कल करे सो आज कर आज करे सो अब पर निबंध

कल करे सो आज कर, आज करे सो अब पर निबंध - Kal kare so aaj kar aaj kare so ab par nibandh

संकेत बिंदु– (1) सूक्ति का अर्थ (2) गाँधी जी के शब्दों में (3) समय पर किए गए कार्य का महत्त्व (4) कबीर का कथन प्रासंगिक (5) उपसंहार।

सूक्ति का अर्थ

'कल' अर्थात् आज के बाद या भविष्य में आने वाला कोई अनिश्चित दिन या समय। 'आज' अर्थात् जो दिन इस समय चल रहा है, उसी दिन। अब अर्थात् प्रस्तुत क्षण में, इस समय।

इस प्रकार इस सूक्ति का अर्थ हुआ-यदि (आपको) कोई काम करना है तो उसे अनिश्चित दिन या समय के लिए मत टालो, बल्कि उस कार्य को उसी दिन कर लो, जिस दिन मन में विचार उत्पन्न हुआ हो। यदि किसी कार्य को आज करना है तो उसी क्षण करो, जिस क्षण वह विचार करने की बात मन में आई हो।

गाँधी जी के शब्दों में

कबीर दास के इस विचार के विरोध में महात्मा गाँधी का कहना है, 'पुरुषार्थ परिस्थितियों को अपने अनुकूल बनाने में है।' बायरन (Byron) गाँधीजी की बात का समर्थन करते हुए कहता है, “Men are the sport of circumstances, when the circumstances seem the sport of men.” अर्थात् मनुष्य परिस्थितियों की क्रीडा है, जबकि परिस्थितियाँ ही मनुष्य की क्रीडा मालूम पड़ती हैं। डिजराइली (Disraeli) का तो विश्वास है, “Man is not the creature of cirumstances, cirumstances are the creatures of men.” अर्थात् मनुष्य परिस्थितियों का दास नहीं है, परिस्थितियाँ मनुष्य की दास हैं। आर्थर वेनेजली परिस्थितियों की मजाक उड़ाता हुआ कहता है, 'Being born in a stable does not make a man a horse.' अस्तबल में जन्म लेने से कोई मनुष्य घोड़ा नहीं हो जाता। विश्व के सभी महापुरुष विषम परिस्थितियों की अग्नि-परीक्षा में तपकर ही कुन्दन बने हैं। अत: 'पल में प्रलय होएगी' की बात प्रकृति के नियम के विपरीत है और जगत्नियन्ता की इच्छा के विरुद्ध है।

प्रश्न हैं कार्य में सफलता का सिद्धांत। 'नहि प्रतिज्ञामात्रेण अर्थ सिद्धिः' प्रतिज्ञा मात्र से अर्थ-सिद्धि नहीं हो जाती और न ही जान लेने मात्र से कार्य की सिद्धि हो जाती है। (न नाण मित्तेण कज्जनिष्पती : भद्रबाहु) कार्य की सफलता के लिए चाहिए विषय का पूर्ण ज्ञान, एकाग्रता, निरन्तर अभ्यास तथा कार्य के प्रति समर्पण। उत्साह, सामर्थ्य मन में हिम्मत न हारने के गुण कार्य की सिद्धि को निश्चित करते हैं।

समय पर किए गए कार्य का महत्त्व

वस्तुत: महत्त्व है समय पर किए कार्य का I strick when the iron is hot गर्म लोहे पर चोट करने का लाभ है। 'का वर्षा जब कृषि सुखाने।' वृन्द कहते हैं, 'प्रत्येक कार्य समय पर होता है, इसलिए उतावली नहीं करनी चाहिए। कार्य उसी का सिद्ध होता है, जो समय का विचार कर कार्य करता है। वह खिलाड़ी कभी नहीं हारता जो दाँव विचार कर खेलता है।' कृष्ण अर्जुन को कहते हैं, 'उठ और जयद्रथ का वध कर। देखो अभी दिन शेष है। अर्जुन ने आँखें खोली। सूर्य भगवान् को नमस्कार कर बाण गांडीव पर चढ़ा दिया। जयद्रथ मारा गया।

