गाँधी जयन्ती पर निबन्ध | Essay on Gandhi Jayanti in Hindi

गाँधी जयन्ती पर निबन्ध | Essay on Gandhi Jayanti in Hindi

Gandhi Jayanti par nibandh, essay on gandhi jayanti in Hindi

संकेत बिंदु– (1) राष्ट्रीय पर्व के रूप में (2) गाँधी जी में अद्भुत नेतृत्व शक्ति (3) हरिजन सेवा संघ की स्थापना (4) हिंदू मुस्लिम एकता और सत्य अहिंसा (5) गाँधी जी में विचारों व क्रियाओं का विरोध और सांमजस्य।

राष्ट्रीय पर्व के रूप में

2 अक्तूबर, 1869 को गाँधी जो भारत भू पर प्रगटे थे। इसलिए कृतज्ञ राष्ट्र उनके जन्म दिवस को, राष्ट्रीय पर्व के रूप में मनाकर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। अर्चना के अगणित स्वर मिलकर इस युग के सर्वश्रेष्ठ पुरुष और महामानव की वंदना करता है। राष्ट्र को उनकी देन, उपकार तथा वरदान के लिए 'गाँधी मेलों' द्वारा उनका पुनीत स्मरण करता है।

अपने हाथ से कते सूत की लंगोटी पहनने वाले, चरखे को अहिंसा के प्रतीक के रूप में स्वीकार करके भारत के प्राचीन ग्राम्योद्यम एवं ग्राम्य जीवन की महत्ता को मशीनों के वर्तमान युग में भी उज्ज्वल करने वाले; सहिष्णुता, त्याग, संयम और सादगी की मूर्ति बापू के जीवन की छाप आज हमारे खान पान, रहन सहन, भाव विचार, भाषा और शैली, परिच्छद और परिधान, काव्य और चित्रकारी, दर्शन और सामाजिक व्यवहार धर्म कर्म, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीयता, उनमें से प्रत्येक पर कहीं न कहीं देखी जा सकती है।

गाँधी जी में अद्भुत नेतृत्व शक्ति

गाँधी जी में अदभूत नेतृत्व शक्ति थी। उन्होंने भारत को स्वतन्त्र करवाने के लिए कांग्रेस पार्टी के माध्यम से स्वातंत्र्य आन्दोलन का नेतृत्व किया। सविनय अवज्ञा भंग, असहयोग, विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार; रॉलेट एक्ट, नमक कानून, हरिजन एवार्ड आदि का विरोध राष्ट्रीय आन्दोलन के 'माइल स्टोन' थे। जनता ने उनके नेतृत्व में जेलें भरी, लाठी गोलियाँ खाईं, जीवन बलिदान कर दिए। अहिंसात्मक आन्दोलन को अपनाकर आस्था रूप में खिली जवानी के पुष्प समर्पित किए। 1942 का आन्दोलन “करो या मरो” स्वातंत्र्य समर का निर्णायक आन्दोलन था, जो गाँधी जी के नेतृत्व सफलता का सर्वोत्कृष्ट प्रमाण है।

गाँधी जी ने शराब को शरीर और आत्मा का शत्रु बताकर उसका विरोध किया। हजारों महिलाएँ और पुरुष शराब की दुकानों पर धरना देने लगे। लाखों शराबियों और शराब का आस्वादन करने वालों ने जीवन में मद्य निषेध का व्रत लिया।

हरिजन सेवा संघ की स्थापना

गाँधी जी ने 'हरिजन सेवा संघ' की स्थापना की। हरिजनों के आत्मबल को ऊँचा उठाने के लिए 'अछूतोद्धार' कार्यक्रम शुरू किए। स्वयं हरिजन बस्ती में रहने लगे। अछूतों के प्रति की जाने वाली घृणा को प्रेम में बदला। कुएँ का पानी और मंदिर के पट उनके लिए खुले। 'निषेध' प्रवेश में परिवर्तित हुआ। हरिजन बन्धु न केवल हिन्दू धर्म के अधिभाज्य अंग बने रहे, अपितु गाँधी जी के व्यवहार, कृत्य और कार्यक्रमों से वे सामाजिक और सांस्कृतिक सम्मान के पात्र भी बने।

गाँधी जी ने भारतीयों को स्वदेशी वस्तुओं से प्रेम करना सिखाया। विदेशी वस्त्रों की होली जलवाई। विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने की प्रवृत्ति बनाई। परिणामत: घर घर में चरखा चला। खद्दर का प्रयोग बढ़ा। खद्दर हमारे शरीर की आन, बान और शान बना। खादी आश्रम खुले। करघे चले, लाखों लोगों को रोटी राजी का साधन मिला। राष्ट्रीयता की एक पहचान बनी।

