चाणक्य नीति दसवां अध्याय - Tenth Chapter of Chankya Niti in Hindi

Tenth Chapter of Chanakya Niti in Hindi- आचार्य कौटिल्य ने चाणक्य नीति के दसवें अध्याय मे निम्न श्लोकों का वर्णन किया है। यहाँ पर आपको उनके संस्कृत श्लोक और हिन्दी अर्थ के साथ English meaning भी बताया गया है, जिससे आपको भाषा के आधार पर पढ़ने मे कोई समस्या ना हो।

Tenth Chapter of Chankya Niti in Hindi

चाणक्य नीति दसवां अध्याय - Tenth Chapter of Chankya Niti in Hindi

अथ वृध्द चाणक्यस्योत्तरार्ध्दम् ।
धनहीनो न हीनश्च धनिकः स सुनिश्चयः ।
विद्यारत्नेन हीनो यः स हीनः सर्ववस्तुषु ।।१।।

अर्थ- जिसके पास धन नहीं है वो गरीब नहीं है, वह तो असल में रहीस है, यदि उसके पास विद्या है. लेकिन जिसके पास विद्या नहीं है वह तो सब प्रकार से निर्धन है.

Meaning- One destitute of wealth is not destitute, he is indeed rich (if he is learned); but the man devoid of learning is destitute in every way.

दृष्टिपुतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूतं पिबेज्जलम् ।
शास्त्रपूतं वदेद्वाक्यं मनःपूतं समाचरेत् ।।२।।

अर्थ- हम अपना हर कदम फूक फूक कर रखे. हम छाना हुआ जल पिए. हम वही बात बोले जो शास्त्र सम्मत है. हम वही काम करे जिसके बारे हम सावधानीपुर्वक सोच चुके है.

Meaning- We should carefully scrutinise that place upon which we step (having it ascertained to be free from filth and living creatures like insects, etc.); we should drink water which has been filtered (through a clean cloth); we should speak only those words which have the sanction of the satras; and do that act which we have carefully considered.

सुखार्थी चेत्यजेद्विद्यां विद्यार्थी चेत्त्यजेत्सुखम् ।
सुखार्थीनः कुतो विद्या सुखं विद्यार्थिनः कुतः ।।३।।

अर्थ- जिसे अपने इन्द्रियों की तुष्टि चाहिए, वह विद्या अर्जन करने के सभी विचार भूल जाए. और जिसे ज्ञान चाहिए वह अपने इन्द्रियों की तुष्टि भूल जाये. जो इन्द्रिय विषयों में लगा है उसे ज्ञान कैसा, और जिसे ज्ञान है वह व्यर्थ की इन्द्रिय तुष्टि में लगा रहे यह संभव नहीं.

Meaning- He who desires sense gratification must give up all thoughts of acquiring knowledge; and he who seeks knowledge must not hope for sense gratification. How can he who seeks sense gratification acquire knowledge, and he who possesses knowledge enjoy mundane sense pleasure?

कवयः किं न पश्यन्ति कि न कुर्वन्ति योषितः ।
मद्यपाः किं न जल्पन्ति किंन खादन्ति वायसाः ।।४।।

अर्थ- वह क्या है जो कवी कल्पना में नहीं आ सकता. वह कौनसी बात है जिसे करने में औरत सक्षम नहीं है. ऐसी कौनसी बकवास है जो दारू पिया हुआ आदमी नहीं करता. ऐसा क्या है जो कौवा नहीं खाता.

Meaning- What is it that escapes the observation of poets? What is that act women are incapable of doing? What will drunken people not prate? What will not a crow eat?

रंक करोति राजानं राजानं रंकमेवच ।
धनिनं निर्धनं चैव निर्धनं धनिनं विधिः ।।५।।

अर्थ- नियति एक भिखारी को राजा और राजा को भिखारी बनाती है. वह एक अमीर आदमी को गरीब और गरीब को अमीर.

