विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध | Essay on Student and Politics in Hindi

Essay on Student and Politics in Hindi- विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध। विभिन्न बोर्ड परीक्षाओं मे यह निबंध लिखने को कहा जाता है। इसके कुछ अन्य शीर्षक नीचे बताए गए हैं, इन संबन्धित शीर्षकों मे यह निबंध लिख सकते हैं।

विद्यार्थी और राजनीति पर निबंध | Essay on Student and Politics in Hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक― 

  • राजनीति में छात्रों की सहभागिता
  • राजनीति में युवकों की भूमिका

रुपरेखा

  1. प्रस्तावना
  2. विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य
  3. विद्यार्थी और राजनीति
  4. आज का विद्यार्थी
  5. उपसंहार

प्रस्तावना

आज का युग राजनीतिक जागरण का युग है। आज का इतिहास राष्ट्रीय आंदोलन का इतिहास है। ऐसे समय में जन जन में राजनीति के प्रति आकर्षण हो जाना स्वाभाविक है। आज हम देखते हैं कि खेतों में काम करने वाला किसान, मिलो में काम करने वाला मजदूर, दफ्तर में काम करने वाला बाबू, व्यापार में लगा हुआ व्यापारी, अध्यापन में लगा हुआ अध्यापक आदि सभी राजनीतिज्ञ बन गए हैं। सब में राजनीतिक जागरुकता है। पान की दुकान पर, किसान की चौपाल पर सब जगह राजनीतिक वाद-विवाद होता है। सभी लोग राजनैतिक गतिविधियों में रूचि लेते हैं। भारत जैसे देशों में जहां प्रजातंत्र शासन प्रणाली है। यह राजनैतिक जागरुकता विशेष रुप से मुखर दिखाई पड़ती है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है, कि विद्यार्थी भी राजनैतिक दृष्टि से जागरुक समाज का अंग है, और इसी कारण वह भी राजनीति से अलग नहीं रह सकता। अब प्रश्न यह उठता है, कि विद्यार्थी का राजनीति में भाग लेना कहां तक उचित है? क्या राजनीति में सक्रिय भाग लेता हुआ विद्यार्थी अपने उद्देश्यों की पूर्ति कर सकता है?

विद्यार्थी जीवन का उद्देश्य

विद्यार्थी शब्द का अर्थ होता है "विद्या एव अर्थः यस्य सः" अर्थात विद्या प्राप्त करना ही जिसका प्रयोजन हो, उसे विद्यार्थी कहते हैं। तात्पर्य यह है कि विद्यार्थी जीवन ज्ञानार्जन का समय है। विभिन्न प्रकार के ज्ञान विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करके जीवन का सर्वोन्मुखी विकास करना ही विद्यार्थी के जीवन का मुख्य उद्देश्य है। यह जीवन का निर्माण का समय है, विद्यार्थी जीवन में ही शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास करते हुए भावी जीवन की रुपरेखा तैयार की जाती है। यह व्यक्तिगत एवं सामाजिक जीवन के निर्माण का समय है। साहित्य, संगीत, इतिहास, भूगोल, राजनीति शास्त्र, दर्शन, आध्यात्मिक विद्या, भौतिक विज्ञान आदि अनेक विद्याओं का उपार्जन करते हुए, आदर्श नागरिक के रूप में जीवन को सुनियोजित करना ही, विद्यार्थी का परम उद्देश्य है। कहना ना होगा की अन्य विद्याओं के साथ राजनीति शास्त्र का अध्यन करना भी विद्यार्थी के लिए परम आवश्यक है। तभी वह आगे चलकर सफल नागरिक बन सकता है।

