विद्यार्थी जीवन पर निबंध | Essay on Student Life in Hindi

Vidyarthi Jeevan par nibandh: किसी भी व्यक्ति के जीवन का स्वर्णिम समय विद्यार्थी जीवन को माना गया है, क्योंकि चरित्र और व्यक्तित्व निर्माण इसी समय में होता है। विभिन्न परीक्षाओं में विद्यार्थी जीवन पर निबंध पर प्रश्न पूछे जाते हैं। 

Vidyarthi Jeevan par Nibandh, Essay on Student Life in Hindi

विद्यार्थी जीवन पर निबंध | Essay on Student Life in Hindi

संकेत बिंदु-(1) चिंतामुक्त अध्ययन का काल (2) विद्यार्थी जीवन के प्रकार (3) पाठ्यक्रम से ज्ञानार्जन और विद्यार्थी का दायित्व (4) वर्तमान में विद्यार्थी भटकाव की ओर (5) छात्रों का कामवासना की ओर झुकाव और पारिवारिक समस्याएँ।

चिंतामुक्त अध्ययन का काल

वह विशिष्ट समयावधि जिसमें बालक या युवक किसी शिक्षा-संस्था में अध्ययन करता है, विद्यार्थी जीवन है। जीविकोपार्जन की चिन्ता से मुक्त अध्ययन का कालखंड विद्यार्थी जीवन है।

भारत की प्राचीन विद्या-पद्धति में 25 वर्ष की आयु तक विद्यार्थी घर से दूर ऋषि आश्रमों में रहकर विविध विद्याओं में निपुणता प्राप्त करता था, किन्तु देश की परिस्थिति परिवर्तन से यह प्रथा लुप्त हो गई। इसका स्थान लिया विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों ने। इन तीनों संस्थाओं में जब तक बालक या युवक अध्ययनरत है, वह विद्यार्थी कहलाता है। उसकी अध्ययन अवधि में उसका जीवन 'विद्यार्थी-जीवन' नाम से अभिहित किया जायेगा।

दूसरी ओर, आधुनिक भारत में गुरुकुल तथा छात्रावास पद्धति प्राचीन ऋषि-आश्रमों का समयानुसार परिवर्तित रूप है। इन गुरुकुलों और छात्रावासों में रहकर अध्ययन करने वाला विद्यार्थी सही अर्थ में विद्यार्थी जीवन का निर्वाह करता है।

विद्यार्थी जीवन के प्रकार

वर्तमान विद्यार्थी जीवन भी दो प्रकार का है-(1) परिवार में रहते हुए विद्यार्थी जीवन (2) छात्रावासीय छात्र-जीवन परिवार में रहते विद्यार्थी-जीवन में विद्यार्थी परिवार में रहकर उसकी समस्याओं, आवश्यकताओं, मांगों को पूरा करते हुए भी अध्ययन करता है। नियमित रूप से विद्यालय जाना और पारिवारिक कामों को करते हुए भी घर पर रहकर ही पढ़ाई में दत्तचित्त होना, उसके विद्यार्थी-जीवन की पहचान है।

दूसरी ओर, छात्रावास में ही रहता हुआ वह पारिवारिक झंझटों से मुक्त पूर्णतः शैक्षिक वातावरण में रहता हुआ विद्यार्थी-जीवन का निर्वाह कर अपना शारीरिक, मानसिक तथा आत्मिक विकास करता है।

विद्यार्थी-जीवन उन विद्याओं, कलाओं तथा शिल्पों के शिक्षण का काल है, जिनके द्वारा वह छात्र-जीवन के अनन्तर जीविकोपार्जन करता हुआ पारिवारिक दायित्वों को वहन कर सके। अत: यह काल संघर्षमय संसार में सम्मानपूर्वक जीने की योग्यता निर्माण करने का समय है। इन सबके निमित्त ज्ञानार्जन करने, शारीरिक और मानसिक विकास करने, नैतिकता द्वारा आत्मा को विकसित करने की स्वर्णिम अवधि है, विद्यार्थी-जीवन।

पाठ्यक्रम से ज्ञानार्जन और विद्यार्थी का दायित्व

निश्चित-पाठ्यक्रम के अध्ययन से छात्र ज्ञानार्जन करता है। समाचार पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों के अध्ययन तथा आचार्यों के प्रवचनों से वह मानसिक विकास करता है।

