
(4) सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई।
अब जरा शिवजी से चारों की तुलना भी करके देख लीजिए-
(1) हरि शेषनाग की शैया पर शयन करते हैं, वैसे ही शिवजी शरीर पर सर्प लपेटे रहते हैं।
(2-3) भानु-कृषानु अर्थात् सूर्य और अग्नि सर्व रस (जल) भक्षी हैं, वैसे ही शिवजी भांग, धतूरा आदि मादक द्रव्यों का सेवन करते हैं। शिवजी का तीसरा नेत्र अग्निस्वरूप है ही।
(4) सुरसरि शुभ और अशुभ, सब प्रकार के जल को बहाती है तो शिवजी नग्न रहते हैं।
भागवत में जब राजा परीक्षित द्वारा इसी प्रकार का प्रश्न किया गया तो श्री शुकदेव ने उत्तर में कहा- 'तेजांसि नदोषाय।' जो तेजवान् है, वह दोषों से रहित है। यही बात पंचतंत्र में विष्णु शर्मा ने कही है- 'तेजो यस्य विराजते स बलवान् स्थूलेषुकः प्रत्ययः।' अर्थात् जो ओजस्वी है, वही बलवान् है । शरीर का भारी-भरकम होना कुछ काम नहीं देता। यहाँ तेज का अर्थ सामर्थ्य ही है।
समर्थवान और तेजस्वी का अर्थ
अब प्रश्न उठता है समर्थ या तेजवान् कौन है ? जिसके पास शारीरिक बल है वह समर्थ है, जिसके पास धन की शक्ति हो वह समर्थवान् है, जिसका दिमाग तेज हो वह समर्थ है, जिसके पास अधिकार हो वह भी समर्थ है, जिसके पास सत्ता हो वह परम समर्थ है ? शरीर से बलवान् पहलवान् होगा या समाज-द्रोही (गुंडा), समाज में इन दोनों के कुकृत्यों की चर्चा करते डरते हैं। इनके दोष में भी गुण ढूँढ़ा जाता है। इनके समाज-विरोधी कार्य में भी वीरता के दर्शन करते हैं। आज तो पुलिस भी इन पर एकाएक हाथ डालने से डरती है।
समर्थवान और धनवान में सर्वगुण
जो धनवान् है, लक्ष्मी जिसके चरण दबाती है, जमींदार, सेठ-साहूकार है; फैक्ट्री, मिल या उत्पादक इकाइयों का मालिक है, उसके सौ कत्ल भी माफ हैं। उसके विरुद्ध बोलते जबान लड़खड़ाती है। उनके दोष भी गुण हैं। जैसे मांस को आकाश में पक्षी, भूमि पर हिंसक जीव और जल में मगरमच्छ खा जाते हैं, ऐसे ही ये मानव-मांस के भक्षक हैं, पर समाज में सबसे प्रतिष्ठित यही हैं। कारण, 'सर्वे गुणाः काञ्चनमाश्रयन्ति।' संसार के सभी गुण सुवर्ण में बसते हैं।
बुद्धिमान् की शक्ति शरीर और धन बल से बड़ी है। बुद्धिमान् शस्त्रहीन चाणक्य ने सशत्र नन्दवंश का नाश कर दिया। इन्दिरा गाँधी ने राजनारायण को तलवार बनाकर जनता सरकार को गिरवा दिया। लोग चाणक्य और इन्दिरा गाँधी की जय-जयकार करते हैं। राम और लक्ष्मण मात्र दो भाइयों ने स्वर्णमयी लंका के स्वामी रावण को धूल चटा दी। कारण, बुद्धिमान् की भुजाएँ बड़ी लम्बी होती हैं जिनसे वह दूर तक वार करता है । (दीर्धी बुद्धिमतो बाहू याभ्यां हिंसति दूरतः)
जिसके पास अधिकार है, उस अधिकारी के दोष को कौन देखता है ? पुलिस वाले पता नहीं कितने अत्याचार-अनाचार करते हैं, किन्तु कोई उन्हें टोकता है ? नहीं, उलटा वे उसके अलंकरण के पात्र होते हैं। आज खरीद-अधिकारी लाखों का गोलमाल करके भी सत्यवादी हरिश्चन्द हैं। सभी उनके गुणगान करते हैं। बॉस की चरित्रहीनता उसके अधिकार तले दबकर साँसे भरती है। चूं-चपड़ की तो 'ट्रांसफर' करवा दिया। मिल गया न 'समरथ' को छेड़ने का मजा।