कबीर का कथन प्रासंगिक

क्या इसका अर्थ यह है कि कबीर का कथन असत्य, अव्यावहारिक और असंगत है। नहीं, कदापि नहीं। कबीर तो साधु-संत थे। प्रभु नाम का स्मरण करते और धर्म का उपदेश देते थे। प्रभु नाम का स्मरण करने, ध्यान लगाने, सत्संग का लाभ उठाने की प्रेरणा देते थे। लौकिक धंधों और मायावी विलास में डूबा मनुष्य इस ओर ध्यान ही नहीं देता था। कबीर के आग्रह पर वह साफ इंकार तो नहीं कर पाता, किन्तु आजकल-आजकल की बात कहकर टाल-मटोल करता था।

आज कह हरि कालि भजाँगो, कालि कह फिरि काल्हि।
आज ही कालि करतड़ा औसर जासि चाहि। (कबीर)

कुछ इशारा जो किया हमने मुलाकात के वक्त।
टालकर कहने लगा दिन है अभी, रात के वक्त। (इंशा अल्ला खां)

उपसंहार

बुद्धिमान् बनने के लिए आगामी कल तक टालमटोल मत करो। हो सकता है कि तुम्हारे लिए कल का सूर्य कभी उदित न हो। (पल में परलय होयगी, बहुरि करैगो कब!) कबीर मानव को समझाते हैं– तू इसी प्रकार आजकल-आजकल करता रहा, प्रभु नाम-स्मरण नहीं कर सका तो याद रख मृत्यु (प्रलय का एक अर्थ: मानक हिन्दी कोश खंड 3, पृष्ठ 634) तो तुमसे पूछ कर आएगी नहीं। वह न मानव की स्थिति का ध्यान रखती है, न उसकी आयु का। उसे तो 'हत्या सेती काम। बूढ़ा मरे या जवान।''न जाने कित मारिहै, क्या घर क्या परदेश।' एक ही झपट्टे में बाज जैसे बटेर को मार डालता है वैसे ही मृत्यु भी तेरे जीवन को हर लेगी। तू प्रभु-स्मरण बिना काल का ग्रास बन जाएगा।

प्रियमाण मरता है, बहाना ढूंड लेता काल है। –(श्यामनारायण पांडेय : तुमुल)

'कल करे सो आजकल, आज करे तो अब' कबीर जी का वचन है, पर वेदव्यास जी ने महाभारत में तो बहुत पहले ही लिख दिया था

अदयैव कुरु यच्छ्रेयो मा त्वां कालोऽत्यगादयम्। (शांतिपर्व 175/14)

जो कल्याणकारी कार्य हो, उसे आज ही कर डालिए। वे आगे लिखते हैं।

श्व: कार्यमद कुर्वीत पूर्वाहणे चापराहिणकम्।
नहि प्रतीक्षते मृत्युः कृतमस्य न वा कृतम्॥ –(शांतिपर्व 175/15)

कल किया जाने वाला कार्य आज पूरा कर लेना चाहिए। जिसे सायंकाल करना है, उसे प्रात: ही कर लेना चाहिए; क्योंकि मृत्यु यह नहीं देखती इसका काम अभी पूरा हुआ या नहीं।

शाष्पाणि विचिन्वन्तमन्यत्र गत मानसम्।
कीवोरणामासाद्य मृत्युरादाय गच्छति। –(शांतिपर्व 175/13)

जैसे घास चरते हुए भेड़ों के पास अचानक व्याघ्री पहुंच जाती है और उसे देखकर दबोच लेती है, उसी प्रकार मनुष्य का मन जब दूसरी ओर लगा होता है, उस समय सहसा मृत्यु आ जाती है और उसे लेकर चल देती है।

[महाभारत : पंचम खंड (शांतिपूर्व), पृष्ठ 4872. गीताप्रेस- गोरखपुर]

नर देह ईश्वर ने दिया है, मोक्ष का यह द्वार है।
नर जन्म कर लीजिए सफल, ईश्वर भजन ही सार है। –भोले बाबा-(वेदांत छंदावली भाग 3)

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