बेरोजगारी समस्या और समाधान पर निबंध | Essay on Unemployment in Hindi

बेरोजगारी समस्या और समाधान पर निबंध | Essay on Unemployment in Hindi

इस निबंध के अन्य शीर्षक-

  • बेरोजगारी: समस्या और समाधान
  • शिक्षित बेरोजगारों की समस्या
  • बेरोजगारी की समस्या
  • बेरोजगारी दूर करने के उपाय
  • बेरोजगारी : एक अभिशाप

रूपरेखा-

प्रस्तावना

मनुष्य की सारी गरिमा, जीवन का उत्साह, आत्मविश्वास व आत्मसम्मान उसकी आजीविका पर निर्भर करता है। बेकार या बेरोजगार व्यक्ति से बढ़कर दयनीय, दुर्बल तथा दुर्भाग्यशाली कौन होगा? परिवार के लिए वह बोझ होता है, तथा समाज के लिए कलंक। उसके समस्त गुण, अवगुण कहलाते हैं, और उसकी सामान्य भूलें अपराध घोषित की जाती हैं। इस प्रकार वर्तमान समय में भारत के सामने सबसे विकराल और विस्फोटक समस्या बेकारी की है, क्योंकि पेट की ज्वाला से पीड़ित व्यक्ति कोई भी पाप कर सकता है। "बुभुक्षितः किं न करोति पापम" हमारा देश ऐसे ही युवक की पीड़ा से सन्तप्त है।

प्राचीन भारत की स्थिति

प्राचीन भारत अनेक राज्यों में विभक्त था। राजागण स्वेच्छाचारी नहीं थे। वह मंत्री परिषद के परामर्श से कार्य करते हुए प्रजा की सुख समृद्धि के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहते थे। राज दरबार से हजारों लोगों कि आजीविका चलती थी। अनेक उद्योग धंधे फलते फूलते थे। प्राचीन भारत में यद्यपि बड़े-बड़े नगर भी थे, पर प्रधानता ग्रामों की ही थी। ग्राम में कृषि योग्य भूमि का अभाव ना था, सिंचाई की समुचित व्यवस्था थी। फलतः भूमि सच्चे अर्थों में सस्यश्यामला (अनाज से भरपूर) थी।  इन ग्रामों में कृषि से संबंधित अनेक हस्तशिल्प काम करते थे, जैसे- बढ़ई, खरादी, लुहार, सिकलीगर, कुम्हार, कलयीगर आदि। साथ ही प्रत्येक घर में कोई ना कोई लघु उद्योग चलता था। जैसे- सूत कातना, कपड़ा बुनना, इत्र तेल का उत्पादन करना, खिलौने बनाना, कागज बनाना, चित्रकारी करना, रंगाई का काम करना, गुड़ खाङ बनाना आदि।

उस समय भारत का निर्यात व्यापार बहुत बड़ा-चढ़ा था। यहां से अधिकतर रेशम, मलमल आदि भिन्न भिन्न प्रकार के वस्त्र और मणि, मोती, हीरे, मसाले, मोर पंख, हाथी दाँत आदि बड़ी मात्रा में विदेशों में भेजे जाते थे। दक्षिण भारत गरम मसालों के लिए विश्व भर में विख्यात था। यहां कांच का काम भी बहुत उत्तम होता था। हाथीदांत और शंख की अति उत्तम चूड़ियां बनती थी। जिन पर बारीक कारीगरी होती थी।

उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि प्राचीन काल की असाधारण समृद्धि का उच्च आधार कृषि ही नहीं अपितु अगणित लघु उद्योग धंधे एवं निर्यात व्यापार था। इन उद्योग धंधों का संचालन बड़े-बड़े पूंजीपतियों के हाथों में ना होकर गण संस्थाओं (व्यापार संघो) द्वारा होता था। यही कारण था कि प्राचीन भारत में बेकारी का नाम भी कोई न जानता था।

प्राचीन भारत के इस आर्थिक सर्वेक्षण से तीन निष्कर्ष निकलते हैं-
(1) देश की अधिकांश जनता किसी ना किसी उद्योग-धंधे, हस्तशिल्प या वाणिज्य व्यवसाय में लगी थी।
(2) भारत में न्यूनतम स्तर की तक स्वायत्तशासी या लोकतांत्रिक संस्थाओं का जाल बिछा था।
(3) सारे देश में एक प्रकार का आर्थिक साम्यवाद विद्यमान था; अर्थात धन कुछ खास हाथों या स्थानों में केंद्रित ना होकर न्यूनाधिक मात्रा में सारे देश में फैला हुआ था।

