कमीज की आत्मकथा पर निबंध

कमीज की आत्मकथा

संकेत बिंदु- (1) शरीर की शोभा के रूप में (2) कपास के रूप में जन्म और परिवार (3) सूत के रूप में परिवर्तित (4) कपड़े के रूप में दुकान में (5) कमीज बनवाने के दर्जी की दुकान में।

शरीर की शोभा के रूप में

तुम्हें क्या सम्बोधित करके पुकारूँ, समझ में नहीं आ रहा। अच्छा छोड़ो इस सम्बोधन के पचड़े को। मैं तो यह कहना चाहती थी कि तुम मुझे पहनकर खुश हो रहे हो न? होगे भी क्यों नहीं ? तुमने शीशे के सामने खड़े होकर जो देख लिया है मुझे अपने शरीर पर धारण करके, तुम कितने अच्छे लग रहे हो। मेरी चमक से तुम्हारा चेहरा खिल उठा है। तुम मेरे कारण प्रसन्नता अनुभव कर रहे हो, पर क्या तुमने कभी यह जानने की कोशिश भी कि की मैं कमीज के रूप में तुम्हारे शरीर की शोभा बढ़ाने के लिए कैसे उपस्थित हो सकी? सुनो! मैं तुम्हें अपनी आत्मकथा सुनाती हूँ। तुम्हें विदित होना चाहिए कि कपास से सूत, सूत से कपड़ा और तब कमीज-यही है मेरी जीवनकथा का सूत्र, जो कृषक, मजदूर और दर्जी की सहायता से विकसित होता है।

कपास के रूप में जन्म और परिवार

कपास के रूप में मेरा जन्मस्थान पृथ्वी है। एक उपजाऊ खेत में अपनी माँ की गोद में पली।धूप और हवा के थपेड़ों से मेरी माँ ने मेरी रक्षा तो की, किन्तु उससे शरीर बिल्कुल सफेद पड़ गया। एक दिन पवन के झोंके ने मुझको माँ से अलग कर दिया। मैं माँ से अलग होकर बहुत दुःखी हुई। मैं मूर्छित-सी पड़ी थी कि अगले दिन एक स्त्री को आते देखा। उसने बड़े प्यार से उठाकर मुझे अपनी टोकरी में डाल लिया। यहाँ मुझे बड़ा आनन्द मिला, क्योंकि उस स्त्री की टोकरी में मेरी बहुत से अन्य बहनें भी थीं। हम सब खेलते-कूदते, हँसते-गाते उसके सिर पर चढ़कर उसके घर आए। भाग्य का खेल निराला है। मुझे प्रातः काल ही अपने साथियों के साथ एक मशीन में डाला गया। हम सब बहुत घबराए। इतने में मैंने देखा कि मेरा उभरा हुआ चेहरा और खिला हुआ शरीर पिस गया। मेरी हड्डियाँ मुझसे अलग कर दी गई। इतने पर भी मेरे प्राण नहीं निकले।

इसके बाद हड्डी रहित शरीर को एक बोरे में बंद कर दिया गया। इस बारे में स्थान कम था और साथी अधिक थे। हमें लट्ठ मार-मार कर नीचे दबाया गया। इस डर से कि कहीं हम निकल न भागें, उस बोरे के मुँह को सी दिया गया। यहाँ पड़े-पड़े मेरा दम घुट रहा था और मैं जिन्दगी के दिन गिनने लगी।

सूत के रूप में परिवर्तित

एक दिन आया, जब मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि हमें किसी वाहन में चढ़ाया गया है। हमारी आँखें बन्द कर दी गई थीं, अत: हम कुछ भी न देख सकते थे। हाँ, जब हमें खोला गया तो हमने अपने को एक नवीन स्थान पर पाया। यहाँ बड़ी-बड़ी मशीनों की आवाज से कान के पर्दे फटे जा रहे थे। कष्ट यहीं तक सीमित न रहा। हमें एक भारी मशीन के आगे धकेल दिया गया। अब मेरा स्वरूप बहुत बारीक होकर अनेक शाखाओं में  विभाजित हो गया और मैं सैकड़ों गज लम्बे सूत के रूप में परिणत हो गई। सूत के रूप में मुझे बड़ी-बड़ी रीलों में लपेटा गया। अब तक स्वरूप बदलने पर भी मेरे वर्ण (रंग) में कोई परिवर्तन नहीं हुआ।अपना स्वच्छ श्वेत रूप मुझे बहुत अच्छा लग रहा था, किन्तु लोगों की रुचि के कारण मेरे कुछ भाग को भिन्न-भिन्न रंगों में रंग दिया गया। इसके बाद एक और मशीन की सहायता से श्वेत और रंग-बिरंगे धागों को अंग-प्रत्यंग के रूप में गूंथ दिया गया और देखते-ही-देखते अत्यन्त चमकीला एवं दर्शनीय वस्त्र तैयार हो गया। इस प्रक्रिया में मुझे बहुत ही कष्ट हुआ था, किन्तु अपना सुहावना रूप देखकर मैंने सन्तोष की साँस ली और पिछले कष्टों को भूल गई।