हिंदू मुस्लिम एकता और सत्य अहिंसा

गाँधी जी ने हिन्दू मुस्लिम एकता का श्रीगणेश किया। मुसलमानों को राष्ट्रीयता के प्रवाह में प्रवाहित होने के लिए प्रेरित किया। हिन्दू मुस्लिम ऐक्य के लिए अनेक बार उपवास किए। हिन्दू मुस्लिम भाई भाई उनका आदर्श वाक्य बना। हिन्दुओं ने हठधर्मिता छोड़ी। मुस्लिम सुविधा के लिए अपने धार्मिक सामाजिक, सिद्धान्तों की बलि चढ़ाई। मुस्लिम आत्मा को चोट पहुँचाने वाले कृत्यों से सावधान सचेत रहे। परिणामतः राष्ट्र भक्त अनेक मुसलमान कांग्रेस के कंठहार बने। जैसे– मौलाना अनुल कलाम आजाद, खान अब्दुलगफ्फार खाँ, शौकतअली बंधु।

सत्य, अहिंसा और सादगी गाँधी जी के जीवन की त्रिवेणी थी, जिनका संगम थी उनकी काया। जीवन भर एक लंगोटी में जीवन बिताया। रेल की तीसरी श्रेणी के डिब्बे में यात्रा की। खान पान, वचन और कर्म में सात्विकता बरती। गाँधी जी सत्य में परमेश्वर के दर्शन करते थे, वे उसे मुक्ति मार्ग समझते थे। सत्य को प्राण और आत्मा का विशिष्ट गुण मानते थे। जीवन में सत्य के प्रयोग करके वे मानव से महामानव बन गए। अहिंसा उनके आचरण का मन्त्र था; जीवन शैली का मार्ग था।

गाँधी जी हिन्दी को राष्ट्र की आत्मा मानते थे। उन्होंने दक्षिण में हिन्दी प्रचार और प्रसार के लिए राष्ट्र भाषा प्रचार समिति तथा दक्षिण हिन्दी प्रचार सभा जैसी संस्थानों की नींव डालीं। उनके प्रोत्साहन से लाखों लोगों ने हिन्दी सीखी, हिन्दी को आजीविका का साधन माना।

गाँधी जी में विचारों व क्रियाओं का विरोध और सांमजस्य

विश्वकवि रवीन्द्र नाथ ठाकुर गाँधी जीवन में विचारों और क्रियाओं का विरोध एवं सामंजस्य प्रदर्शित करते हुए लिखते हैं, 'वे स्वयं निर्धन और दरिद्र हैं, किन्तु सबको सुखी एवं सम्पन्न बनाने की दिशा में वे सबसे अधिक क्रियाशील हैं। वे घोर रूप से क्रान्तिकारी है, किन्तु क्रान्ति के पक्ष में वे जिन शक्तियों को जाग्रत करते हैं, उन्हें अपने नियन्त्रण में भी रखते हैं। वे एक साथ प्रतिमापूजक और प्रतिमा भंजक भी हैं। मूर्तियों को यथास्थान रखते हुए वे आराधकों को उच्च स्तर पर ले जाकर प्रतिमाओं के दर्शन करने की शिक्षा देते हैं। वे वर्णाश्रम के विश्वासी हैं, किन्तु जाति प्रथा को चूर्ण किये जा रहे हैं। भाव भावना को वे भी मनुष्य की नैतिक प्रगति का बाधक मानते हैं, किन्तु टालस्टॉय की भान्ति वे सौन्दर्य और नारी को सन्देह की दृष्टि से नहीं देखते। गाँधी जी की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि जो सुधार वे दूसरों को सिखाते हैं, उन सुधारों की कीमत पहले वे आप चुका देते हैं।'

गाँधी जयन्ती, गाँधी जी को स्मरण करने का पुण्य दिन है। इस दिन स्थान स्थान पर 'गाँधी-मेले' लगते हैं । इनमें गाँधी जी के जीवन को झाँकियाँ दिखाई जाती हैं, उनके जीवन की विशिष्ट घटनाओं के चित्र लगाए जाते हैं। गाँधी जी पर प्रवचन और भाषण होते हैं। मुख्य समारोह दिल्ली के राजघाट पर होता है। राष्ट्र के कर्णधार, मुख्यतः राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री और नेतागण तथा श्रद्धालु जन गाँधी जी की समाधि पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। प्रार्थना सभा में राम धुन तथा गाँधी जी के प्रिय भजनों का गान होता है। विभिन्‍न धर्मों के पुजारी प्रार्थना करते हैं, अपने अपने धर्म ग्रन्थों से पाठ करते हैं। श्रद्धा सुमन चढ़ाने और भजन गान का कार्यक्रम 'बिड़ला हाउस' में भी होता है, जहाँ गाँधी जी शहीद हुए थे। गाँधी जी आज भी राजनीतिज्ञों के लिए विघ्ननाशक, मंगलदाता गणेश जी हैं। भोली भाली जनता को ढगने, सम्पन्‍नता और सत्ता का भोग भोगने का गुरु मंत्र हैं।

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