महानगर की समस्याओं पर निबंध | Essay on Problems of Metropolitan cities in Hindi

Mahanagar ki samasya par nibandh: इस पोस्ट में हम आपके साथ महानगरों की अनगिनत समस्याओं पर निबंध साझा करेंगे। विभिन्न परीक्षाओं में इस विषय पर निबंध लिखने के लिए आता है। 

Mahanagar ki samasya par nibandh hindi me

महानगर की समस्याओं पर निबंध

संकेत बिंदु- (1) महानगर जटिल समस्याओं के संगम (2) प्रदूषण और अन्य समस्याएँ (3) महानगरों का अनियमित, अमर्यादित और अनियंत्रित विकास (4) यातायात व्यवस्था, विद्युत आपूर्ति और श्रेष्ठ संस्थानों की कमी (5) उपसंहार।

महानगर जटिल समस्याओं के संगम

महानगर जटिल समस्याओं के संगम हैं। कभी न समाप्त होने वाली उलझनों की प्रवाहिणी हैं। विकट प्रसंगों के ज्वालामुखी हैं, जिनका निराकरण सहज सम्भव नहीं।

बरसात में उफनती हुई नदी के प्रवाह के समान नवीन कठिनाइयों की उग्रतर बाढ़ है, जो महानगरों को ही आत्मसात् कर लेना चाहती है।

महानगर रोजगार प्रदान करने के महा केन्द्र हैं। नगर-निगम तथा राजकीय कार्यालय, औद्योगिक प्रतिष्ठान, व्यापारिक केन्द्र, कल-कारखाने रोजगार प्रदान करने का आह्वान करते हैं। अत: ग्रामीण जनता इन महानगरों की ओर खिंची चली आती है। इनकी जनसंख्या सुरसा के मुख की तरह प्रतिवर्ष बढ़ती जाती है। महानगरों की बढ़ती आबादी महानगरों की सबसे प्रमुख समस्या है।

प्रदूषण और अन्य समस्याएँ

प्रदूषण महानगरों की विकट समस्या है। यहाँ के कल-कारखाने, मिलें तथा सड़क पर अहर्निश दौड़ती बसें, ट्रक, कार, मोटरसाइकिल, स्कूटर, टैम्पो आदि पैट्रोल तथा डीजल से चलने वाले वाहन जो प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, उनसे यहाँ की वायु विषाक्त हो चुकी है, जिससे सांस लेने में भी दम घुटता है।

बढ़ती आबादी को आश्रय देने के लिए विकास प्राधिकरण जितनी व्यवस्था करता है, वह कम पड़ जाती है। मकानों की कमी, मकानों के किरायों में वृद्धि का कारण बनती है। आवास की कमी को पूरा करती हैं राजनीतिज्ञों, कालोनाइजरों और भूमिपतियों की अपावन सांठ-गाँठ से निर्मित अनधिकृत बस्तियाँ तथा झुग्गी-झोंपड़ियाँ। झुग्गी-झोपड़ियाँ महानगर के सुन्दर शरीर पर कोढ़ हैं, तो अनधिकृत बस्तियाँ उसके स्वस्थ-विकास में बाधक हैं।

महानगरों का अनियमित, अमर्यादित और अनियंत्रित विकास

महानगरों का अनियमित, अनियन्त्रित, अमर्यादित विकास तथा प्राचीन नगर की तंगगलियों, कल-कारखानों तथा औद्योगिक संस्थानों का कचरा नगर की शोभा के मुख पर कालिख फेर देता है। गन्दी बस्तियाँ, तंग कटरे, भूमिगत मल-मूत्र निकासी के प्रबन्ध का अभाव, शहर के बीच गुजरते विशालकाय खुले मुँह नाले आस-पास के निवासियों को अपनी दुर्गन्ध से दुःखी रखते हैं।

महानगरों के स्वास्थ्य को चौपट करने का ठेका पेयजल व्यवस्था ने ले रखा है। सभी महानगरों का मल-मूत्र उनकी समीपस्थ नदियों में मिलता है, जो नदियों के जल को दूषित कर देता है। इस दूषित जल को रासायनिक प्रक्रिया से स्वच्छ करके महानगर वासियों को पीने के लिए उपलब्ध कराया जाता है। महानगरों में महारोगों के जानलेवा प्रकोप में बहुधा यही दूषित जल कारण बनता है।

