जहाँ सुमति तहँ सम्पत्ति नाना पर हिंदी निबंध

संकेत बिंदु– (1) सुबुद्धि और कुमति की व्याख्या (2) सुमति का महत्त्वपूर्ण स्थान (3) सुमति महान उद्योगपतियों और भवन निर्माताओं का पथ प्रदर्शक (4) जहाँ सुमति वहाँ सुख-शांति (5) उपसंहार।

जहाँ सुमति तहँ सम्पत्ति नाना पर हिंदी निबंध

श्रीरामचरितमानस में विभीषण जो अपने अग्रज लंकेश रावण को समझाते हुए कहते हैं, “हे नाथ! पुराण और वेद ऐसा कहते हैं कि सुबुद्धि और कुबुद्धि सबके हृदय में रहती है। जहाँ सुबुद्धि है, वहाँ नाना प्रकार के धन दौलत, संपत्ति, ऐश्वर्य, वैभव तथा सुख की स्थिति रहती है और जहाँ कुबुद्धि है, वहाँ परिणाम में विपत्ति रहती है।”

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सुबुद्धि और कुमति की व्याख्या

मति अर्थात् बुद्धि। जानने, समझने और विचार करने की शक्ति का नाम मति है। यह मन की अंत:करण की निश्चयात्मिका वृत्ति है। इसके दो रूप हैं- कुमति और सुमति। पाप का समर्थन करने वाली बुद्धि कुमति है। पर-पीड़ा प्रदात्री बुद्धि कुमति है। अंध स्वार्थमयी वृत्ति कुमति है।

श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं- “जो बुद्धि धर्म को अधर्म मानकर सब बातों में विपरीत निर्णय करती है, उसको तामसी बुद्धि अर्थात् कुमति कहते हैं।”

अधर्म धर्ममिति या मन्यते तमसावृता।
सर्वार्थाविपरीतांश्च बुद्धिः सा पार्थ तामसी॥

सम्पूर्ण श्रीमद भगवत गीता हिंदी अर्थ सहित

अच्छी बुद्धि, तर्कसंगत समझ, श्रेष्ठ स्वभाव या उचित कामना सुमति है। ज्ञान और सौंदर्य से युक्त बुद्धि सुमति है। श्रेष्ठ ज्ञान या उत्तम बोध प्राप्त करने और निश्चय विचार करने की शक्ति सुमति है। उदाराशयता तथा देवानुग्रह सुमति है।

सुमति का महत्त्वपूर्ण स्थान

जीवन में सुमति का ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। अथर्ववेद का ऋषि प्रार्थना करता है, “हे प्रभु! जिन्हें मैं देखता हूँ और जिन्हें नहीं देखता हूँ, उन सबके प्रति मुझमें सुमति उत्पन्न करो।” गाँधी जी भी दैनन्दिन प्रार्थना में कहते थे, 'सबको सन्मति दे भगवान्।'

वेदव्यास जी सुमति को विजय का मूल मानते हैं तो राजशेखर उसे सम्पूर्ण कामनाओं की पूर्ति करने वाली कामधेनु कहते हैं (शुद्धा हि बुद्धिः किल कामधेनुः) इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं, 'जहाँ सुमति तहँ सम्पत्ति नाना।' अर्थात् जहाँ सुमति है, वहाँ धन-दौलत, जमीन-जायदाद, ऐश्वर्य-वैभव तथा सुख और शांति, अभ्युदय और समृद्धि, सिद्धि और लाभ की नाना सम्पत्ति है।

विभीषण ने स्वयं इस कथन के अनुसार आचरण किया तो उसे प्रभु श्रीराम की शरण ही नहीं मिली, अपितु स्वर्णमयी लंका का राज्य भी प्राप्त हो गया। वह लंका की सम्पत्ति का स्वामी बन गया। भौतिक-सुखों से सम्पन्न हुआ। ऐश्वर्य और वैभव उसका चरण चुम्बन करने लगे।

