फ़ैशन परिवर्तन का दूसरा नाम पर निबंध

फ़ैशन परिवर्तन का दूसरा नाम पर निबंध

संकेत बिंदु– (1) फैशन और परिवर्तन की व्याख्या (2) आकर्षक दिखने की चाह मानव की प्रकृति (3) आधुनिक युग में जीवन की सोच में परिवर्तन (4) फैशन समाज के सोच और परिवर्तन का नाम (5) उपसंहार।

फैशन और परिवर्तन की व्याख्या

बनाव-श्रृंगार तथा परिधान की विशिष्टता फैशन है। समाज के सम्मुख आत्म-प्रदर्शन करना फैशन है। पहनावे में बदलाव का उल्लास फैशन है। अभिरुचि में बदलाव का नाम फैशन है। फैशन डिजाइनर लबना एडम के अनुसार ‘अलग दिखने की चाह का नाम फैशन है।’

परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी में सृष्टि का सौन्दर्य निहित है। फैशन का परिवर्तन उसका स्वभाव है। इटली के कवि दौते का मत है, “मनुष्य के रीति-रिवाज और फैशन वृक्ष-शाखाओं की पत्तियों के समान बदलते रहते हैं। कुछ चले जाते हैं और दूसरे आ जाते हैं।” आस्कर वाइल्ड इस परिवर्तन में विवशता देखते हैं। उनका कहना है, “फैशन कुरूपता का एक प्रकार है, जो इतना असाध्य है कि हमें छह महीने में बदल देना होता है।”

आकर्षक दिखने की चाह मानव की प्रकृति

महत्त्वपूर्ण बनने की लालसा और आकर्षक दिखने की चाह मानव की प्रकृति है। इसके लिए औरों से अलग दिखना जरूरी है। आप औरों से अलग तरह के कपड़े पहनेंगे, आपका खानपान भी औरों से अलग होगा। आपके घर की साज-सज्जा औरों से अलग होगी तभी आप समाज में विशिष्ट स्थान बना पाएंगे और आपकी गतिविधियाँ लोगों के आकर्षण का केन्द्र बनेंगी। यह चाह फैशन का मार्ग प्रशस्त करती है। जब एक फैशन शैली जन सामान्य द्वारा अपना ली जाती है तो फिर नए की तलाश होती है। इसी के साथ शुरू होती है फैशन परिवर्तन की एक श्रृंखला जो निरन्तर चलती रहती है। इसीलिए सोनाली बेन्द्रे यह मानती है कि ‘आजकल फैशन दशक में नहीं, महीनों में बदल रहे हैं।’

फैशन केवल परिधान तक ही सीमित नहीं, वह रहन-सहन, चाल-ढाल, बोल-चाल, लोक-व्यवहार, मेकअप, फिनिशिंग आदि रूपों में फैला हुआ है। देवानन्द के उच्चारण की शैली, दिलीप कुमार के केश तथा राजकपूर की 'शो मेन शिप' और कुछ नहीं, फैशन ही हैं। 'फोलो' (अनुकरण) करने का सिद्धान्त इसके विकास का आधार है और 'होड़' इसका मूल मंत्र।

आधुनिक युग में जीवन की सोच में परिवर्तन

आधुनिक युग में जीवन की हर सोच में तेजी से बदल आ रही है। आज जो सुन्दर है, कल वह कुरूप हो जाता है। सादा-जीवन और उच्च विचार वाले अब भड़कीले जीवन में उच्च-जीवन के दर्शन करते हैं। फिर सादगी के तौर पर सुघड़ और शालीन दिखने का प्रयत्न भी एक प्रकार का फैशन ही है।