विद्यार्थी और राजनीति

हम कह चुके हैं कि राजनीतिक शास्त्र का ज्ञान विद्यार्थी के लिए परम आवश्यक है। आज का विद्यार्थी, कल का नेता और राजनीतिज्ञ होगा। परंतु ध्यान देने की बात यह है, कि यह समय राजनीति तथा अन्य विषयों के ज्ञान प्राप्त करने का है। उन का प्रयोग करने का नहीं। सिद्धांत को समझने के लिए विज्ञान आदि विषयों के प्रयोग करके प्रयोगशाला में विद्यार्थियों को दिखाये अवश्य जाते हैं। किंतु यह प्रयोग, सिद्धांतों के प्रयोगात्मक रूप को समझाने के लिए होते हैं। उन प्रयोगों का उद्देश्य केवल विद्यार्थियों का व्यक्तिगत विकास करना होता है। तात्पर्य है कि विद्यार्थी को अपने अध्ययन काल में सभी प्रकार का सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। भले ही सिद्धांतो को समझने के लिए प्रयोगशाला में न होने के लिए उनके प्रयोग करके भी दिखाए जाएं। वास्तव में विद्यार्थी प्रयोगशाला में सिद्धांतों का प्रयोग नहीं करते बल्की सीखते हैं, कि आगे चलकर यह प्रयोग किस प्रकार होंगे। यही बात राजनीति के संबंध में भी समझ लेनी चाहिए कि राजनीति का सैद्धांतिक ज्ञान विद्यार्थी के लिए आवश्यक है। गुरुजनों की सहायता से उसके प्रयोग की विधि भी जानना भी अनिवार्य है। किंतु जानने तक ही विद्यार्थी का लक्ष्य होना चाहिए। सक्रिय रुप में भाग लेना उसके लिए अहितकर हो सकता है। जिस दिन उसे राजनीति में भाग लेना इष्ट हो उस दिन उसे कॉलेज छोड़ देना चाहिए। और विद्यार्थी जीवन से आगे बढ़कर सामाजिकता तथा राष्ट्रीय जीवन में प्रवेश कर लेना चाहिए। विद्यार्थी रहते हुए जो राजनीति में सक्रिय भाग लेते हैं। वह अपने उद्देश्य से पतित होते हैं, और अपने पथ से भ्रष्ट होते हैं। और उनकी दशा उस आदमी जैसी होती है जो जल्दी से लक्ष्य स्थान पर पहुंचने की इच्छा से स्टेशन पर गाड़ी रुकने से पहले ही चलती गाड़ी के डिब्बे में कूद पड़े।

आज का विद्यार्थी

यह खेद की बात है, और देश का दुर्भाग्य है, कि आज का विद्यार्थी अपने ज्ञान अर्जन के उद्देश्य को भूलकर राजनीति में सक्रिय भाग लेने लगा है। इस समय उसका कर्तव्य होता है, विद्यालय के अनुशासन का पालन करते हुए ज्ञान का विस्तार करना। उसका अधिकार होता है, अध्ययन की सब प्रकार की सुविधाएं प्राप्त करना। परंतु विद्यार्थी अपने कर्तव्यों को भूलकर नागरिक अधिकारों के लिए लड़ना आरंभ कर देता है। क्या होगा उस देश का जहां के विद्यार्थी जो कल देश के कर्णधार बनेंगे अपने कर्तव्य का पालन नहीं करते। आज जब विद्यार्थियों को सड़कों पर नारेबाजी हो हल्ला करते देखते हैं। जब अपने गुरु एवं किसी प्रशासकीय व्यवस्था के विरुद्ध आंदोलन करते सुनते हैं। और जब समाचार पत्रों में पढ़ते हैं कि विद्यार्थियों ने बस किसी से तोड़ दिए, सरकारी भवनों में आग लगा दी, पुलिस की मुठभेड़ में तीन मरे, दस घायल इत्यादि राष्ट्रीय संपत्ति को क्षति पहुंचाई जाती है। तब ऐसा प्रतीत होता है कि विद्यार्थी देश का जनाजा निकाल रहा है। अपने पूर्वजों का अपमान कर रहा है। अपनी उन्नति के मार्ग में स्वयं रोड़ा अटका रहा है। देश के विकास में बाधा डाल रहा है।

उपसंहार

स्वतंत्र देश के विद्यार्थी जरा होश में आ, तुझे पूर्वजों के खून से प्राप्त आजादी की रक्षा करनी है। तू अपने कर्तव्य को समझ और अपने लक्ष्य पर दृष्टि जमा। राजनीति के कांटो भरे प में पैर रखना अभी तेरे लिए ठीक नहीं है। अभी राजनीति करने का तुम्हारा समय नहीं आया है।
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