नैतिकता और समाज पर निबंध
नैतिकता और समाज / नैतिकता का गिरता स्तर नैतिक कर्तव्य और मानवता /नैतिकता का स्तर और हम
संकेत बिंदु- (1) नैतिक पतन की पराकाष्ठा (2) देश की अस्मिता का सौदा (3) स्वार्थ के सामने नैतिकता मूल्यहीन (4) भय और आतंक नैतिक पतन की निशानी (5) उपसंहार।
नैतिक पतन की पराकाष्ठा
उन्नति और प्रगति के इस दौर में एक ओर हमने बहुत कुछ खोया है और दूसरी ओर बहुत कम पाया है। हमने भौतिकता के माध्यम से शिखरों को छू लिया लेकिन हम पतन की ओर ऐसे गिरे कि नैतिकता पतन की पराकाष्ठा की ओर हमने अपना ध्यान दिया ही नहीं। सम्भव है कि हम भविष्य में इन्सान भी न रह पायें और हैवान से भी बदतर होते चले जायें।
हमारे देश के धर्मग्रन्थ वेद से एक उक्ति आती है - ‘मनुर्भव: दैवं जनय’ जिसका अर्थ हुआ कि “हे मनुष्य तू मानव बन और दिव्य सन्तान को उत्पन्न कर कि तेरी आने वाली सन्तान चरित्रवान् और दिव्यतापूर्ण हो, दानव नहीं।” आज मनुष्य ने अपना परिष्कार और परिमार्जन त्याग दिया है, आत्मावलोकन छोड़ दिया है, साथ ही संस्कार आधारित शिक्षा का त्याग कर अपनी नैतिकता को एक खूटी पर टाँग दिया है। आज मानव अपनी नैतिकता के सार को गिराकर स्वयं किलकारी मारकर हँस रहा है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है।
देश की अस्मिता का सौदा
समाज के अधिकांश प्राणी अपना नैतिक कर्त्तव्य भूलकर मानवता के स्थान पर दानवता का परचम लहराने में अपनी शान समझते हैं। यदि देखा जाये तो आज देश के नेताओं के चरित्र का पतन हो चुका है और देश के नेता ही अपने नैतिक मूल्यों से इतना गिर चुके हैं कि वह देश की अस्मिता का भी सौदा करने में पीछे नहीं है, यदि ऐसा नहीं है तो हर रोज नये-नये घोटाले क्या सन्देश लेकर आते हैं ? नैतिकता का स्तर समाज में इतना गिर चुका है कि देश के शहीदों के पार्थिव शरीरों को उनके परिजनों तक सौंपने के लिए जिन ताबूतों (लकड़ी के बक्से) को व्यापारियों से खरीदा जाता है उनमें में दलाली की बू आती है, ताबूत खरीद में दलाली नेता ने खायी या अधिकारी ने यह विवाद का विषय नहीं है। लेकिन सोचने का विषय केवल यह है कि हमारा नैतिक स्तर कितना गिर गया है ? नैतिकता के गिरते स्तर पर गीतकार श्रवण 'राही' का एक गीत कितना सक्षम बन पड़ा है,
घी, दूध, मक्खन, दवाइयाँ भी देखियेगा,
मेरे देश में ये शुद्ध मिलते नहीं।
राम की तो बात मेरे देश में ही चलती है,
लोगों में तो राम चरित्र मिलता नहीं।
स्वार्थ के सामने नैतिकता मूल्यहीन
मानव का नैतिक पतन और चरित्र के पतित होने की पराकाष्ठा तो तब हो गयी जब मामा-भांजी का पवित्र रिश्ता पतित होकर पति-पत्नी में परिवर्तित हो गया। नैतिकता का स्तर तब और गिर गया जब मनुष्य अधोगति को प्राप्त हो गया और ससुर तथा पुत्रवधू के बीच दुष्कर्म छा गया। नैतिकता के गिरते स्तर की पराकाष्ठा तब हुई जब भाई बहन का अटूट प्रेम काम-बन्धन की भेंट चढ़ गया।
