यदि मैं प्रधानमंत्री होता पर निबंध

संकेत बिंदु- (1) पूर्व प्रधानमंत्रियों को प्रेरणा स्रोत बनाता (2) कानून व्यवस्था, उद्योग-धंधों और खेती को सुदृढ़ बनाता (3) विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन (4) शिक्षा, स्वास्थ्य का उचित प्रबंध (5) जनसंख्या नियंत्रण और समानता का व्यवहार।

पूर्व प्रधानमंत्रियों को प्रेरणा स्रोत बनाता

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो जवाहरलाल नेहरू के व्यापक दृष्टिकोण को स्वीकार करता, लालबहादुर शास्त्री की विजय-नीति पर चलता, इन्दिरा जी की कूटनीति को अपनाता, मुरारजी भाई का अभयदान देश को देता, सर्वश्री चौधरी चरणसिंह, चन्द्रशेखर, वी.पी.सिंह, देवगौड़ा, गुजराल के अस्थायित्व से इस पद को बचाता तथा राजीव गाँधी के 'किसी को कुछ न समझने' की भावना को अपने मन को स्पर्श भी न करने देता।

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो नेहरू जी की तरह राष्ट्रहित में स्वस्थ तटस्थ विदेशनीति पर चलता। पर साथ ही चाऊ-माऊ जैसे बगल में छुरी घोंपने वाले दोस्तों से सावधान रहता। सर्वश्री लालबहादुर शास्त्री, इन्दिरा गाँधी तथा अटल बिहारी वाजपेयी की तरह पाकिस्तान जैसे धर्माध और उदंड राष्ट्रों को सबक सिखाता। इंदिरा जी की तरह गुट-निरपेक्ष राष्ट्रों का राष्ट्राध्यक्ष बनकर विश्व में भारत का नाम उन्नत करता। भारत को विश्व-गुरु का पद प्राप्ति कराने का प्रयत्न करता तथा पाकिस्तान जैसे वैमनस्य रखने वाले राष्ट्रों की कमर तोड़ता। मुरारजी और अटल जी की 'सबसे दोस्ती, न काहू से बैर' की नीति पर चलता।

राजीव की तरह दूसरों की फंसी में पच्चड़ फंसाकर श्रीलंका में होने वाली भारतीय जनधन, सेना और सम्मान की हुई हानि न होने देता।

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो देश को उद्योग-धंधों से समृद्ध कर स्वावलम्बी बनाता। लालबहादुर शास्त्री के 'जय किसान' नारे से देश की खेती को और अधिक उपजाऊ बनाता, ताकि देश की रीढ़ किसान भारत को शस्य-श्यामला रख सकें और अन्न का भण्डार भरपूर रहे। इन्दिरा की तरह उद्योगों का जाल बिछाता। विदेशों में निर्यात को बढ़ावा देकर राष्ट्र की अर्थ नीति को सुदृढ़ करता। चौधरी चरणसिंह की तरह किसानों के प्रति स्वाभाविक हमदर्दी अपनाता।

कानून व्यवस्था, उद्योग-धंधों और खेती को सुदृढ़ बनाता

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो कानून और व्यवस्था को सुदृढ़ करना मेरा प्रथम कर्तव्य होता। आतंकवाद से जनता को मुक्त कराने के लिए निस्संकोच युद्ध-स्तर पर सैनिक कार्यवाही करता। पूर्व वित्तमंत्री श्री मनमोहनसिंह के फार्मूले को अपनाकर बहु-औद्योगिक कम्पनियों का देश में जाल बिछाता ताकि देश औद्योगिक दृष्टि से समृद्ध हो और बेरोजगारी पर काबू पाया जा सके। उग्रवाद को सदा-सदा के लिए समाप्त करने के लिए 'न होगा बाँस न बजेगी बाँसुरी' के अनुसार इसकी जड़ को ही नष्ट कर देता।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी को प्रोत्साहन

यदि मैं प्रधानमंत्री होता जो जवाहरलाल जी की तरह विज्ञान को प्रोत्साहन देता। इन्दिरा जी की तरह प्रौद्यौगिकी (टेक्नोलोजी) का विकास करता, अटल जी की तरह 'जय विज्ञान' की घोषणा करता। विश्व के महान् वैज्ञानिक राष्ट्रों की श्रेणी में अपनी गणना करवाता। विज्ञान और टेक्नोलोजी के क्षेत्र में प्रोत्साहन देकर भारत को विश्व का समृद्ध देश बनाता।

