राष्ट्रीय विकास एवं युवा शक्ति पर निबंध | Essay on National Development and Youth Power in Hindi

राष्ट्रीय विकास एवं युवा शक्ति पर निबंध | Essay on National Development and Youth Power in Hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक-

  • राष्ट्र निर्माण में युवा शक्ति का योगदान
  • युवाशक्ति की राहें
  • देश की प्रगति में विद्यार्थियों का योगदान
  • नई पीढ़ी की दशा और दिशा
  • वर्तमान युवा : दशा और दिशा

निबंध की रुपरेखा- 

  1. प्रस्तावना 
  2. देश के भावी कर्णधार
  3. विद्यार्थी के कर्तव्य
  4. आत्मसंस्कार की आवश्यकता 
  5. उपसंहार
जो भारत के भावी जीवन की नैया के कर्णधार।
भारत के जन गण उन्नायक! ओ भविष्य के शिलाधार।
ओ भारत के छात्र! देश के प्राण! मातृभूमि की सुयोग्य संतान।
सावधान विचलित मत होना, तुम्हें बनाना देश महान।

प्रस्तावना

भारत एक महान देश है। यह महापुरुषों का देश है, वीरांगनाओं की भूमि है। यह राम, कृष्ण, बुद्ध और गांधी की जन्मभूमि है। सीता, सावित्री और गार्गी की आवासस्थली है। यह ऋषि मुनियों, महामनीषीयों, सतियों और पतिव्रताओं, वीरों और देशभक्तों और वीर प्रविसिनी वीरांगनाओं का देश है। भारतीय संस्कृति महान और अजर अमर है। इस देश का अतीत अत्यंत गौरवमय है। उत्थान के बाद पतन और पतन के बाद उत्थान प्रकृति का नियम है। एक विशाल गौरवमय उत्थान के बाद भारत पर भी विपत्तियों की घनघोर घटा छाई। 

देश का आकाश अंधकारमय हो गया। भारत माता परतंत्रता के पाश में जकड़ी गयीं, किंतु भारत के वीर सपूत मातृभूमि की इस दीन हीन दशा को कब तक देखते? वे उठ खड़े हुए। देशप्रेम की बलि-वेदी को अपने खून से रंग कर स्वतंत्रता संग्राम के महान यज्ञ में अपने प्राणों की आहुति चढ़ाकर उन्होंने अपनी वंदनीय सर्वथा अभिनंदनीय मातृभूमि के बंधन काटे, और उसे पुनः स्वतंत्र कर अपनी कर्तव्य निष्ठा तथा देशप्रेम का परिचय दिया।

देश के भावी कर्णधार

भारत एक प्रभुतासंपन्न राष्ट्र है। देश की वर्तमान प्रगति को देखकर यह आशा की जा सकती है, कि अचिर भविष्य में भारत अपने उस सुदूर अतीत के गौरव को पुनः प्राप्त कर लेगा और इसमें भी कहीं दो मत नहीं है। कि देश के उस उज्जवल भविष्य का एकमात्र आशा केंद्र आज के विद्यार्थी हैं। नवभारत के निर्माता, मातृभूमि के भावी त्राता, देश के भाग्यविधाता, वे छात्र हैं जो आज स्कूल और कॉलेज की चार दिवारी के अंदर अपने सामाजिक जीवन के प्रासाद की नींव जमा रहे हैं। भारत माता निनिर्मेष दृष्टि से उनकी ओर निहार रही है।

विद्यार्थी के कर्तव्य

इतना बड़ा उत्तरदायित्व जिनके कंधो पर आने वाला है उन विद्यार्थियों को कितना सबल, सशक्त और शिक्षित होना चाहिए, यह कहने की आवश्यकता नहीं है। आधार जितना दृढ़ और विशाल होगा, उतना ही मजबूत और उत्तम प्रासाद बन सकेगा। अतः स्वतंत्र भारत के सुविशाल उत्तुंग प्रासाद के निर्माण के लिए उसके आधारभूत विद्यार्थियों को अत्यंत बलवान और दूरदर्शी बनाना होगा। उन्हें अपने जीवन का सर्वांगीण विकास करना होगा देश के प्रत्येक बालक और बालिका का यह कर्तव्य है, कि ब्रम्हचर्य व्रत का पालन करते हुए उचित एवं उत्तम शिक्षा के द्वारा बौद्धिक तथा मानसिक विकास करने के लिए प्रयत्नशील हो। 

