बिन साहस के जीवन फीका सूक्ति पर निबंध

बिन साहस के जीवन फीका सूक्ति पर निबंध

बिन साहस के जीवन फीका सूक्ति पर निबंध

संकेत बिंदु– (1) साहस के बिना जीवन फीका (2) साहसिक कार्यों की इतिहास में भरमार (3) जीवन में कायरता का स्थान निम्न (4) जीवन की चुनौतियों को स्वीकारना (5) साहसपूर्ण जीवन में स्वाभिमान युक्त गौरव।

साहस क्या है? मन की दृढ़ता और शक्ति का वह गुण या तत्त्व जिसके फलस्वरूप मनुष्य बिना किसी भय या संकोच के कोई बहुत कठिन, जोखिम भरा काम करने में प्रवृत्त होता हो।

साहस के बिना जीवन फीका

‘बिन साहस के जीवन फीका’ अर्थात् हिम्मत के अभाव में मानव-जीवन सौन्दर्यहीन, पराक्रमरहित तथा व्यक्तित्व को प्रभा से वंचित रहता है। राजस्थानी कवि कृपाराम का कहना है, ‘हिम्मत से रहित पुरुष का रद्दी कागज के समान कोई आदर नहीं करता।’ राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' ने इसी सूक्ति की सोच पर लिखा है, ‘जिन्दगी के असली मजे उनके लिए नहीं हैं जो फूलों की छाँह के नीचे खेलते और सोते हैं। जिन्हें आराम आसानी से मिल जाता है, उनके लिए आराम ही मौत है।’ जेम्स मैथ्यबेरी का भी कथन है, ‘All goes if courage goes.’ अर्थात् साहस गया तो सब कुछ गया। 'कृष्णायन' काव्य में द्वारकाप्रसाद मिश्र यही कहते हैं, ‘साहस तजत मानिजन नाहिं।’ संस्कृत की एक सूक्ति है– न साहसमनारुह्य नरो भद्राणि पश्यति। ‘साहस जहँ सिद्धि तह होई।’

मेरा पथ, मेरे पैरों की बाट निहारा करता है।
मेरा साहस, काँटों का व्याघात बुहारा करता है। –जैन मुनि बुद्धमल्ल

प्यास में ही पानी का आनन्द है। भूख में भोजन का स्वाद है। परिश्रमोपरान्त ही विश्राम का सुख है। प्रेय से श्रेय की ओर बढ़ने में ही उत्थान है और जिन्दगी का शौर्य साहस में ही निहित है। कथासरित्सागर में सोमदेव पूछते हैं, 'प्राप्यते किं यशः शुभ्रम्-अनंगीकृत्य साहसम्?' अर्थात् क्या साहस को स्वीकार किए बिना कहीं शुभ्रयश प्राप्त होता है?

साहसिक कार्यों की इतिहास में भरमार

साहस के बल पर ही श्रीराम अजेय-शत्रु महाबलशाली रावण को पराजित कर निज जीवन को पराक्रम से दीप्त कर सके। महाभारत में कृष्ण पाण्डवों को विजयश्री दिलवाकर स्वयं कांतिप्रद बन सके। साहस के बल पर ही आचार्य चाणक्य नन्द के महामंत्री 'राक्षस' से टकरा सके। कोलम्बस नई दुनिया की खोज कर सका। नेपोलियन विश्व को चुनौती दे सका। लूथर पोप का विरोध कर सका। छत्रपति शिवाजी 'हिन्दू पद पादशाही' की स्थापना कर सके। महाराणा प्रताप मुगलों से टकरा कर जीवंत इतिहास-पुरुष बन सके। लोकनायक जयप्रकाश लौहललना इन्दिरा गाँधी को नीचा दिखा सके। हिन्दू वीर रामजन्मभूमि के कलंक को धो सके। वैज्ञानिक अंतरिक्ष के रहस्यों को चीर सके। कहाँ तक गिनाएं साहसी वीरों के शौर्य की गाथाएं? वे राम-कथा की तरह अनन्त है, जिन पर विश्व अपने श्रद्धा सुमन चढ़ाकर अपनी कृतज्ञता अर्पित करता है।

ये सभी वीर पुरुष साहस प्रकट करने के कारण इतिहास-पुरुष बने। इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठों में इनका नाम अंकित हुआ। यदि ये शौर्य प्रकट न करते तो इतिहास के कूड़ेदान में इनका स्थान होता। इनका स्वयं का जीवन दीप्त नहीं, फीका होता।

