वर्तमान समय में विद्यार्थी का कर्तव्य पर निबंध

Vartmaan samay me vidyarthi ka kartavya par nibandh: विद्यार्थी व युवा वर्ग ही समाज को नई दिशा दे सकता है, जिससे उसके कुछ कर्तव्य बहुत ही महत्वपूर्ण होते हैं। इसीलिए विभिन्न परीक्षाओं में इस विषय पर निबंध पूछ लिया जाता है। 

Vartman samay me vidyarthi ka kartavya

वर्तमान समय में विद्यार्थी का कर्तव्य पर निबंध 

संकेत बिंदु- (1) भारत की आंतरिक स्थिति और विद्यार्थी का कर्तव्य (2) छात्र का कर्त्तव्य मात्र विद्या अध्ययन नहीं। (3) असामाजिक तत्त्वों के विरुद्ध समाज में जागरूकता लाना (4) असामाजिक गतिविधियों से स्वयं को अलग रखना (5) साम्प्रदायिकता से दूर रहना।

भारत की आंतरिक स्थिति और विद्यार्थी का कर्तव्य

भारत की आन्तरिक स्थिति वर्तमान में शोचनीय है और विश्व-वातावरण भी इसके प्रतिकूल है। यहाँ कानून और व्यवस्था चौराहे पर आंधे मुंह पड़े सिसक रहे हैं। आतंकवादियों और समाज-द्रोही तत्त्वों के वर्चस्व ने भारतीय जीवन को आतंकित तथा मूल्यहीन कर दिया है। भारतीय नागरिक के जीवन का मानों कोई मूल्य ही नहीं। दूसरी ओर, महँगाई की मार इतनी जबर्दस्त है कि वह भारतीय जीवन को नंगा-भूखा बनाने पर तुली है। राष्ट्रीय दल दलीय स्वार्थ के पंक से उभर नहीं पाते। उभरें तब, जब उन्हें देशहित नजर आए। राष्ट्रीय सरकार आज विविध प्रांतीय दलों की बैसाखियों पर चल रही है। अर्थतन्त्र चरमरा रहा है। राष्ट्रीय चरित्र तथा नैतिक मूल्य कहीं पाताल-लोक में छुपे बैठे हैं।

छात्र का कर्त्तव्य मात्र विद्या अध्ययन नहीं

राष्ट्र की इन विषम परिस्थितियों में विद्यार्थी का कर्तव्य क्या हो सकता है? क्या उसका कर्तव्य केवल अध्ययन करना और देश की विषम स्थिति से आँखें मूंद लेना हो? क्या विद्यार्थी का कर्तव्य समाज-द्रोही तत्त्वों और आतंकवादियों से निपटना हो? क्या विद्यार्थियों का कर्तव्य देश की महंगाई को रोकना हो? कदापि नहीं। जिस दिन देश का विद्यार्थी इन विषमताओं के विरुद्ध कमर कसकर खड़ा हो गया तो समझ लीजिए, भारत गृह-युद्ध की अग्नि में जलकर भस्म हो जाएगा। सिर दर्द दूर करने के लिए सिर कटाने का उपाय असंगत है। विद्यार्थी का यह कर्तव्य सूखे भुस में दियासलाई जलाने के समान होगा।

दूसरी ओर, देश की विषम स्थिति की अवहेलना करके मात्र अध्ययन को ही कर्तव्य समझना भी छात्र की भूल है, यह राष्ट्रीय आचरण के विरुद्ध है। आँख मींच लेने से कबूतर बिल्ली से बच तो नहीं पाएगा। बम के विस्फोट में या आतंकवादियों की अंधाधुंध गोली वर्षा में मरने वाला स्वयं विद्यार्थी भी हो सकता है और उसके परिवार-जन भी। कीचड़ से बचकर यदि कोई चले भी तो तेज चलने वाले वाहन उसके वस्त्रों को मैला तो करेंगे ही। फिर विद्यार्थी राष्ट्र की इन समस्याओं के प्रभाव से अछूता कैसे रह सकता है?

तीसरी ओर, क्या विद्यार्थी को विद्या मन्दिरों को ताला लगवाकर सक्रिय राजनीति में कूद पड़ना चाहिए? शायद सरकार की इच्छा भी यही है, क्योंकि मतदान की आयु 18 वर्ष करने की पृष्ठभूमि भी यही है। सरकार 18 वर्षीय युवक को विवाह का दायित्व सम्भालने के योग्य नहीं मानती, पर देश का दायित्व निर्वाह करने योग्य समझती है। यह कैसी विडम्बना और अन्तर्विरोध है। ऐसा करना विद्यार्थी के ज्ञान-द्वार को बन्द कर देना होगा। इसलिए विद्यार्थियों द्वारा विद्याध्ययन का काम अबाध गति से चलता रहे, यही विद्यार्थी का प्रथम कर्तव्य है।

विद्यार्थी विद्या के निमित्त अपने को समर्पित समझे, यह उसका दूसरा कर्तव्य है नियमित रूप से कक्षाओं में जाए। एकाग्रचित होकर गुरु द्वारा पढ़ाये पाठ को सुने, घर से करके लाने को दिए कार्य की पूर्ति पर बल दे। पढ़ाए गए पाठ का चिन्तन-मनन करे। अधिकाधिक अंक प्राप्ति के लिए निरन्तर अध्यवसाय करना अपना कर्तव्य माने।