प्रधानमंत्री संसद् के प्रति उत्तरदायी होता है। इसको शिरोधार्य करते हुए यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो अटल बिहारी वाजपेयी की तरह भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न राष्ट्र बनाता और कूटनीति में विश्व की बड़ी शक्तियों के दबाव में नहीं आता। संसद् का सम्मान करता। संसद् में विपक्ष का आदर करता। मतभेद होने पर भी संसद् को मछली बाजार या कुश्ती का अखाड़ा नहीं बनने देता। प्रत्युत्पन्नमतित्व तथा वाक्-चातुर्य से संसद् की गरिमा को स्थिर रखता।

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो शासन को चुस्त रखता, लाल फीताशाही को समाप्त कर देता। ड्यूटी (कर्तव्य) को धर्म समझकर विवेक से समस्याओं का हल करने वाले अधिकारियों को प्रोत्साहित करता, उन्हें हर प्रकार का संरक्षण देता। न्यायविदों के पदों की तत्काल विधि-पंडितों से पूर्ति करता और ऐसी व्यवस्था करता जिससे जनता को शीघ्र और निष्पक्ष न्याय मिल सके। भारत की रक्षा-व्यवस्था सुदृढ़ करता, आधुनिक युद्ध सामग्री से सेना को सुसज्जित करता तथा सेना को युद्ध-तकनीक का अद्यतन प्रशिक्षण दिलवाता।

शिक्षा, स्वास्थ्य का उचित प्रबंध

भारत का प्रत्येक शिशु, युवक, नागरिक शिक्षित हो, कोई भारतीय अशिक्षित न रहे, इसकी व्यवस्था करता। स्कूल-कॉलिजों की पवित्र मंदिर का रूप देता। 'टेक्नीकल एजूकेशन' शिक्षा का अनिवार्य अंग होता। उच्च-शिक्षा का अवसर केवल योग्य और अधिकारी छात्रों को ही प्रदान करता।

जन-स्वास्थ्य की दृष्टि से देश में डिस्पेंसरी, अस्पताल और चिकित्सा केन्द्रों को प्रोत्साहन देता। प्रदूषण को रोकता। विशेष और संक्रामक रोगों के लिए विशिष्ट अस्पताल खोलता। दूर-संचार माध्यमों द्वारा जनता को स्वस्थ रहने के गुर सिखाता।

प्रकृति-प्रकोप की पूर्व जानकारी देकर तथा समुचित उपाय करके राष्ट्र की हानि कम से कम होने देता। सहकारिता, परिवहन, पर्यटन को बढ़ावा देता। संचार-व्यवस्था सस्ती और चुस्त करता। दूरदर्शन और रेडियो को मनोरंजन, शिक्षा, बहुमुखी जानकारी तथा समाचार का विश्वस्तनीय केन्द्र बनाता।

जनसंख्या नियंत्रण और समानता का व्यवहार

जनसंख्या वृद्धि को रोकने के सशक्त उपाय बरतता। समाचार-पत्रों की स्वतंत्रता को अक्षुण्ण रखता। पंचायत से लेकर संसद् तक की प्रत्येक 'सीट' का चुनाव निश्चित और निर्धारित समय पर करवाकर लोकतंत्र को स्थायित्व देता।

यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो प्रादेशिक सरकारों से भेद-भाव नहीं करता। देश में समान कानून होता। किसी अल्पसंख्यक, विशेष प्रदेश या वर्ग-विशेष को विशेष छूट नहीं होती। वोटों के लिए, भय या लोभवश किसी भी अल्पसंख्यक की पीठ नहीं थपथपाता, उसे मुंह नहीं लगाता, सिर नहीं चढ़ाता। अयोग्य को योग्य स्थान नहीं देता।

मेरे निर्णय सदा देश के हित में मंत्रिमंडल की टीम स्प्रिट से होते। विषम समस्याओं के आ पड़ने पर देश के पूर्व प्रधानमंत्रियों, राष्ट्रपतियों, विपक्ष तथा विद्वानों से विशेष-मंत्रणा करता। उनके सामूहिक निर्णय को कार्यान्वित करता। मैं देश का ईमानदार और सच्चा पुजारी बनने की भावना से चलता।

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