यातायात व्यवस्था, विद्युत आपूर्ति और श्रेष्ठ संस्थानों की कमी

महानगरों की यातायात व्यवस्था नगर-वासियों के लिए अपर्याप्त रहती है। बसें ही यातायात का मुख्य साधन हैं। बम्बई, दिल्ली जैसे महानगरों में लोकल ट्रेन की व्यवस्था भी है। बसों और ट्रेनों की अपार भीड़, धक्कम-धक्का अनियन्त्रित स्टैडिंग, बस चालकों की मनमानी, रेजगारी के लिए कण्डक्टर से झगड़े, तकरार सब मिलकर महानगरवासियों के लिए अभिशाप सिद्ध होते हैं। रहे टैक्सी और स्कूटर, ये तो यात्रियों के कपड़े उतारने के लिए तैयार रहते हैं।

महानगरों में विद्युत् आपूर्ति की कमी से औद्योगिक संस्थान उत्पादन की कमी से परेशान हैं, तो कार्यालय के बाबू प्रकाश के अभाव में काम करने से इन्कार कर देते हैं। जनता गर्मी में पंखे और कूलर के बन्द होने से तथा सर्दी में हीटर की हीट (गर्मी) समाप्त होने से विद्युत् प्राधिकरण को गालियाँ देती रहती है। कारण, महानगरों की बिजली-रानी कब और कितने समय के लिए रूठ जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता।

महानगरों में शिक्षा-संस्थाएं बहुत हैं, पर श्रेष्ठ संस्थाएं बहुत कम हैं। भारत का भावी नागरिक स्कूलों के गन्दे स्थान, अपर्याप्त सुविधा तथा विषाक्त वातावरण में अपनी शिक्षा ग्रहण करता है। नगर निगम में विद्यालयों में फटे-पुराने तम्बुओं से बना अध्ययन कक्ष विद्याथियों पर किस शिष्टता, सभ्यता की छाप छोड़ेगा? सीनियर सेकेण्डरी कक्षाओं तथा कॉलिजों में मनचाहे विषयों में प्रवेश न मिल पाना कोढ़ में खाज सिद्ध होता है। पब्लिक स्कूलों का शुल्क इतना अधिक है कि लगता है ये विद्या के मंदिर नहीं, व्यापारिक संस्थान हैं।

महानगरों की संचार-व्यवस्था का प्रमुख साधन है दूरभाष व्यवस्था। यह व्यवस्था महानगरवासियों को जितना परेशान करती है तथा पीड़ा पहुंचाती है, वह अकथनीय है। 'रांग नम्बर' तथा 'इस नम्बर का अस्तित्व समाप्त हो गया है, महानगर दूरभाष का स्वभाव है। लाइनों का अनचाहा मेल कराकर बात न करने देने तथा दूसरों की बात सुनने का अवसर प्रदान करना उसकी नीति है। 'डेड' हो जाना उसका बहाना है। शिकायत दर्ज करके टिकट नम्बर देकर महानिद्रा में खो जाना उसका 'रुटीन' है। आप शिकायत पर शिकायत दर्ज कराते रहिए, कर्मचारी की महानिद्रा भंग होगी, तो वह आ जाएगा, अन्यथा लीजिए महानगर में रहने का अभिशाप।

उपसंहार

महानगरों की समस्याओं के मूल-भूत कारण नगर-पिताओं की नगर के विकास कार्यों के प्रति उदासीनता, अधिकारियों का भ्रष्ट आचरण, उच्च अधिकारियों का कर्तव्य के प्रति राजनीतिक दृष्टिकोण तथा कर्मचारियों का कार्य के प्रति उपेक्षा भाव हैं ।जब तक ये कमियाँ रहेंगी, महानगर की समस्याएं कम नहीं होंगी। 

यदि किसी भी परीक्षा में महानगरों की समस्याओं पर निबंध लिखने को कहा जाता है, तो इस निबंध को पढ़कर आप इससे बेहतर निबंध लिख सकते हैं। 

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