शैक्षणिक-प्रवास और भारत-दर्शन कार्यक्रम उसके मानसिक विकास में वृद्धि करते हैं। प्रात:कालीन व्यायाम और सायंकालीन 'खेल' उसका शारीरिक विकास करते हैं। नैतिकता का आचरण उसके चरित्र को बलवान् बनाता है, आत्मा का विकास करता है।

प्रश्न यह है कि क्या आज का शिक्षार्थी सच्चे अर्थों में विद्यार्थी-जीवन का दायित्व पूर्ण कर रहा है ? इसका उत्तर नहीं में होगा। कारण, उसे अपने विद्यार्थी-जीवन में न तो ऐसी शिक्षा दी जाती है, जिसे जीवन-क्षेत्र में प्रवेश करते ही जीविका का साधन प्राप्त हो जाये और न ही उसे वैवाहिक अर्थात् पारिवारिक जीवन जीने की कला का पाठ पढ़ाया जाता है। इसलिए जब वह विद्यार्थी-जीवन से अर्थात् गैर-जिम्मेदारी से पारिवारिक-जीवन अर्थात् सम्पूर्ण जिम्मेदारी के जीवन में पदार्पण करता है तो उसे असफलता का ही मुँह देखना पड़ता है।

आज का विद्यार्थी-जीवन जीवन के लिए अनुपयुक्त बहु-विध विषयों का मस्तिष्क पर बोझ लादता है। ज्ञानार्जन के नाम पर पुस्तकों का गधे-भर का भार कमर पर लादता है। आज का विद्यार्थी-जीवन बेकार के ज्ञानार्जन का कूड़ा-दान बनकर रह गया है।

आज का विद्यार्थी-जीवन विद्या की साधना, मन की एकाग्रता और अध्ययन के चिंतन-मनन से कोसों दूर है। इसीलिए छात्र पढ़ाई से जी चुराता है, श्रेणियों से पलायन करता है। नकल करके पास होना चाहता है। जाली-डिग्रियों के भरोसे अपना भविष्य उज्ज्वल करना चाहता है।

स्कूल, कॉलिजों में उपयुक्त खेल-मैदानों, श्रेष्ठ खेल-उपकरणों तथा योग्य शिक्षकों के अभाव में 'गेम्स' विद्यार्थी-जीवन की पहुँच से परे होते जा रहे हैं। ऐसे में आज का विद्यार्थी-जीवन जीवन को स्वस्थ और स्फूर्तिप्रद बनाने में पिछड़ रहा है।

वर्तमान में विद्यार्थी भटकाव की ओर

आज का छात्र विद्यार्थी-जीवन में राजनीति की वारांगना से प्रेम करता है। हड़ताल, तोड़-फोड़, जलसे-जलूस, नारेबाजी, जिन्दाबाद-मुर्दाबाद का पाठ पढ़ता है। जो पढ़ता है, वह उसे प्रत्यक्ष करता है। उसे कार्यान्वित करे क्यों न? जब 18 वर्षीय विद्यार्थी को वोट देने का अधिकार देकर भारत सरकार ने उसे राजनीति रूपी वारांगना से प्रेम करने का आशीर्वाद दे दिया है। 

छात्रों का कामवासना की ओर झुकाव और पारिवारिक समस्याएँ

आज के छात्र का विद्यार्थी-जीवन प्रेम और वासना के आकर्षण का जीवन है। वह गर्ल्स फ्रेंड, बोयज फ्रेंड बनाने में रुचि लेता है। व्यर्थ घूमने-फिरने, होटलों-क्लबों में जाने में समय का सदुपयोग मानता है। वासनात्मक सम्बन्धों को उत्तेजित करने के लिए शराब और नशीले 'ड्रग्स' का उपयोग करता है। विद्यार्थी-जीवन में विद्या की अर्थी उठाता है। ज्ञानार्जन के पवित्र कर्म को कामाग्नि में होम करता है।

आज के तेजी से बढ़ते बदलते समय में महँगाई की मार ने, पारिवारिक उलझनों और संकटों ने, दूरदर्शन की चकाचौंध ने, सामाजिक विकृतियों और राजनीतिक अस्थिरता ने भारतीय जीवन से ही जीवन-जीने का हक छीन लिया है तब विद्यार्थी-जीवन उससे अछूता कैसे रह सकता है ? गिरते परीक्षा-परिणाम, फस्ट डिवीजन और डिस्टिकशन की गिरती संख्या वर्तमान विद्यार्थी-जीवन के अभिशाप के प्रमाण हैं।

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