आलस्य : सबसे बड़ा शत्रु पर निबंध | Alasy sabse bada shatru par nibandh

आलस्य : सबसे बड़ा शत्रु पर निबंध

Alasy sabse bada shatru par nibandh

संकेत बिंदु– (1) मानसिक और शारीरिक शिथिलता (2) राक्षसीवृति की पहचान (3) मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु (4) साहित्यकारों की दृष्टि में आलस्य (5) उपसंहार।

मानसिक और शारीरिक शिथिलता

ऐसी मानसिक या शारीरिक शिथिलता जिसके कारण किसी काम को करने में मन नहीं लगता, आलस्य है। तन मन की उत्साह हीनता आलस्य है। प्रयत्न और परिश्रम से जी चुराना आलस्य है।

अब देखना है कि आलस्य सबसे बड़ा शत्रु क्यों है ? आलस्य दु:ख, दारिद्रय, रोग शोक, पराजय पराभव, परावलम्बन परतंत्रता, अगति अवनति का जनक है। आलस्य सरल कार्य को कठिन, ग्राह्य को अग्राह्य, सुलभ को दुर्लभ तथा सफल को असफल बना देता है। आलस्थ के रहते प्रज्ञा विकास तथा ज्ञानवर्धन का प्रश्न ही नहीं उठता। कार्लाइल का कहना है, 'एक मात्र आलस्य में ही निरन्तर निराशा रहती है।' स्परजन का विचार है, 'आलस्य सारे अवगुणों की जड़ है।' संत तिरुवल्लुवर की मान्यता है, “आलस्य में दरिद्रता का वास है।” शायद इसीलिए भर्तृहरि ने नीतिशतक (श्लोक 87) में लिखा है, “आलस्यों हि मनुष्याणां शरीरस्थो महा रिपु:।” अर्थात्‌ आलस्य मनुष्य के शरीर में रहने वाला घोर शत्रु है। आलसियों का सिद्धान्त है–

मर जाना पै उठके, कही जाना नहीं अच्छा।
उमरा को हाथ पैर चलाना नहीं अच्छा।
फाकों से मरिए पर; न कोई काम कीजिए।
सिजदे से गर बहिश्त मिले, दूर कीजिए।
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ( नाटकावली )

सन्त मलूकदास भी कहते है– 

“अजगर करे न चाकरी, पंछी करे न काम।
दास मलूका कह गये सबके दाता राम।” 

पर जरा सोचिए अजगर पड़े पड़े मिट्टी ही तो खाता रहता है; इसलिए उसका जीवन धूल चाटता है। पर कौन कहता है 'पंछी करे न काम?' उषाकाल में ही सदैव उठकर चहचहाना क्या आलस्य को ढकेलना नहीं ? दाने-दाने को चुगकर खाते हुए फुदकते फिरना स्फृर्ति के झूले में झूलना नहीं तो क्या है ? फल मूलादि खाकर जीवन की संतुष्टि क्या ऋषि जीवन की सात्विकता से कम है ?

राक्षसीवृति की पहचान

आलस्य राक्षसीवृत्ति की पहचान है। 'कृम्भकर्णी निद्रा' कहावत इसीलिए बनी। इसीलिए जीवन में दैत्य सदा पराजित रहे। कुम्भकर्ण, मेघनाद, रावण न केवल पराजित हुए, मारे भी गए। अर्जुन ' गुडाकेश ' था। उसने निद्रा ( अर्थात्‌ आलस्य) को अपने वशीभूत कर रखा था। जब श्री राम और भगवती सीता वन में विश्राम करते थे तो लक्ष्मण धनुष बाण चढ़ाए, वीरासन पर बैठे उद्ग्रीव दृष्टिगोचर होते थे।

स्वास्थ्य के लिए प्रातःकाल की शुद्ध वायु परम आवश्यक है। पर आलसी अपनी चारपाई पर पड़ा रहता है और प्रात: की पावन पवन से वंचित रह जाता है। भ्रमण और व्यायाम के अभाव में रोगग्रस्त हो जाता है। समय पर कार्य न करने से फिसड्डी रह जाता है। आलसी कर्मचारी दफ्तर में मक्खियाँ मारता है और कर्मयोगी उसी का बॉस बन जाता है। आलसी विद्यार्थी परीक्षा में अनुत्तीर्ण होता है तो उद्यमी छात्र सफलता को गले लगाता हैं। इस प्रकार आलस्य मनुष्य का शत्रु बन उसकी प्रगति वा उन्नति का अवरोधक बनता है।

मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु

आलस्य मनुष्य का शत्रु बन उसको इच्छा शक्ति का ह्रास करता है। इच्छा शक्ति का ह्वास मन के विश्वास को डगमगा देता है। आलसी को छोटे से छोटा काम भी पहाड़ सा लगता है। वह भाग्यवादी बन जाता हैं। वह नहीं सोचता, “न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।” अर्थात्‌ सिंह जैसे पुरुपाथा के मुँह में पशु स्वयमेव भक्ष्य बनकर नहीं प्रविष्ट होते। वह भूल जाता है कि देवता भी आलसी से प्रेम नहीं करते। ( न सुप्ताय स्पृह्यन्ति देवा : ऋग्वेद)

साहित्यकारों की दृष्टि में आलस्य

महादेवी कहती हैं, 'जीवन जागरण है, सुपुष्ति नहीं, उत्थान है, पतन नहीं। पृथ्वी के तमसाच्छनन अंधकारमय पथ से गुजर कर दिव्य ज्योति से साक्षात्कार करना है।' श्री कृष्ण के कर्मयोग का उपदेश महान्‌ शत्रु आलस्य पर विजय की पताका फहराना है।

डॉ. जानसन इस शत्रु के मर्दन का उपाय बताते हैं, 'यदि आप आलसी हैं तो अकेले मत रहिए, यदि आप अकेले हैं तो आलसी मत बनिए।' पर साहब, कवियों ने तो इस आलसता में भी जीवन देखा है–

प्राची के अरुण मुकुर में सुंदर प्रतिबिम्ब तुम्हारा।
उस अलस उषा में देखूँ; अपनी आँखों का तारा ॥ ( प्रसाद : आँसू )

नक्षत्र कुमुद की अलस माल।
वह शिधिल हँसी का सजल जाल।
जिसमें खिल खुलते किरण पात।। ( जयशंकर प्रसाद : लहर )

पर कवियों की कल्पना को छोड़ आलस्य शत्रु को दूर भगाइए और उद्यम में लग जाइए। क्योंकि 'नास्त्युद्मसमो बन्धु: कृत्वा यं नावसीदति' अर्थात्‌ उद्यम के समान कोई हितचिन्तक बन्धु अन्य नहीं है। उद्यम करने से मनुष्य दु:खी नहीं होता।

Related searchs– aaj ki bachat kal ka sukh, aaj ki bachat kal ka sukh anuched, aaj ki bachat kal ka sukh anuched in hindi, aaj ki bachat kal ka sukh anuched lekhan, aaj ki bachat kal ka sukh essay, aaj ki bachat kal ka sukh essay in hindi, aaj ki bachat kal ka sukh nibandh, aaj ki bachat kal ka sukh nibandh in hindi, aaj ki bachat kal ka sukh par anuched, aaj ki bachat kal ka sukh par anuched lekhan, aaj ki bachat kal ka sukh par anuched likhiye, aaj ki bachat kal ka sukh par nibandh, aaj ki bachat kal ka sukh par nibandh 350 words, aaj ki bachat kal ka sukh per anuchchhed, alasya manushya ka sabse bada shatru, alasya manushya ka sabse bada shatru hai essay, alasya manushya ka sabse bada shatru hai essay in hindi, alasya manushya ka sabse bada, shatru hai nibandh, alasya manushya ka sabse bada shatru nibandh, alasya manushya ka sabse bada shatru par anuched, alasya manushya ka sabse bada shatru par nibandh, alasya sabse bada shatru nibandh, alasya sabse bada shatru par nibandh, anuched on aaj ki bachat kal ka sukh, anuched on aaj ki bachat kal ka sukh in hindi, anuched on alasya sabse bada shatru, essay on aaj ki bachat kal ka sukh in hindi, nibandh on alasya sabse bada shatru, आज की बचत कल का सुख अनुछेद, आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु anuched, आलस्य सबसे बड़ा शत्रु, आलस्य सबसे बड़ा शत्रु निबंध, आलस्य सबसे बड़ा शत्रु पर निबंध

Next Post Previous Post