असामाजिक तत्त्वों के विरुद्ध समाज में जागरूकता लाना

वर्तमान भारत में राजनीतिज्ञों, नव धनाढ्यों, तस्करों और असामाजिक तत्त्वों का बोलबाला है। ये सभी कानून की पकड़ से दूर हैं, पुलिस स्वयं इनकी रक्षक है। इसलिए यथासम्भव इनसे बचना चाहिए, ये तत्त्व शिकायतकर्ता विद्यार्थी को जीवन-दान दे देंगे, यह नामुमकिन है। ऐसी परिस्थिति में विद्यार्थी दूरभाष के सार्वजनिक केन्द्र से या सक्षम अधिकारी को अनाम पत्र लिखकर इसकी सूचना तो दे ही सकता है। सम्पादक के नाम गलत नाम से पत्र लिखकर उस देखी घटना को सार्वजनिक तो कर ही सकता है।

विद्यार्थी भी समाज का वैसा ही अंग है जैसे अन्य नागरिक समाज की उन्नति में ही उसकी भी उन्नति है। इसलिए वह समाज-विरोधी तत्त्वों से सचेत रहे। 3-4 की टोली में घूमते हुए जेब-कतरों को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दे। आभूषण छीनते बटमार को पकड़कर पुलिस को थमा दे। किसी स्थान पर कोई सन्देहास्पद वस्तु देखता है तो 100 नम्बर को फोन कर दे। यहाँ तक तो विद्यार्थी को अपना कर्तव्य समझना चाहिए।

असामाजिक गतिविधियों से स्वयं को अलग रखना

भारत के महान् राजनीतिज्ञों ने 18 वर्षीय विद्यार्थी को मत-अधिकार देकर दूषित राजनीति के कीचड़ में घसीट लिया है। कोई बात नहीं। वह कीचड़ में कमल पैदा करने का प्रयास न करे। कीचड़ में कमल पैदा करने का अर्थ होगा सक्रिय राजनीति में प्रवेश। हाँ, कीचड़ को सुखा कर समतल भूमि बनाना उसका कर्तव्य है। वह राजनीतिक जलूस प्रदर्शनों में भाग लेने से बचे। तोड़-फोड़ और राष्ट्रीय सम्पत्ति के विनाश से दूर रहे। नारेबाजी और अराजकतापूर्ण वातावरण निर्माण का सहयोगी न बने। दूर खड़े रहकर दर्शक बनने में ही उसकी सार्थकता है और चुनाव में मतदान राष्ट्र के प्रति कर्तव्य-पालन है।

विद्यार्थी-जीवन विद्या प्राप्ति का काल है। विद्या का अधिकाधिक उपार्जन करना छात्र जीवन का लक्ष्य है। इसके लिए उसे किताबी कीड़ेपन से ऊपर उठना होगा। ज्ञान को ज्योति जिस ओर से आए, उसका अभिनन्दन करना होगा। समाचार-पत्र, पत्रिकाओं, टी.वी. देखना और रेडियों से नई जानकारी प्राप्त करना उसका कर्तव्य है। इसी प्रकार देश-विदेश की गतिविधियों की जानकारी प्राप्त करना भी उसका फर्ज है।

साम्प्रदायिकता से दूर रहना

आज भारतीय समाज साम्प्रदायिकता और जातीयता की आग की लपटों में झुलस रहा है। उसका एकमात्र हल है-मानव मात्र में अपनी ही आत्मा के दर्शन। मानव की समानता का बोध। विद्यार्थी जीवन में यदि व्यक्ति में यह भाव जागृत हो जाए तो साम्प्रदायिकता की जड़ ही उखड़ जाएगी। अतः विद्यार्थी का कर्तव्य है कि वह अपने सहपाठियों में जातिवाद, वर्गवाद, प्रान्तवाद, सम्प्रदायवाद की दुर्गन्ध को न फैलने दे। भ्रातृत्व की सुगन्ध से अपने विद्यालय के वातावरण को सुगन्धित रखे।

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' ने देशवासियों का ध्यान तीन कर्तव्यों की ओर आकर्षित किया है। ये ही कर्तव्य विद्यार्थी के भी हो सकते हैं अपने देश की कमियों, खराबियों की सार्वजनिक चर्चा न करें।अन्य राष्ट्रों की तुलना में उसे हीन न बताएँ। इससे देशवासियों का मनोबल बढ़ेगा। उन्हें राष्ट्र की शक्ति का बोध होगा। दूसरी ओर, देश के सार्वजनिक स्थानों को स्वच्छ रखने, वाणी से मधुर बोलने तथा व्यवहार में शिष्टता देश के अन्त:करण को सुन्दर बनाएगी। तीसरी ओर, देश के हित में यह जरूरी है कि हम अपने 'वोट' का प्रयोग अपने विवेक से करें, न कि जाति, सम्प्रदाय या लालचवश।

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