नवरात्रि में कन्या पूजन कैसे करे? नवरात्रि कन्या पूजन विधि और महत्व
Kanya Pujan: नवरात्रि में कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। नवरात्रि की अष्टमी और नवमी तिथि को 3 वर्ष से 10 वर्ष की उम्र वाली कन्याओं के पूजन की परंपरा है, इसके बिना नवरात्रि व्रत अधूरा माना जाता है। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार, कन्याएँ साक्षात देवी स्वरूप मानी जाती हैं।
ऐसी मान्यता है, एक कन्या के पूजन से ऐश्वर्य, दो कन्याओं के पूजन से भोग और मोक्ष, तीन कन्याओं के पूजन से धर्म, अर्थ व काम, चार कन्याओं के पूजन से राज्य पद, पांच कन्याओं के पूजन से विद्या, छः कन्याओं के पूजन से छः प्रकार की सिद्धियाँ, सात कन्याओं के पूजन से राज्य, आठ कन्याओं के पूजन से सम्पदा और नौ कन्याओं के पूजन से पृथ्वी के प्रभुत्व की प्राप्ति होती है।
कन्या पूजन की विधि | Knaya Pujan ki Vidhi
कन्या पूजन की विधि निम्नलिखित प्रकार से है-
1. कन्या पूजन में 3 वर्ष से लेकर 10 वर्ष उम्र वाली कन्याओं का पूजन ही करना चाहिए। इससे कम उम्र या अधिक उम्र वाली कन्याओं का पूजन वर्जित है। स्व इच्छानुसार, नौ दिनों तक अथवा नवरात्रि के अंतिम दिन कन्याओं को भोज के लिए आमंत्रित करना चाहिए।
2. कन्याओं को आसन पर एक पंक्ति में बैठाएं।
3. कन्याओं की संख्या 9 हो तो अति उत्तम है, अन्यथा 2 ही सही।
इन सब कन्याओं के नमस्कार मंत्र ये है :-
1. ॐ कौमार्य नमः
2. ॐ त्रिमूर्त्ये नमः
3. ॐ कल्याण्यै नमः
4. ॐ रोहिण्यै नमः
5. ॐ कालिकायै नमः
6. ॐ चण्डिकायै नमः
7. ॐ शाम्भवयै नमः
8. ॐ दुर्गायै नमः
9. ॐ सुभद्रायै नमः
4. इसके बाद उन्हें रुचि के अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें। भोजन के बाद कन्याओं के पैर पानी और दूध से धुलाकर विधिवत माथे पर घी, कुमकुम और अक्षत से तिलक करें तथा दक्षिणा देकर हाथ में फूल लेकर यह प्रार्थना करें–
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम्।
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम्॥
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।
पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते॥
5. तब वह फूल कन्या के चरणों में अर्पण कर उन्हें ससम्मान विदा करें।
6. दक्षिणा में रुपया, सुहाग की वस्तुएं, चुनरी आदि वस्तुएं उपहार में देनी चाहिए।
कन्या पूजन में आपका प्रयास रहना चाहिए की त्रुटियाँ ना हों, लेकिन जो भी त्रुटियाँ आपसे भूलवश हो गयी हैं, उनके लिए क्षमायाचना अवश्य करनी चाहिए।
क्षमायाचना
अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेsहर्निशं मया।
दासोsयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्र्वरि॥१॥
आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम्।
पूजां चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्र्वरि॥२॥
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्र्वरि।
यत्पूजितं मया देवि परिपूर्ण तदस्तु मे॥३॥
अपराधशतं कृत्वा जगदम्बेति चोच्चरेत्।
यां गतिं सम्वान्पोते न तां ब्रह्मादयः सुरा:॥४॥
सापाराधोsस्मि शरणं प्राप्पस्त्वां जगदम्बिके।
इदानीमनुकम्प्योsहं यथेच्छसि तथा कुरू॥५॥
अज्ञानाद्विस्मृतेर्भ्रान्त्या यन्न्यूनमधिकं कृतम्।
तत्सर्व क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्र्वरि॥६॥
कामेश्र्वरि जगन्मातः सच्चिदानन्दविग्रहे।
गृहाणार्चामिमां प्रीत्या प्रसीद परमेश्र्वरि॥७॥
गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादात्सुरेश्र्वरि ॥८॥