Meaning- Fate makes a beggar a king and a king a beggar. He makes a rich man poor and a poor man rich.

लुब्धानां याचकः शत्रुमूर्खाणां बोधको रिपुः ।
जारस्त्रीणां पतिः शत्रुश्चौराणां चन्द्रमा रिपुः ।।६।।

अर्थ- भिखारी यह कंजूस आदमी का दुश्मन है. एक अच्छा सलाहकार एक मुर्ख आदमी का शत्रु है. वह पत्नी जो पर पुरुष में रूचि रखती है, उसके लिए उसका पति ही उसका शत्रु है. जो चोर रात को काम करने निकलता है, चन्द्रमा ही उसका शत्रु है.

Meaning- The beggar is a miser's enemy; the wise counsellor is the fool's enemy; her husband is an adulterous wife's enemy; and the moon is the enemy of the thief.

येषां न विद्या न तपो न दानं न चापि शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ।।७।।

अर्थ- जिनके पास यह कुछ नहीं है... विद्या. तप. ज्ञान. अच्छा स्वभाव. गुण. दया भाव. ...वो धरती पर मनुष्य के रूप में घुमने वाले पशु है. धरती पर उनका भार है.

Meaning- Those who are destitute of learning, penance, knowledge, good disposition, virtue and benevolence are brutes wandering the earth in the form of men. They are burdensome to the earth.

अन्तः सारविहीनानामुपदेशो न जायते ।
मलयाचलसंसर्गान्न वेणुश्चन्दनायते ।।८।।

अर्थ- जिनके भेजे खाली है, वो कोई उपदेश नहीं समझते. यदि बास को मलय पर्वत पर उगाया जाये तो भी उसमे चन्दन के गुण नहीं आते.

Meaning- Those that are empty-minded cannot be benefited by instruction. Bamboo does not acquire the quality of sandalwood by being associated with the Malaya Mountain.

यस्य नास्ति स्वयं प्रज्ञा शास्त्रं तस्य करोति किम् ।
लोचनाभ्यां विहीनस्य दर्पणः किं करिष्यति ।।९।।

अर्थ- जिसे अपनी कोई अकल नहीं उसकी शास्त्र क्या भलाई करेंगे. एक अँधा आदमी आयने का क्या करेगा.

Meaning- What good can the scriptures do to a man who has no sense of his own? Of what use is as mirror to a blind man?

दुर्जनं सज्जनं कर्तुमुपायो न हि भूतले ।
अपानं शतधा धौतं न श्रेष्ठमिन्द्रियं भवेत् ।।१०।।

अर्थ- एक बुरा आदमी सुधर नहीं सकता. आप पृष्ठ भाग को चाहे जितना साफ़ करे वो श्रेष्ठ भागो की बराबरी नहीं कर सकता.

Meaning- Nothing can reform a bad man, just as the posterious cannot become a superior part of the body though washed one hundred times.

आप्तद्वेषाद्भवैन्मृत्युः परद्वेषाध्दनक्षयः ।
राजद्वेषाद्भवेन्नशो ब्रह्मद्वेषात्कुलक्षयः ।।११।।

अर्थ- अपने निकट संबंधियों का अपमान करने से जान जाती है. दुसरो का अपमान करने से दौलत जाती है. राजा का अपमान करने से सब कुछ जाता है. एक ब्राह्मण का अपमान करने से कुल का नाश हो जाता है.

Meaning- By offending a kinsman, life is lost; by offending others, wealth is lost; by offending the king, everything is lost; and by offending a brahmana one's whole family is ruined.

वरं वनं व्याघ्रगजेन्द्रसेवितं द्रुमालयं पक्वफलाम्बुसेवनम् ।
तृणेषु शय्या शतजीर्णबल्कलं न बन्धुमध्ये धनहीनजीवनम् ।।१२।।

अर्थ- यह बेहतर है की आप जंगल में एक झाड के नीचे रहे, जहा बाघ और हाथी रहते है, उस जगह रहकर आप फल खाए और जलपान करे, आप घास पर सोये और पुराने पेड़ो की खाले पहने. लेकिन आप अपने सगे संबंधियों में ना रहे यदि आप निर्धन हो गए है.