वर्तमान स्थिति

जब सन 1947 ईस्वी में देश लंबी पराधीनता के बाद स्वतंत्र हुआ तो आशा हुई कि प्राचीन भारतीय अर्थतन्त्र की सुदृढ़ता की आधारभूत ग्राम पंचायतो एवं लग उद्योग धंधों को उज्जीवित कर देश को पुनः सम्रद्धि की और बढ़ाने हेतु योग्य दिशा मिलेगी; पर दुर्भाग्यवश देश का शासनतंत्र अंग्रेजो के मानस पुत्र के हाथों में चला गया। जो अंग्रेजों से भी ज्यादा अंग्रेजी में रंगे हुए थे। परिणाम यह हुआ कि देश में बेरोजगारी बढ़ती ही गई। इस समय भारत की जनसंख्या 121 करोड से भी ऊपर है जिसमें 10% अर्थात 12 करोड से अधिक लोग पूर्णतया बेरोजगार है।

बेरोजगारी से अभिप्राय

बेरोजगार, समान्य अर्थ में उस व्यक्ति को कहते हैं जो शारीरिक रूप से कार्य करने के लिए असमर्थ ना हो तथा कार्य करने का इच्छुक होने पर भी उसे प्रचलित मजदूरी की दर पर कोई कार्य न मिलता हो। बेकारी को हम तीन वर्गों में बांट सकते हैं- अनैक्षिक बेकारी, गुप्त व आंशिक बेकारी तथा संघर्षात्मक बेकारी। अनैच्छिक बेरोजगारी अभिप्राय है कि व्यक्ति प्रचलित वास्तविक मजदूरी पर कार्य करने को तैयार है परंतु से रोजगार प्राप्त नहीं होता। गुप्त वा आंशिक बेरोजगारी से आशय किसी भी व्यवसाय में आवश्यकता से अधिक व्यक्तियों के कार्य करने पर लगने से है। संघर्षात्मक बेरोजगारी से अभिप्राय है कि बेरोजगारी श्रम की मांग में सामयिक परिवर्तनों के कारण होती है और अधिक समय तक नहीं रहती। साधारणतया किसी भी अधिक जनसंख्या वाले राष्ट्र में तीनों प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती हैं।

भारत में बेरोजगारी का स्वरुप

जनसंख्या के दृष्टिकोण से भारत का स्थान सबसे अधिक जनसंख्या वाले देशों में चीन के पश्चात है, यद्यपि वहां पर अनैच्छिक बेरोजगारी पाई जाती है, तथापि भारत में बेरोजगारी का स्वरुप अन्य देशो की अपेक्षा कुछ भिन्न है। यहां पर संघर्षात्मक बेरोजगारी भीषण रूप में फैली हुई है। प्रायः नगरों में अनैच्छिक बेरोजगारी और ग्रामों में गुप्त बेरोजगारी का स्वरुप देखने में आता है। शहरों में बेरोजगारी के दो रूप देखने में आते हैं- औद्योगिक श्रमिकों की बेकारी तथा दूसरे शिक्षित वर्ग में बेकारी। भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की लगभग 70% जनता गांव में निवास करती है जिसका मुख्य व्यवसाय कृषि है। कृषि से मौसमी अथवा सामयिक रोजगार प्राप्त होता है। अतः कृषि में संलग्न जनसंख्या का अधिकांश भाग चार से छह माह तक बेकार रहता है।

बेरोजगारी के कारण

हमारे देश में बेरोजगारी के अनेक कारण है। इनमें से कुछ प्रमुख कारणों का उल्लेख निम्नलिखित है।

जनसंख्या

बेरोजगारी का प्रमुख कारण है- जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि। विगत कुछ दशकों से भारत में जनसंख्या का विस्फोट हुआ है। हमारे देश की जनसंख्या में प्रतिवर्ष लगभग 2.5% की वृद्धि हो जाती है; जबकि इस दर से बढ़ रहे व्यक्तियों के लिए हमारे देश में रोजगार की व्यवस्था नहीं है।

शिक्षा प्रणाली

भारतीय शिक्षा सैद्धांतिक अधिक है। इसमें पुस्तकीय ज्ञान पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है; फलतः यहां के स्कूल कॉलेजों से निकलने वाले छात्र निजी उद्योग धंधे स्थापित करने योग्य नहीं बन पाते।

कुटीर उद्योगों की उपेक्षा

ब्रिटिश सरकार की कुटीर उद्योग विरोधी नीति के कारण देश में कुटीर उद्योग धंधों का पतन हो गया; फलस्वरूप अनेक कारीगर बेकार हो गए। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी कुटीर उद्योग के विकास की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। अतः बेरोजगारी में निरंतर वृद्धि होती गई।

औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया

पंचवर्षीय योजनाओं में देश के औद्योगिक विकास के लिए जो कदम उठाए गए उनसे समुचित रुप से देश का उद्योगीकरण नहीं किया जा सका है। फलतः बेकार व्यक्तियों के लिए रोजगार के साधन नहीं जुटाए जा सके हैं।

कृषि का पिछड़ापन

भारत की लगभग दो-तिहाई जनता कृषि पर निर्भर है। कृषि की पिछड़ी हुई दशा में होने के कारण कृषि बेरोजगार की समस्या व्यापक हो गई है।

कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी

हमारे देश में कुशल एवं प्रशिक्षित व्यक्तियों की कमी है, अतः उद्योगों के सफल संचालन के लिए विदेशों से प्रशिक्षित कर्मचारी बुलाने पड़ते हैं। इस कारण से देश के कुशल एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों के बेकार हो जाने की भी समस्या हो जाती है।

इनके अतिरिक्त मानसून की अनियमितता, भारी संख्या में शरणार्थियों का आगमन, मशीनीकरण के फलस्वरुप होने वाले श्रमिकों की छटनी, श्रम की मांग एवं पूर्ति में असंतुलन, आर्थिक संसाधनों की कमी आदि से भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है। देश को बेरोजगारी से उबारने के लिए इनका समुचित समाधान नितांत आवश्यक है।

समस्या का समाधान

1.सबसे पहली आवश्यकता है कि हस्त उद्योगों को बढ़ावा देने की इससे स्थानीय प्रतिभा को उभरने का सुअवसर मिलेगा। भारत जैसे विशाल जनसंख्या वाले देश के लिए लघु उद्योग धंधे ही ठीक है। जिनमें अधिक से अधिक लोगों को काम मिल सके।

2. दूसरी आवश्यकता है मातृभाषाओं के माध्यम से शिक्षा देने की, जिससे विद्यार्थी से शीघ्र ही शिक्षित होकर अपनी प्रतिभा का उपयोग कर सकें। साथ ही आज स्कूल कॉलेजों में दी जाने वाली अव्यवहारिक शिक्षा के स्थान पर शिल्पकला, उद्योग धंधों आदि से संबंधित शिक्षा दी जानी जानी चाहिए। जिससे कि पढ़ाई समाप्त कर विद्यार्थी तत्काल रोजी रोटी कमाने योग्य हो जाएं।

3. बड़ी-बड़ी मिले और फैक्ट्रियां, सैनिक शस्त्रास्त्र तथा ऐसे ही दूसरी बड़ी चीजें बनाने तक सीमित कर दी जाएं। अधिकांश जीवन उपयोगी वस्तु का उत्पादन घरेलू उद्योगों से ही हो

4. पश्चिमी शिक्षा ने शिक्षितों में हाथ के काम को नीचा समझने की जो मनोवृत्ति पैदा कर दी है, उसे 'श्रम के गौरव' (Dignity of labour) की भावना पैदा करके दूर किया जाना चाहिए।

5. लघु उद्योग धंधों के विकास से शिक्षित में नौकरियों के पीछे भागने की प्रवृत्ति घटेगी क्योंकि नौकरियों में देश की जनता का एक बहुत सीमित भाग ही खप सकता है। लोगों को प्रोत्साहन देकर हस्त उद्योगों एवं वाणिज्य व्यवसाय की ओर उन्मुक्त किया जाना चाहिए। ऐसे लघु उद्योगों में रेशम के कीड़े पालना, मधुमक्खी पालन, सूत कातना, कपड़ा बुनना, बागवानी, साबुन बनाना, खिलौने, चटाई या कागज, तेल, इत्र आदि ना जाने कितनी वस्तुओं का निर्माण संभव है। इसके लिए प्रत्येक जिले में जो सरकारी लघु उद्योग कार्यालय हैं वे अधिक प्रभावी ढंग से काम करें। वह इच्छुक लोगों को सही उद्योग चुनने की सलाह दें, उन्हें ऋण उपलब्ध कराएं तथा आवश्यकतानुसार कुछ तकनीकी शिक्षा दिलवाने की भी व्यवस्था करें। इसके साथ ही इन के उत्पादों की बिक्री की भी व्यवस्था करें, यह सर्वाधिक आवश्यक है क्योंकि इसके बिना शेष सारी व्यवस्था बेकार साबित होगी।

6. इसके साथ ही देश की तीव्र गति से बढ़ती हुई जनसंख्या पर भी रोक लगाना आवश्यक हो गया है।

उपसंहार

सारांश यह है कि देश के स्वायत्तशासी ढांचे और लघु उद्योग धंधों के प्रोत्साहन सही बेरोजगारी की समस्या का स्थाई समाधान संभव है। हमारी सरकार भी बेरोजगारी की समस्या के उन्मूलन के लिए जागरूक है और उसके द्वारा इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम भी उठाए गए हैं। परिवार नियोजन (कल्याण), बैंकों का राष्ट्रीयकरण, एक स्थान से दूसरे स्थान पर कच्चा माल ले जाने की सुविधा, कृषि भूमि की चकबंदी, नए नए उद्योगों की स्थापना, प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना आदि अनेकानेक ऐसे कार्य हैं, जो बेरोजगारी को दूर करने में एक सीमा तक सहायक सिद्ध हो रहे हैं। इन कार्यक्रमों को और अधिक विस्तृत, प्रभावकारी और ईमानदारी से कार्यांवित किए जाने की आवश्यकता है।
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