अष्टछाप के कवियों के नाम- भक्तिकाल

 अष्टछाप के कवि

अष्टछाप कवियों के अन्तर्गत पुष्टिमार्गीय आचार्य वल्लभ के काव्य कीर्तनकार चार प्रमुख शिष्य तथा उनके पुत्र विट्ठलनाथ के भी चार शिष्य थे। आठों ब्रजभूमि के निवासी थे और श्रीनाथजी के समक्ष गान रचकर गाया करते थे। उनके गीतों के संग्रह को 'अष्टछाप' कहा जाता है जिसका शाब्दिक अर्थ आठ मुद्रायें हैं। इन लोगों ने ब्रज भाषा में श्रीकृष्ण संबंधित भक्ति रस पूर्ण कविताएँ रचीं। इन कवियों में सूरदास प्रमुख थे। अष्टछाप की स्थापना 1564 ई० में हुई थी। 

अष्टछाप के कवियों का काल 

अष्टछाप संग्रह भक्तिकाल के अंतर्गत आता है। भक्तिकाल को हिंदी साहित्य का स्वर्ण काल कहा जाता है। भक्ति काल के उदय के बारे में सबसे पहले जार्ज ग्रियर्सन ने मत व्यक्त किया वे इसे "ईसायत की देंन" मानते हैं। भक्तिकाल को चार भागों में विभक्त किया गया है 1. संत काव्य, 2. सूफी काव्य, 3. कृष्ण भक्ति काव्य, 4. राम भक्ति काव्य।

Ashtachhap ke kavi

अष्टछाप के कवियों के नाम

वल्लभाचार्य के शिष्य 1. सूरदास
2. कुंभन दास
3. परमानंद दास
4. कृष्ण दास
विट्ठलनाथ के शिष्य 5. छीत स्वामी
6. गोविंद स्वामी
7. चतुर्भुज दास
8. नंद दास

अष्टछाप के कवियों की विशेषता 

अष्टछाप के कवि में सूरदास सबसे प्रमुख थे। सूरदास ने अपनी निश्चल भक्ति के कारण भगवान कृष्ण के सखा भी माने जाते थे। अष्टछाप के कवि परम भागवत होने के कारण यह लोग भगवदीय भी कहे जाते थे। अष्टछाप के कवि विभिन्न वर्णों के थे।
  • परमानन्द कान्यकुब्ज ब्राह्मण थे। 
  • कृष्णदास शूद्र वर्ण के थे। 
  • कुम्भनदास राजपूत थे, लेकिन खेती का काम करते थे। 
  • सूरदास जी किसी के मत से सारस्वत ब्राह्मण थे और किसी किसी के मत से ब्रह्मभट्ट थे। 
  • गोविन्ददास सनाढ्य ब्राह्मण थे। 
  • छीत स्वामी माथुर चौबे थे। 
  • नंददास जी सोरों सूकरक्षेत्र के सनाढ्य ब्राह्मण थे, जो महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी के चचेरे भाई थे। 

अष्टछाप के कवि के भक्त 

अष्टछाप के कवि के भक्तों में बहुत ही उदारता पायी जाती है। "चौरासी वैष्णव की वार्ता" तथा "दो सौ वैष्ण्वन की वार्ता" में इनका जीवनवृत्त विस्तार से पाया जाता है। 
  • येआठों भक्त कवि श्रीनाथजी के मन्दिर की नित्य लीला में भगवान श्रीकृष्ण के सखा के रूप में सदैव उनके साथ रहते थे, इस रूप में इन्हे 'अष्टसखा' की संज्ञा से जाना जाता है। 
  • अष्टछाप के भक्त कवियों में सबसे ज्येष्ठ कुम्भनदास थे और सबसे कनिष्ठ नंददास थे। 
  • काव्य सौष्ठव की दृष्टि से सर्वप्रथम स्थान सूरदास का है तथा द्वितीय स्थान नंददास का है। 
  • सूरदास पुष्टिमार्ग के नायक कहे जाते है। ये वात्सल्य रस एवं श्रृंगार रस के अप्रतिम चितेरे माने जाते है। इनकी महत्त्वपूर्ण रचना 'सूरसागर' मानी जाती है। 
  • नंददास काव्य सौष्ठव एवं भाषा की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। इनकी महत्त्वपूर्ण रचनाओ में 'रासपंचाध्यायी', 'भवरगीत' एवं 'सिन्धांतपंचाध्यायी' है। 
  • परमानंद दास के पदों का संग्रह 'परमानन्द सागर' है। कृष्णदास की रचनायें 'भ्रमरगीत' एवं 'प्रेमतत्त्व निरूपण' है। 
  • कुम्भनदास के केवल फुटकर पद पाये जाते हैं। इनका कोई ग्रन्थ नही है।  
  • छीतस्वामी एवं गोविंदस्वामी का कोई ग्रन्थ नही मिलता। 
  • चतुर्भुजदास की भाषा प्रांजलता महत्त्वपूर्ण है। इनकी रचना द्वादश यश, भक्ति प्रताप आदि है। 
  • सम्पूर्ण भक्तिकाल में किसी आचार्य द्वारा कवियों, गायकों तथा कीर्तनकारों के संगठित मंडल का उल्लेख नही मिलता। अष्टछाप जैसा मंडल आधुनिक काल में भारतेंदु मंडल, रसिकमंडल, मतवाला मंडल, परिमल तथा प्रगतिशील लेखक संघ और जनवादी लेखक संघ के रूप में उभर कर आए। 
  • अष्टछाप के आठों भक्त कवि समकालीन थे। इनका प्रभाव लगभग 84 वर्ष तक रहा। ये सभी श्रेष्ठ कलाकार,संगीतज्ञ एवं कीर्तनकार थे। 
  • गोस्वामी विट्ठलनाथ ने इन अष्ट भक्त कवियों पर अपने आशीर्वाद की छाप लगायी, अतः इनका नाम 'अष्टछाप' पड़ा। 

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