कपड़े के रूप में दुकान में

अब मुझे ऐसा लगा कि जिस मुहूर्त में मेरा जन्म हुआ था उसके सारे ही ग्रह बुरे थे। चैन की साँस भी न लेने पाई थी कि बड़ी-बड़ी गाँठों में बाँधकर न जाने कहाँ ले जाया गया। इस बार मुझे ऐसा कसा गया कि मैं बेहोश हो गई। जब मुझे होश आया तो मैंने अपने को करीने से सजी हुई एक दूकान पर पाया। यहाँ पर मुझे सब प्रकार की शांति मिली। ग्राहक मुझे खरीदने आते। अपने मुलायम हाथ मुझ पर फेर-फेरकर मेरी चिकनाई और रंग पर मोहित होते।

तुम्हें याद होगा कि एक दिन तुमने अपने पिताजी को विवश करते हुए मुझे खरीदने को कहा। तुम्हारे पिता तुम्हारी बात को टाल न सके। दूकानदार ने तुरन्त कैंची पकड़ी और मुझे काटने लगा। शरीर के कटने से मैंने कर-कर की आवाज कर अपना दुःख प्रकट किया, किन्तु वहाँ मेरे दुःख और दर्द की आवाज सुनने वाला कौन था?

कमीज बनवाने के दर्जी की दुकान में

अगले दिन वे मुझे एक दर्जी की दुकान पर ले गए। उसने मेरे चिकने सुघड़ शरीर के अनेक टुकड़े कर डाले-कोई छोटा, कोई चौड़ा, कोई लम्बा। इतना ही नहीं, उसने मुझे मशीन के नीचे रखकर खूब सुइयाँ चुभाई। चुभाता निकालता चुभाता निकालता। इस प्रकार हजारों जगह सुइयाँ चुभाकर मुझे यातना दी गई। यहाँ तक कि उसने मेरी छाती भी छेद डाली। मनुष्य को एक सुईं चुभ जाए तो कई दिन कष्ट का अनुभव करता है और मेरा शरीर छलनी की तरह छेदा गया, फिर भी मैं जीवित हूँ। मैं तब सुइयाँ चुभने की पीड़ा भूल गई, जब मैंने देखा कि दर्जी ने मेरे अंगों को आपस में जोड़ दिया। मेरा गला, हाथ सब ठीक बना दिए।

शायद मेरे जीवित रहने से दर्जी को चिढ़ आ गई। उसने थोड़े पानी के छींटे डालकर लोहे की एक बड़ी भारी चीज, जो आग-सी तप रही थी, मेरे ऊपर रख दी। मैंने सोचा कि अब मेरी जान अवश्य निकल जाएगी, क्योंकि इससे बच निकलने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा था। उसने कभी मेरा पेट और कभी हाथ फैलाकर सीधा किया। मेरे कान और कलाई को इतने जोर से खींचा कि मैं डर गई कि अब कलाई और कान उखड़े। खींचतान करने और आग से जलने की यह क्रिया कुछ देर तक चलती रही। अन्त में मैंने देखा कि इस खींच-तान और अग्नि से तपने पर मेरा स्वरूप निखर आया, मैं सुन्दर कमीज बन मैं गई। अब मुझे अपने कष्टों की इतनी पीड़ा नहीं, अपितु प्रसन्नता है कि मेरे इस रूप से (कमीज से) तुम्हारी प्रशंसा हो रही है, तुम्हारा व्यक्तित्व जो बना है मेरे कारण। .

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