सत्ता जिसके पास है, उसके सभी दोष गुणों में बदल जाते हैं। राजनीति उसकी शोभा है और कूटनीति उसका अलंकरण। विपक्ष का गला घोंट दे, अपने मंत्रीगण को कठपुतली की तरह नचाये, हजारों लोगों को मरवा दे, लाखों को जेल में डलवा दे, फिर भी वह पूजनीय है, श्रद्धेय है। आपत्-काल में सत्ता द्वारा देश को जेलखाना बनाने वाली इन्दिरा गाँधी को उस समय की ही जनता ने 'इन्दिरा इज इण्डिया' कह दिया। राष्ट्र की माता मानकर उसकी पूजा की। यह है सत्ता का जादू जो दोषों में भी गुण ढूँढ़ता है, बुराई में भी भलाई दीप्त होती है। उसके पड्यंत्र को कूटनीति की संज्ञा से अलंकृत किया जाता है।
ऐतिहासिक उदाहरण
'समरथ को नहिं दोष गोसाई' के कुछ रोंगटे खड़े कर देने वाले उदाहरणों के बिना यह निबन्ध पूर्ण नहीं होगा।
अकबर बादशाह ने हिन्दुओं पर अनगिनत अत्याचार-अनाचार किए, फिर भी वह 'ग्रेट एम्प्रर' की उपाधि से इतिहास में अलंकृत हुआ। सहस्रों शिल्पियों के हाथ कटवाने वाला शाहजहाँ ताजमहल का पुनः निर्माता बनकर विश्व के सात आश्चर्यों में से एक का स्वामी होने के कारण विश्व-पुरुष बना।
अंग्रेजों की कूटनीति और क्रूरता की लोम हर्षकता से विश्व के अनेक गुलाम राष्ट्र पद दलित थे, पर अंग्रेजों का गुणगान इन शब्दों में होता था, 'ब्रिटिश साम्राज्य में सूर्य नहीं डूबता।' उनके 'लॉ एण्ड आर्डर' की तारीफ करते दास देशों का कण्ठ नहीं सूखता था। कांग्रेस के सन् 1942 के आन्दोलन की हिंसा से भारत की आत्मा भी काँप उठी थी। 'मेरी लाश पर पाकिस्तान का निर्माण होगा' का उद्घोष महात्मा गाँधी ने ही किया था। पाकिस्तान बन गया, पर गाँधी जीवित रहकर सत्य और अहिंसा के देवता बने रहे, विश्ववंद्य हुए।
गाँधी जी परम देशभक्त थे। भारत सरकार, कांग्रेस पार्टी और भारत के मनीषियों ने दुश्मन पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपया लौटाने से इन्कार कर दिया, क्योंकि उसने भारत का तीन अरब रुपया देना था, पर गाँधी जी ने आमरण अनशन करके भारत सरकार को पाकिस्तान रूपी सर्प को 55 करोड़ रुपए रूपी दूध पिलाने को मजबूर किया। फिर भी गाँधी जी राष्ट्रपिता कहलाए।
जवाहरलाल नेहरू ने लोकसभा में एक बिल पास करवाया- जब तक भारत का एक भी प्रांत हिन्दी के विरुद्ध होगा, हिन्दी राजभाषा नहीं बन सकती। बहुमत की अवहेलना करने वाले श्री नेहरू लोकतंत्र के अधिष्ठाता कहलाए।
प्रान्तों में मनचाहे मुख्यमंत्री थोपने वाली, अधिनायक की तरह मुख्यमंत्रियों को पदच्युत करने वाली तथा अपनी पार्टी में आजीवन चुनाव न कराने वाली इन्दिरा जी लोकतंत्र की मसीहा कहलाई।
उपसंहार
इसलिए तुलसी ने सच ही कहा है, सामर्थ्यवान् के दोषों में भी गुण नजर आते हैं। उसके कुकृत्यों में भी समाज की भलाई के दर्शन होते हैं तथा उनके देशद्रोहत्व को भी देशभक्ति से अलंकृत किया जाता है, क्योंकि समर्थ होने से दोष उन्हें स्पर्श नहीं कर पाते।