जीवन में कायरता का स्थान निम्न

जीवन जीने की एक शैली है– कायरतापूर्ण जीवन। जीवन के उतार-चढ़ाव को चुपचाप सहन करते जाना। कोई विरोध नहीं, कोई प्रतिकार नहीं। वहाँ न तो जीत हँसेगी और न हार के रोने की आवाज सुनाई देगी। पड़ोसी तुम्हारे द्वार पर कूड़ा डाल देता है, तुम प्रतिकार नहीं करते। पड़ोसी बच्चे खेलने के बहाने यदा-कदा तुम्हारी चीजें उठा लेते हैं, तुम डाँटते नहीं। गली-बाजार में आपकी इज्जत उछलती है, आप चुपचाप सह लेते हैं। क्यों? आपके मन में भय है ? भय जब स्वभाव का अंग हो जाता है तो वह कायरता कहलाता है। कायरता का जीवन मरण-सम है। मरण-सम जीवन में आनन्द कहाँ, सरसता कहाँ, जीवन का सौन्दर्य कहाँ। हुतात्मा क्रांतिकारी अशफाकउल्ला खाँ का कहना है–

बुजदिलों को ही सदा मौत से डरते देखा।
गो कि सौ बार उन्हें रोज मरते ही देखा।

जीवन की चुनौतियों को स्वीकारना

जीवन जीने की दूसरी शैली है– जीवन की चुनौतियों को स्वीकार करना। पारिवारिक-जीवन में नित्य नई समस्याएँ आती हैं। सामाजिक जीवन में चोरी, डाके, अभद्र व्यवहार, हरण तथा भ्रष्ट-आचरण की उलझने हैं। धार्मिक जीवन में पाखण्ड और पोप लीला का आक्रमण है। नौकरी में उन्नति के लिए प्रतियोगिता-परीक्षा का प्रश्न है। व्यापार में प्रगति के लिए आर्थिक कठिनाइयाँ हैं। आप इन चुनौतियों को स्वीकार करते हैं। पूरी शक्ति से भय रहित हो संघर्ष करते हैं। दिनकर जी का कहना है, “जिन्दगी से, अंत में, हम उतना ही पाते हैं, जितनी कि उसमें पूँजी लगाते हैं।” यह पूँजी लगाना, जिन्दगी के संकटों का सामना करना है। उसके उस पन्ने को पढ़ना है जिसके सभी अक्षर फूलों से नहीं, कुछ अंगारों से भी लिखे हैं।

साहसपूर्ण जीवन में स्वाभिमान युक्त गौरव

स्वामी विवेकानन्द के शब्दों में ‘इस संघर्ष में यदि मृत्यु भी आती है तो आने दो। हम चौपड़ का पासा फेंकने के लिए कृत संकल्प है। यहीं समग्र धर्म है।’ यदि पराजय होती है तो खलील जिब्रान के शब्दों में, ‘पराजय! मेरी पराजय ! मेरी न मिटने वाली हिम्मत! मैं और तू मिलकर तृफान के साथ कहकहे लगाएंगे।’ वर्जिल का मानना है कि साहसी व्यक्ति की संघर्ष में विजय निश्चित है, क्योंकि भाग्य भी साहमी का साथ देता है। सच्चाई भी यही है कि जो लोग पाँव भीगने के भय से पानी मे बचते हैं, समुद्र में डूब जाने का डर उन्हीं के लिए है। लहरों में तैरने का जिन्हें अभ्यास है, वे मोती लेकर बाहर आते हैं। साहसपूर्ण जीवन से स्वाभिमानयुक्त गौरव जागृत होगा, सम्मानपूर्ण अहं प्रकट होगा, व्यक्तित्व की प्रभावकारी आभा दीप्त होगी। सफलता चरण चूमेगी। प्रकृति भाग्य सँवारेगी। शत्रु भी छेड़ते हुए दस बार सोचेगा। जीवन का आनन्द जीवन की सम्पूर्ण जड़ता मिटा देगा। बीसवीं शताब्दी की अन्तिम दशक के भारतीय युवक-युवतियों का जीवन साहस का प्रत्यक्ष उदाहरण है। जो निर्भयता उनके जीवन में समाई है, जीवन से जूझने का जो उत्साह उनके अहं में प्रकट होता है, वही उनको जीवन के मजे लूटने को प्रस्तुत करता है।

जीवन उनका नहीं युधिष्ठिर, जो उससे डरते हैं।
वह उसका जो चरण रोप, निर्भय होकर लड़ते हैं।

– रामधारीसिंह 'दिनकर'

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