तुलसी असमय के सखा धीरज, धर्म, विवेक पर निबंध

तुलसी असमय के सखा धीरज, धर्म, विवेक सूक्ति पर निबंध

संकेत बिंदु– (1) विपत्ति के समय धैर्य, धर्म और विवेक के काम (2) धैर्य मन का गुण और शक्ति (3) असमय में धीरज मित्र (4) विवेक असमय के कारणों का निवारण (5) उपसंहार।

विपत्ति के समय धैर्य, धर्म और विवेक के काम

गोस्वामी तुलसीदास जी का मत है कि धीरज, धरम और विवेक बुरे समय के मित्र हैं। अत: विपत्ति पड़ने पर मनुष्य को धैर्य, धर्म और विवेक से काम लेना चाहिए। प्रकृति-सत्य भी यही है कि मन की शान्ति, कर्तव्य के प्रति निष्ठा और विवेक ही दुर्दिन में मित्र होते हैं। दूसरी ओर, मानव के धैर्य, धर्म और विवेक की परीक्षा भी असमय में ही होती है।

असमय क्या है ? विपत्तिकाल, कुसमय, बुरा वक्त, दुर्दिन, अनुपयुक्त समय या स्थिति ही असमय है। असमय तो वस्तुतः मनुष्य के लिए वरदान है। कारण, यह अनुभव प्राप्त करने और आत्म-निरीक्षण करने का श्रेष्ठकाल है। मनःस्थिति की सच्ची परख का समय है। शायद इसीलिए शैक्सपीयर ने कहा है 'Sweet are the uses of adversity' अर्थात् विपत्ति के लाभ मधुर होते हैं। रहीम ने भी कहा–

रहिमन विपदा हूँ भली, जो थोड़े दिन होय।
हित अनहित या जगत में जानि-परत सब कोय॥

पर असमय भयावह भी होता है। इसमें सुख-शान्ति काफूर हो जाती है। मन भी उद्विग्न, विकल, विचलित और व्यग्र रहता है। धीरज, धर्म, मित्र, नारी और विवेक की तो बात ही क्या मानव की अपनी छाया भी साथ छोड़ देती है। आतिश का शेर है–

होता नहीं है कोई बुरे वक्त का शरीक।
पत्ते भी भागते हैं, खिंजा में शजर से दूर॥ (शजरवृक्ष)

इतना ही नहीं असमय में तो 'गए थे नमाज पढ़ने, रोजे गले पड़ गए' वाली स्थिति हो जाती है।

धैर्य मन का गुण और शक्ति

धैर्य मन का वह गुण है या शक्ति है जिसकी सहायता से मनुष्य असमय पड़ने पर विचलित नहीं होता, व्यग्र नहीं होता। घबराहट या विकलता उसे स्पर्श नहीं करती। वह शान्ति से विपत्ति टलने की प्रतीक्षा करता है। गाँधी जी जलयान में विदेश जा रहे थे। समुद्र में तूफान आया। सब यात्री साक्षात् मृत्यु को देख रोने-पीटने लगे पर गाँधी जी स्थिर चित्त रहे। तूफान चला गया, पर छोड़ गया विदेशियों पर गाँधी का प्रभाव।

नत्थूराम गोडसे की फाँसी का समय आया। गार्ड ने तैयारी का आदेश दिया। वे स्नान से पूर्व दाढ़ी बनाने लगे तो गार्ड ने कहा, 'अब इसका क्या लाभ?' गोडसे ने कहा, 'यह मेरा दैनिक कर्म है, इसे न करके धैर्य से विचलित हो जाऊँगा।' श्रीराम ने सीता की खोज के लिए धैर्य से काम लिया। पांडव युद्ध टालने के लिए संधि-प्रस्तावों रूपी धैर्य को प्रस्तुत करते रहे। मीरा ने हँसते-हँसते विष का प्याला पी लिया और उसके धीरज ने उसे अमर कर दिया।