शारीरिक शिक्षा, व्यायाम तथा परिश्रम के द्वारा हष्ट-पुष्ट तथा बलवान बने। महापुरुषों के जीवन चरित्र से शिक्षा तथा प्रेरणा प्राप्त करें। पहले अपना निर्माण करके फिर देश और जाति का कल्याण करने में विद्यार्थी सफ़ल हो सकता है। विद्यार्थी का लक्ष्य सदा ऊंचा होना चाहिए। कहना न होगा कि आदर्श नागरिक के निर्माण के कार्य में माता-पिता तथा शिक्षकों का महान दायित्व है। यदि वे उत्तम शिक्षा की व्यवस्था करें। बालक बालिकाओं के सामने महान आदर्श प्रस्तुत करें, तो निसंदेह इन्हीं छात्रों में से बुद्ध और गांधी जैसे महात्मा, व्यास बाल्मीकि और तुलसी जैसे कवि, राणा प्रताप और शिवाजी जैसे वीर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस और भगत सिंह जैसे देश भक्तों और लक्ष्मीबाई जैसी वीरांगनाओं का उदय होगा।

आत्मसंस्कार की आवश्यकता

स्वतंत्र भारत के विद्यार्थी को आत्मसंस्कार करना होगा। जो रोग उनमें उत्पन्न हो गए हैं, उन्हें दूर करना होगा। आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन होता जा रहा है। देश की संस्कृति और आदर्शों की रक्षा के लिए अनुशासन का होना आवश्यक है। अनुशासन के अभाव में स्वतंत्रता की रक्षा संभव नहीं है। यदि आज का विद्यार्थी अनुशासनहीन होगा तो निसंदेह कल सारे समाज में अनुशासन समाप्त हो जाएगा। तब क्या होगा इस देश का? इस प्रकार की कल्पना भी दुखद प्रतीत होती है। 

इसके अतिरिक्त विद्यार्थी अपने कार्य क्षेत्र से आगे बढ़कर राजनीति में भाग लेने लगे हैं। यह विद्यार्थी और देश दोनों के लिए घातक सिद्ध होगा। संस्कार के इस कार्य में शिक्षकों और अभिभावकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। विद्यार्थी को सुयोग्य मार्गदर्शकों की आवश्यकता है। देश की वर्तमान सरकार तथा प्रौढ़ समाज को चाहिए कि वे देश के इन भावी संरक्षकों के निर्माण पर पूरा ध्यान दें। इनकी शिक्षा दीक्षा की समुचित व्यवस्था करें। तभी आदर्श समाज का निर्माण हो सकेगा। देश का प्रत्येक विद्यार्थी भावी भारत के युवक समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है। वह उसकी एक ठोस इकाई है।

उपसंहार

स्वतंत्र भारत के प्रत्येक विद्यार्थी का यह परम पुनीत कर्तव्य है, कि वह अनुशासनप्रिय व ज्ञान का जिज्ञासु बने। उसे इस बात का सतत ध्यान रखना चाहिए कि वह कुछ होने से पहले विद्यार्थी है। विद्या प्राप्त करना ही उस का एकमात्र प्रयोजन है। उसे अधिक से अधिक ज्ञान का अर्जन करना है। विद्या-प्राप्ति, शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक-शक्तियों का विकास एवं चरित्र निर्माण करना ही उसका प्रथम कर्तव्य है। स्वतंत्र भारत में अनुशासन के बल पर ही छात्र उन्नति करेगा तथा देश का भविष्य उज्जवल बनाएगा। लोकनायक पंडित जवाहरलाल नेहरु का विचार था-
"छात्रों की जो अतिरिक्त शक्ति है, उसे दूसरों साधनों की ओर मोड़ दिया जाए तो अनुशासनहीनता की सभ्यता ही समाप्त हो जाएगी।" क्योंकि―
"अनुशासन है जनक गुणों का मानव को विकसित करता।
सेवा त्याग साधना संयम से नर नर को नियमित करता।।"
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