Meaning- It is better to live under a tree in a jungle inhabited by tigers and elephants, to maintain oneself in such a place with ripe fruits and spring water, to lie down on grass and to wear the ragged barks of trees than to live amongst one's relations when reduced to poverty.

विप्रो वृक्षस्तस्य मूलं च सन्ध्या वेदाः शाखा धर्मकर्माणि पत्रम् ।
 तस्मात्‍ मूलं यत्नो रक्षणीयम् छिन्ने मूले नैव शाखा न पत्रम् ।।१३।।

अर्थ- ब्राह्मण एक वृक्ष के समान है. उसकी प्रार्थना ही उसका मूल है. वह जो वेदों का गान करता है वही उसकी शाखाए है. वह जो पुण्य कर्म करता है वही उसके पत्ते है. इसीलिए उसने अपने मूल को बचाना चाहिए. यदि मूल नष्ट हो जाता है तो शाखाये भी ना रहेगी और पत्ते भी.

Meaning- The brahmana is like tree; his prayers are the roots, his chanting of the Vedas are the branches, and his religious act are the leaves. Consequently effort should be made to preserve his roots for if the roots are destroyed there can be no branches or leaves.

माता च कमला देवी पिता देवो जनार्दनः ।
बान्धवा विष्णु भक्ताश्च स्वदेशे भुवनत्रयम् ।।१४।।

अर्थ- लक्ष्मी मेरी माता है. विष्णु मेरे पिता है. वैष्णव जन मेरे सगे सम्बन्धी है. तीनो लोक मेरा देश है.

Meaning- My mother is Kamala devi (Lakshmi), my father is Lord Janardana (Vishnu), my kinsmen are the Vishnu-bhaktas (Vaisnavas) and, my homeland is all the three worlds.

एकवृक्षे समारूढा नानावर्णा बिहंगमाः ।
प्रभाते दिक्षु दशसु का तत्र परिवेदना ? ।।१५।।

अर्थ- रात्रि के समय कितने ही प्रकार के पंछी वृक्ष पर विश्राम करते है. भोर होते ही सब पंछी दसो दिशाओ में उड़ जाते है. हम क्यों भला दुःख करे यदि हमारे अपने हमें छोड़कर चले गए.

Meaning- (Through the night) a great many kinds of birds perch(Sit and rest) on a tree but in the morning they fly in all the ten directions. Why should we lament (Expression of sorrow) for that? (Similarly, we should not grieve when we must inevitably part company from our dear ones).

बुध्दिर्यस्य बलं तस्य निर्बुध्दैश्च कुतो बलम् ।
वने हस्ती मदोन्मत्तः शशकेन निपातितः ।।१६।।

अर्थ- जिसके पास में विद्या है वह शक्तिशाली है. निर्बुद्ध पुरुष के पास क्या शक्ति हो सकती है? एक छोटा खरगोश भी चतुराई से मदमस्त हाथी को तालाब में गिरा देता है.

Meaning- He who possesses intelligence is strong; how can the man that is unintelligent be powerful? The elephant of the forest having lost his senses by intoxication was tricked into a lake by a small rabbit. (this verse refers to a famous story from the niti-sastra called pancatantra compiled by the pandit Vishnusharma 2500 years ago).