असमय में धीरज मित्र

वाल्मीकि का कहना है कि “शोक में, आर्थिक संकट में अथवा प्राणान्तकारी भय उपस्थित होने पर जो अपनी बुद्धि से दुःख निवारण के उपाय का विचार करते हुए धैर्य धारण करता है, उसे कष्ट नहीं उठाना पड़ता।” ठीक भी है– Haste makes waste 'हड़बड़ी में गड़बड़ी' स्वाभाविक है। “झटपटक की घानी, आधा तेल आधा पानी।” उतावला घोड़ा और बावला सवार गिरते हैं। गरम-गरम चाय मुँह को जला देती है। इसलिए तुलसी ने ठीक ही कहा है असमय में धीरज मित्र है, साथ निबाहने वाला सिद्ध सखा है।

धर्म क्या है ? कर्तव्यों और सिद्धान्तों का पालन। मान्यताओं, आस्थाओं और विश्वास से विचलित न होना धर्म है। वेदव्यास जी कहते हैं, 'धर्मो रक्षति रक्षितः' अर्थात् हमसे रक्षित धर्म ही हमारी रक्षा करता है। डॉ. राधाकृष्णन् कहते हैं, “धर्म में ही जीवन शक्ति है और धर्म की दृष्टि ही जीवन-दृष्टि है।” “धर्म जीवन-शक्ति इसलिए है कि धर्म से मानवचरित्र में अटल बल प्राप्त होता है” -स्वामी रामतीर्थ।

चरित्र के इस अटल बल रूपी धर्म के कारण बनवास के असमय में भी श्रीराम रावण को पराजित कर सके। पांडव अपने अज्ञातवास के घोर असमय को विवेक से काट सके। शिवाजी औरंगजेब की कठोर कारावास से निकल पाए। सुभाष सशस्त्र सैनिक-आक्रमण करने में सफल हुए। आपतकाल में लाखों देशभक्त इन्दिरा के अत्याचार के सम्मुख झुके नहीं, टूटे नहीं, फलतः विजय को वरण कर सके।

विवेक क्या है? सत्य का ज्ञान विवेक है सद-विचार की योग्यता विवेक है।अन्त:करण की वह शक्ति जिसमें मनुष्य यह समझता है कि कौन-सा काम अच्छा है या बुरा अथवा करने योग्य है या नहीं, विवेक है।

विवेक असमय के कारणों का निवारण

विवेक असमय के कारणों का निवारण करता है। प्रतिकूल स्थिति को अनुकूल बनाता है। कष्टदायक तत्त्वों को लाभप्रद स्थिति में परिणत करता है। हारी हुई बाजी को जिताता है। कंटक-मुकुट को पुष्प-मुकुट में बदलता है। श्रीराम विवेक से काम न लेते तो सीता जी की प्राप्ति असम्भव थी। पांडव यदि विवेक से काम न लेते विजयश्री उनका चरण न चूमती। शिवाजी यदि विवेक से काम न लेते तो जीवन-भर जेल में सड़कर मर जाते।

इतिहास साक्षी है। कुसमय पड़ा इन्दिरा गाँधी पर। वे हारी, उनकी कांग्रेस हारी। पार्टी के दो टुकड़े हो गए। उन पर अनगिनत इलजाम लगने लगे। अभियोगों से वे अपमानित होने लगीं। उन्होंने तुलसी के वचन का पालन किया।धीरज, धर्म, विवेक को सखा बनाया। धैर्य से दुर्दिन का सामना किया। अपने धर्म अर्थात् कर्तव्य से विचलित नहीं हुई, विवेक को साथी चुना। इन्दिरा जी विपत्तिरूपी अग्नि-परीक्षा में सफल हुईं। 'असमय के सखा धीरज धर्म विवेक' ने इन्दिरा जी को जमीन से उठाकर पुन: भारत के प्रधानमन्त्री के सिंहासन पर बिठा दिया। अनादर और अपमान के स्थान पर सुयश-सुकीर्ति की सुगंधित माला पहनाई।

उपसंहार

अतः विपत्ति पड़ने पर, असमय आने पर कभी भयभीत नहीं होना चाहिए, अपितु, धैर्य, धर्म और विवेक रूपी सखाओं की सहायता से विपत्ति-सागर को पार करने का प्रयत्न करना चाहिए।

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