श्री राम ने सुमति के बल से अस्त्र-शस्त्र तथा सेना-सहित सुग्रीव का सहयोग प्राप्त किया, अपहता भार्या की खोज की तथा महाबली राक्षसराज रावण को परास्त कर सीता रूपी सम्पत्ति प्राप्त की। महाभारत युद्ध में पाण्डव-विजय का सम्पूर्ण श्रेय श्री कृष्ण की सुमति को जाता है। मगधवंश के नाश और चन्द्रगुप्त की विजय में चाणक्य की सुमति ही तो थी। दूर क्यों जाएं, एक बार महानिर्वाचन में पराजित, अपने ही साथियों द्वारा तिरस्कृत और अपमानित इन्दिरा गाँधी अपनी सुमति के कारण दूसरी बार पुनः भारत की प्रधानमंत्री बनीं।

सुमति महान उद्योगपतियों और भवन निर्माताओं का पथ प्रदर्शक

धन-रूपी लक्ष्मी का वरण करने वाले महान् उद्योगपति, भवनों के निर्माण करने वाले भवननिर्माता, वैज्ञानिक उपलब्धियों और विभिन्न क्षेत्रों में कीर्तिमान स्थापित करने वाले वैभवशाली-जन अपनी सुमति के कारण ऐश्वर्य युक्त हुए। सुमति उनका पथ-प्रदर्शन करती रही तथा प्रज्ञा और विवेक उनके मार्ग के काँटे बुहारते रहे।

मानव-जीवन में दुःख-पीड़ा, कष्ट-क्लेश, विघ्न-बाधाएं उपस्थित होती रहती हैं। मायावी जीवन का यह अनिवार्य अभिशाप है। इस शाप से मुक्ति के लिए सज्जन अपनी बुद्धि को सुमति के पारस पर रगड़ता है। क्रोध, अभिमान, आलस्य, लज्जा, उदंडता, अहं, अधर्म तथा असत्य से दूर रहता है। अन्तर्मन में चिंतन-मनन करता है। प्रज्ञा और विवेक का आश्रय लेता है। वह एक पाँव उठाता है तो दूसरे को स्थिर रखता है। इस प्रकार प्रथम चरण में सफलता प्राप्त किए बिना दूसरा चरण नहीं उठाता।

जहाँ सुमति वहाँ सुख-शांति

पारिवारिक सुख-शांति को ही लें। जिस परिवार में आपा-धापी, अहं का पोषण, परस्पर धोखा और प्रवंचना, कलह और क्लेश, अनुचित प्रेम और कामेच्छा का वर्चस्व होगा, दूसरे शब्दों में जहाँ कुबुद्धि का साम्राज्य होगा, वह परिवार सुख-शांति से कोसों दूर होगा। जहाँ परस्पर विश्वास होगा, एक दूसरे की भावनाओं का आदर होगा, सम्मान और स्नेह होगा, अर्थात् जहाँ सुमति का राज्य होगा, वहाँ सुख-शांति अभ्युदय, उन्नति तथा यश और कीर्ति उनके यहाँ डेरा डाल कर बैठेंगे। किसी ने ठीक कहा है–

“कुमति कुजन जेहि घर व्याप, सुमति सुहागिन जाय विलाय।”

सुमति सुहागिन के हटते ही कुमति कुलच्छिनी मनुष्यों को ऐसे कार्यों के लिए प्रेरित करती है, जो मनुष्य को दुःख देने वाले होते हैं। तुलसी ने भी कहा–

“हैजा को विधि दारुण दुःख देई, ताकि मति पहले हरि लेई।”

यहाँ मति हरने का अर्थ है, सुमति का हरण तथा कुमति का प्रादुर्भाव।

उपसंहार

भारत की वर्तमान विषम स्थिति में जहाँ राजनीति अपना नंगा नाच दिखा रही हो, कानून और व्यवस्था की अस्थिरता ने जीना हराम कर दिया हो, भ्रष्टाचरण और अनैतिकता ने जीवन-मूल्यों को पैरों तले रौंद दिया हो, वहाँ सुख-शांति, सुरक्षा से जीने के लिए, भौतिक सुखों से धनी बनने के लिए, यश और ऐश्वर्य को गले लगाने के लिए वर्तमान विषयों का मनन करने वाली सुमति का आलिंगन करना होगा। भविष्यदर्शिनी अथवा दूरदर्शिनी प्रज्ञा से प्रेम करना होगा। नीर-क्षीर विवेक-बुद्धि का स्नेह अर्जित करना होगा।

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