अनुशासन का महत्व पर निबंध | Anushasan Par Nibandh

अनुशासन का महत्व पर निबंध | Essay on Importance of Discipline in Hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक

  • विद्यार्थी और अनुशासन।
  • जीवन में अनुशासन का महत्व।
  • छात्रों में अनुशासनहीनता- कारण और निवारण (निदान)
  • अनुशासन और विद्यार्थी जीवन

रुपरेखा

  1. अनुशासन से तात्पर्य
  2. व्यवहारिक महत्व
  3. सामाजिक महत्व
  4. राजनीतिक महत्त्व
  5. धार्मिक महत्व
  6. विद्यार्थी और अनुशासन
  7. उपसंहार
"उस देश की जनता शिक्षित हो, उसमें सब निधि का आसन हो।
उस देश में विद्या वास करे, अज्ञान के तम का नाशन हो।।
उस देश से स्वारथ, पाप तथा निर्धनता, का निष्कासन हो।
जिसमें जनता अनुशासित हो, जन-जन मे जहां अनुशासन हो।।

अनुशासन से तात्पर्य

संस्कृत में 'शास' धातु का अर्थ है- शासन करना, आदेश देना और उसका पालन करना। 'अनु' उपसर्ग है जिसका अर्थ है- 'पश्चात'। इस प्रकार अनुशासन शब्द का अर्थ है- 'शासन के पीछे चलना'― सामाजिक, राजनैतिक तथा धार्मिक सभी प्रकार के आदेश और नियमों का पालन करना। शासन शब्द में दंड की भावना छिपी हुई है। क्योंकि नियमों का निर्माण लोक-कल्याण के लिए होता है। चाहे वे किसी प्रकार के नियम हों। उनका पालन करना उन सब व्यक्तियों के लिए अनिवार्य होता है। जिनके लिए वह बनाए गए हैं। पालन ना करने पर दंड का विधान होता है। अन्यथा कोई भी मनमाने ढंग से नियम का उल्लंघन कर सकता है। नियम कई प्रकार के होते हैं। जैसे― राजनीतिक नियम राजा या सरकार बनाती है। सामाजिक नियमों का निर्माण समाज स्वयं करता है। जो अपने आदर्शों तथा महापुरुषों के जीवन चरित्र तथा अनुभव के आधार पर बनते हैं। धार्मिक नियमों का निर्माण धर्माचार्य करते हैं, जिनका धार्मिक ग्रंथ में उल्लेख रहता है। अतः इन नियमो के उल्लंघन पर दंड भी भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। सभी प्रकार के नियम लोक कल्याण की भावना से बनते हैं। अतः इनका पालन करने से व्यक्तिगत और सामाजिक लाभ होता है। और पालन ना करने पर विपरीत परिणाम होता है।

व्यवहारिक महत्व

व्यवहारिक जीवन में अनुशासन का होना नितांत आवश्यक है। अनुशासन के बिना व्यवहारिक जीवन ठीक चल ही नहीं सकता। यदि हम घर में, घर के नियमों का उल्लंघन करेंगे, बाजार में बाजार के नियमों का उल्लंघन करेंगे, स्कूल में स्कूल के नियमों का उल्लंघन करेंगे तो सभी हमारे व्यवहार से असंतुष्ट हो जाएंगे। हमें अशिष्ट और असभ्य समझ लिया जाएगा। पग-पग पर हमें अपमान सहन करना पड़ेगा। अतः हमारे व्यवहार से अनुशासन का गहरा संबंध है। हमारा कोई भी व्यवहार ऐसा नहीं होना चाहिए जो अनुशासनहीन अर्थात अनियमित और अव्यवस्थित हो।

सामाजिक महत्व

सामाजिक जीवन में अनुशासन का भारी महत्त्व है किसी समाज की व्यवस्था ठीक तब ही रह सकती है जब समाज के सभी सदस्य अनुशासित अर्थात नियमित हूं यह समाज में अनुशासन हीनता आ गई तो सारा समाज दूषित हो जाएगा उस के सदस्य स्वेच्छा जारी हो जाएंगे समाज छिन भिन्न हो जाएगा

राजनीतिक महत्व

राजनीतिक दृष्टि से तो किसी देश का आधार ही अनुशासन होता है। जिस देश में अनुशासन नहीं, वहां शासक और शासित दोनों परेशान रहते हैं। शासक वर्ग दंड विधान में लगा रहता है, और शासित को दंड भोगने की फुर्सत नहीं होती। देश का वातावरण अशांत हो जाता है, और विकास के मार्ग में बाधा उत्पन्न हो जाती है। अनुशासनहीनता की दशा में सैनिक शक्ति दुर्बल हो जाती है। सेना का तो प्राण ही अनुशासन है। बिना अनुशासन के एकता, संगठन चुस्ती और शक्ति सब कुछ छुई-मुई हो जाते हैं। जिस देश की सेना में अनुशासनहीनता हो, जिस देश की जनता में अनुशासन की कमी हो, वह देश पतन के गर्त में गिरता ही है। उसे शत्रु से पदाक्रांत होने और अपनी राजनैतिक स्वतंत्रता खो बैठने में भी देरी नहीं लगती है।

धार्मिक महत्व

धार्मिक दृष्टि से अनुशासन का बहुत महत्व है। अनुशासन के बिना धर्म कोरी कल्पना है। धार्मिक ग्रंथ रखे रहें यदि उन पर आचरण ना करें, तो धर्म कुछ भी नहीं। सच तो यह है कि अनुशासन ही धर्म है, अनुशासनीय बातों को मानना ही कर्तव्य है। इसी का दूसरा नाम धर्म है।

विद्यार्थी और अनुशासन

अनुशासन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। प्रश्न यह उठता है कि अनुशासन की वह भावना जगाई कैसे जाए? अनुशासन हठात उत्पन्न करने की वस्तु नहीं हैं, यह वातावरण तथा अभ्यास पर निर्भर करती है। जन्म लेते ही बच्चे को ऐसा वातावरण मिले, जिसमें सब कार्य नियमित और अनुशासित हों। जहां सभी लोग अनुशासन का पालन करते हैं, तो उस बच्चे को आयु बढ़ने के साथ-साथ अनुशासन का अभ्यास हो जाता है। इसके बाद विद्यार्थी जीवन में इस भावना को विकास का अवसर मिलता है। यही वह समय है जब मनुष्य स्वयं को बिगाड़ता या सुधारता है। इस समय प्रत्येक विद्यार्थी का यह परम कर्तव्य हो जाता है। कि वह पग-पग पर अनुशासन का ध्यान रखें बात-बात में सोचे, कि यह कोई ऐसी बात तो नहीं जो अनुशासन के विरुद्ध हो। विद्यार्थी का बैठना, उठना, चलना, फिरना, बोलना सब कुछ अनुशासित ढंग से होना चाहिए। विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का उतना ही महत्व है। जितना जीवन में भोजन का। जिस प्रकार भोजन के बिना जीवित रहना असंभव है। उसी प्रकार अनुशासन के बिना सामाजिक, राजनीतिक, व्यवहारिक अथवा धार्मिक आदि किसी भी क्षेत्र में सफलता पाना भी संभव नहीं है। कोई विद्या, कला अथवा शक्ति, अनुशासन के बिना प्राप्त नहीं होती है। यदि विद्यार्थी जीवन में किसी ने स्वयं को अनुशासित कर लिया तो समझो उसने अपना जीवन बना लिया। जीवन भर वह अनुशासित रहेगा और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सफलता उसके पैर चूमेगी।

उपसंहार

सारांश यह है कि मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का होना अत्यंत आवश्यक है।

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