कभी शांति पूर्ण जीवन जीने का फैशन था। आज तेज संगीत सुनना, मोटर साइकिल या कार पर तेज गति से चलना, रिबॉक जूते पहनना, बारमूडा, शाट्स, टाइट्स पहनना, रंगबिरंगे टैटूज का प्रयोग करना आज के नवयुवक का फैशन है। औपचारिकता उसे काटती है और परिपाटी-पालन उसे पीड़ा पहुँचाता है। उसे खुली सहज अनौपचारिकता चाहिए। उसकी इस रुचि ने ही फैशन को 'कैजुअल लुक' दिया।

फैशन समाज के सोच और परिवर्तन का नाम

फैशन समाज के परिवर्तन और सोच का नाम है। पहले नारियाँ साड़ी पहनतीं थीं, जिसमें वक्ष से नीचे का नंगापन एक फैशन था। फिर सलवार कुरता चला, जिसमें सम्पूर्ण देह ऐसी ढकी की शरीर का बाल भी दिखाई न दे। समाज की सोच बदली, अब वक्ष के नीचे के साथ वक्ष तथा कमर का कुछ भाग तथा हाथों की नग्नता फैशन बन गई। अब तो औरों से कुछ हटकर दीखने की लालसा में कुछ 'सरटेन आइडिया' लेकर महिलाएँ ड्रेस डिजाइनर के पास जाती हैं।

जहाँ युवती शालीनता में आँखें नीची, सिर ढके सहमे-सहमे चलती थी, आज चोली जींस या स्कर्ट पहने, मेकअप किए, फर्राटे की अंग्रेजी बोलती, सिगरेट के कश लेती प्रेमी का चुम्बन लेती-देती नज़र आती हैं।

फैशन डिजाइनर पियरे कार्डिन फैशन को कल्पनाशीलता व व्यावसायिकता का संगम मानते हैं। उसके अनुसार– फैशन आज की आवश्यकता है। यदि आज फैशन को नकारते हैं तो मानवीय विकास के पूरे सिलसिले को नकार देते हैं। वह वक्त गया जब घर में एक थान से सभी सदस्यों के कपड़े सिलाए जाते थे। आज हर व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या महिला, बूढ़ा हो या जवान, प्रौढ़ हो या बालक अपने पहनावे के प्रति सतर्क है। इसी मानसिकता के कारण आजकल बच्चों के लिए किड्स कैंप खुल गए हैं। किशोरों के लिए टीन एज शो रूम हैं। पुरुष-महिला परिधानों के शो रूम तो अजायबघर से कम दिखाई नहीं देते।

बदलते फैशन के प्रति प्रत्येक व्यक्ति आकृष्ट हो रहा है और वह उसे किसी न किसी रूप में ओढ़ लेने को लालायित है। फैशन के शीघ्र परिवर्तन का श्रेय स्टेज कलाकार, नर्तक, गायक, फैशन मॉडल, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेकनालाजी तथा प्राइवेट एक्सपर्ट्स को है। जो नया फैशन समाज में 'इन्ट्रोड्यूस' होता है, वह फिल्मों द्वारा उन लोगों तक पहुँच जाता है, जो इसके नवीन स्पर्शों से अछूते होते हैं। फैशन शो का आयोजन, दूरदर्शन पर इसके कार्यक्रम प्रसारण के शीघ्रगामी माध्यम हैं।

उपसंहार

नए रूप और नए विधान में व्यक्तित्व का प्रस्तुतीकरण मानव की शाश्वत चाह है। दूसरों को प्रभावित करना, सम्मोहित करना उसकी लालसा है। अपने को स्मार्ट और जीवन्त दिखना उसकी चिरन्तन मनोकामना है। यह बिना परिवर्तन के सम्भव नहीं। कारण, केवल 'लुक' के लिए नकल करने से आकर्षण समाप्त हो जाता है। थोरो (वाल्डेन) के शब्दों में हर पीढ़ी पुराने फैशनों पर हँसती है। इसलिए नई-नई कल्पनाओं ने, नए-नए विचारों ने व्यक्तित्व को और अधिक आकर्षक बनाया, वह फैशन बन गया और परिवर्तन फैशन की नियति बन गई।

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