का चिन्ता मम जीवने यदि हरिविश्वन्भरो गीयते ।
नो चेदर्भकजीवनाय जननीस्तन्यं कथं निःसरेत् ।।
इत्यालोच्य मुहुर्मुहुर्यदुपते लक्ष्मीपते केवलम् ।
त्वत्पदाम्बुजसेवनेन सततं कालो मया नीयते ।।१७।।

अर्थ- हे विश्वम्भर तू सबका पालन करता है. मै मेरे गुजारे की क्यों चिंता करू जब मेरा मन तेरी महिमा गाने में लगा हुआ है. आपके अनुग्रह के बिना एक माता की छाती से दूध नहीं बह सकता और शिशु का पालन नहीं हो सकता. मै हरदम यही सोचता हुआ, हे यदु वंशियो के प्रभु, हे लक्ष्मी पति, मेरा पूरा समय आपकी ही चरण सेवा में खर्च करता हू.

Meaning- Why should I be concerned for my maintenance while absorbed in praising the glories of Lord Vishwambhara (Vishnu), the supporter of all. Without the grace of Lord Hari, how could milk flow from a mother's breast for a child's nourishment? Repeatedly thinking only in this way, O Lord of the Yadus, O husband of Lakshmi, all my time is spent in serving Your lotus feet.

गीर्वाणवाणीषु विशिष्टबुध्दि- स्तथापि भाषान्तरलालुपोऽहम् ।
यथा सुधायाममरिषु सत्यां स्वर्गड्गनानामधरासवे रुचिः ।।१८।।

अर्थ- यद्यपि मैं देववाणी में विशेष योग्यता रखता हूँ, फिर भी भाषान्तर का लोभ है ही। जैसे स्वर्ग में अमृत जैसी उत्तम वस्तु विद्यमान है फिर भी देवताओं को देवांगनाओं के अधरामृत पान करने की रुचि रहती ही है।

Meaning- Although I have special abilities in Devvani, I still have the greed for interpreting. Just as a good thing like nectar is present in heaven, yet the gods are interested in drinking the devils of devangans.

अनाद्दशगुणं पिस्टं पिस्टाद्दशगुणं पयः ।
पयसोऽष्टगुणं मांसं मांसाद्दशगुणं घृतम् ।।१९।।

अर्थ- खडे अन्न की अपेक्षा दसगुना बल रहता है पिसान में। पिसान से दसगुना बल रहता है दूध में। दूध से अठगुना बल रहता है मांस से भी दसगुना बल है घी में।

Meaning- There is ten times the strength in the grain compared to the standing grain. Milk has ten times the strength in milk. Milk has an insignificant force of ten times that of meat.

शाकेन रोगा वर्ध्दते पयसो वर्ध्दते तनुः ।
घृतेन वर्ध्दते वीर्यं मांसान्मासं प्रवर्ध्दते ।।२०।।

अर्थ- शाक से रोग, दूध से शरीर, घी से वीर्य और मांस से मांस की वृध्दि होती है।

Meaning- Disease is caused by herb, body with milk, semen from ghee and growth of meat from meat.


नवां अध्याय ग्यारहवाँ अध्याय

नोट : आचार्य चाणक्य के द्वारा रचित "चाणक्य नीति" मे लिखित कुछ बातें, विचार और लेख आदि कुछ जाति और धर्म विशेष की भावनाओं को आहत कर सकती हैं। चाणक्य नीति (Chanakya Niti) मे स्त्रियों, महिलाओं और निम्न हिन्दू वर्ग के लोगों की भावनाओं को नीचा दिखाया गया है। यह एक प्राचीन ग्रंथ है जिसमे आचार्य विष्णुगुप्त (कौटिल्य) "चाणक्य" के निजी अनुभव और विचारधारा का उल्लेख है। हम स्त्री और पुरुष मे समानता को मानने वाले हैं। और इस नीति के विरुद्ध जाति प्रथा के विरोधी हैं।

आचार्य चाणक्य के द्वारा लिखित चाणक्य नीति को अक्षरशः आपके समक्ष प्रस्तुत करने के लिए हमने केवल ऐसा किया है। हमारा उद्धेश्य आप तक chanakya niti पहुँचाने  का था ना कि आपकी भावनाएं आहत करने का।

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