मनुष्य और न जाने कितना नीचे गिरेगा? मानव के इस प्रकार के घिनौने कर्तव्य और पतन को देखकर तो शैतान भी भयभीत हो उठे, लेकिन आज का मनुष्य अपनी नैतिकता के पतन को लेकर लेशमात्र भी चिन्तित नहीं है और यदि यह सब इस प्रकार चतला रहा तो एक दिन मानव का अस्तित्व ही मिट जायेगा। आज मनुष्य की सोच इतनी बदल गयी है कि मनुष्य को अपने स्वार्थ के आगे नैतिकता मूल्यहीन लगने लगी है। नैतिकता का स्तर यहाँ तक गिर गया है कि माता और पुत्र का पावन सम्बन्ध भी कलंकित हो गया। दूसरी ओर मनुष्य की महत्त्वाकांक्षा इतनी बढ़ गयी है कि पुत्र अपने पिता की हत्या तक कर देने में संकोच नहीं करता। समाज में नित्यप्रति बढ़ रहे अपराध-हत्या, अपहरण, बलात्कार यह हमारी नैतिकता के गितरे स्तर के ही जीवित प्रमाण हैं।
एक ओर मनुष्य चाँद पर पहुंचकर अपने उन्नत होने का परचम भी लहराता है तो दूसरी ओर समाज में नैतिक पतन का क्रम जारी है। ऐश्वर्य और भाग के बढ़ते साधन ही विनाश का कारण बन रहे हैं और मनुष्य इस मृग-तृष्णा को अपनी उन्नति का मूल समझ बैठा है। समाज में आज आचरण और चरित्र नैतिकता के पतन की कहानी खुले रूप से कह रहा है और मनुष्य अपने कुकृत्यों पर लेशमात्र भी चिन्तित प्रतीत नहीं होता।
भय और आतंक नैतिक पतन की निशानी
समाज में फैल रहा यह दुराचार , यह भ्रष्टाचार, यह अनाचार, यह बलात्कार और अत्याचार ही नैतिकता को समाप्त कर रहा है। देश में छा रहे आतंक और भय का वातावरण भी तो इस गिरती नैतिकता की ही तो निशानी है। वैसे समाज में नैतिकता के नाम पर खूब ढोल पीटा जाता है, मगर हम मन से सभी अनैतिकता का आवरण ओढ़कर सभ्य मानव बनने का ढोंग भी करते हैं, यदि यही क्रम चलता तो निश्चय ही हम पतन के उस मोड़ पर खड़े होंगे जहाँ से वापिस लौट पाना हमारे लिए सम्भव न होगा।
उपसंहार
अब समय रहते हमें अपनी विचारधारा बदलने की आवश्यकता है और भारत जैसे विशाल देश में आदर्श और नैतिकता के गिरते स्तर को उठाने में हमें अपनी सार्थक पहल करके दिखानी है, तभी हमारा कल का भविष्य उज्ज्वल बन सकेगा। यह सनातन सत्य है कि जमाना हमसे बनता है, हम जमाने से नहीं बनते। प्रत्येक मनुष्य इस संसार में इकाई मात्र है, लेकिन इन्हीं इकाइयों से समूचे संसार का निर्माण होता है और अकेली इकाई का बहुत महत्त्व है, इसलिए 'वेद' ने इस इकाई को शुद्ध और नैतिकवान् रखने का निर्देश भी दिया है। अतः हम सबका कर्तव्य है कि हम इस बदले हुए मानव का अनुसरण करना छोड़े और हर विकृति का त्यागकर अपनी नैतिकता की रक्षा करें, जो विकृत हो रही है, विकार युक्त हो चुकी है, पतित हो चुकी है। कवि मनोहर लाल ‘रत्नम्’ का कहना है कि–
नैतिकता का पावन परचम, फिर से ही लहराना होगा।
सकल विश्व को इस भारत का,अमर ज्ञान सिखलाना होगा।
है ऊँचा आदर्श हमारा, युगों-युगों से ही 'रत्नम्'।
विश्व भारत बन जाये, फिर वह शंख बजाना होगा।