स्थान भावनगर (गंगाराम और बुलाखी दास नाई की कहानियां)

 स्थान भावनगर (गंगाराम और बुलाखी दास नाई की कहानियां)

प्रातः काल उठकर गंगाराम पटेल तथा बुलाखी दास ने अपने शौच आदि नित्य कर्म किए फिर नाश्ता करके अपना सब सामान संभाला। उसके बाद जूनागढ़ से प्रस्थान किया रास्ते में उन्होंने देखा कि इस क्षेत्र में निवास बड़े धार्मिक, दयालु और धनाढ्य हैं। उन्होंने रास्ते में बहुत से मंदिर भी देखें जहां सदावर्त लगे हुए थे। वहीं महात्माओं तथा भूखे लोगों को भोजन दिया जाता था। इस प्रकार अनेक प्राकृतिक दृश्यों को देखते हुए वह भावनगर में आए। भावनगर गुजरात का एक प्रसिद्ध शहर है। यहां शहर के किनारे एक सुंदर बाग में आकर ठहरे। बुलाखी नाई ने सब सामान ठीक प्रकार से लगा दिया तो उसके बाद गंगाराम पटेल ने ₹50 बाजार से सामान लाने को दिए। बुलाखी दास खाने का सामान लेकर बाजार से जिस समय वापस आ रहा था, तो उसने देखा की एक बहुत बड़ा जुलूस निकल रहा है उसमें एक वृद्ध पुरुष तथा एक वृद्ध महिला भी थी। इनका एक स्थान पर अभिनंदन हो रहा था। बुलाखी दास ने वहां खड़े हुए लोगों से पूछा कि यह जुलूस किस कारण से निकाला जा रहा है?

लोगों ने उसे बताया कि यह वृद्ध और वृद्धा दोनों पति-पत्नी हैं। कई साल पहले इन्हें मृत घोषित कर दिया था। यह शहर के प्रसिद्ध सेठ और सब जनता के प्रिय तथा हितकारी हैं। इनके मरने के समाचार है सब जनता बहुत दुखी थी, परंतु आज यह जीवित यहां आए हैं तो जनता ने इसी उपलक्ष्य में इनका जुलूस निकालकर खुशी मनाई है। जगह-जगह दोनों का अभिनंदन हो रहा है। बुलाखीदास को यह बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ और वह कहने लगा कि कई साल पहले जो व्यक्ति मर चुके थे आज भी जीवित कैसे हो गए हैं? और उनका जुलूस इस उत्साह से क्यों निकल रहा है?

अपने मन में विचार करता हुआ बुलाखी नाई सामान लेकर पटेल जी के पास आया और उनके सामने सामान रखकर कहने लगा- पटेल जी! अब तो मुझे आज्ञा दो। इतनी सुनकर गंगाराम पटेल कहने लगे कि मालूम होता है, तुम कोई अजूबा चरित्र देखकर आए हो। तभी यह बात कह रहे हो अब तुम पहले तो खाना बनाओ खाओ, रोज की भाँति सोते समय मैं तुम्हारी बात का जवाब दूंगा। गंगाराम पटेल की बात सुनकर बुलाखी दास पानी भर कर लाया, चूल्हा जलाया। फिर दोनों ने मिलकर भोजन बनाकर खाया। बुलाखी नाई पटेल जी का बिस्तर लगा दिया और हुक्का भरकर उनके सामने रख दिया। फिर बर्तन साफ कर अपना सब सामान ठिकाने पर लगाया और पटेल जी के पैर दबाने लगा और पटेल जी से बोला कि आपने कहा था कि सोते समय जो भी बात है उसका जवाब दूंगा। अब जवाब दो।

इतनी सुनकर गंगाराम पटेल बोले- बताओ तुमने आज क्या अनोखी बात देखी है? इतना सुनकर बुलाखी नाई बाजार में देखा हुआ वह दृश्य बयान कर दिया। इतनी बात बुलाखी नाई ने सुनकर गंगाराम पटेल- देखो, फौज में नक्कारा और बात में हुँकार जरूरी है। सो तुम जब हँकारा देते रहोगे तब तक मैं बात कहूंगा। जब हुंकारा देना बंद कर दोगे तो मैं भी बात बंद कर दूंगा। यह कहकर गंगाराम पटेल बात कहने लगे और बुलाखी नाई हुंकारा देने लगा। गंगाराम पटेल जी बोले-

इस नगर में एक समय सेठ जीवनलाल रहते थे। चंपा नाम की उनकी पत्नी थी। वह दोनो वृद्ध हो गए थे। परंतु उनके कोई संतान नहीं हुई थी। संतान के दुख में वह दुखी रहते थे। एक दिन चंपा अपने पति से कहने लगी।
दोहा
अब तक मेरे हैं प्रभु, हुई नहीं संतान।
ब्याह दूसरा कीजिए, भली करे भगवान।।
अपनी पत्नी की बात सुनकर सेठ बोले-
दोहा
हो करके रहता वही, जो विधि रचा विधान।
कैसे हो सकती प्रिय, बिना भाग्य संतान।।
हे प्यारी! संतान भाग्य से होती है। यदि मैं दूसरा ब्याह कर लूं और फिर भी संतान ना हो तो क्या होगा। इसलिए ऐसे ही रहना ठीक है। अब तक किसी को बुढ़ापे में ब्याह करके सुख नहीं मिला। इस सेठ ने सेठानी को बहुत समझाया परंतु वह ब्याह के लिए हठ पकड़ गई। अपनी पत्नी का हठ देखकर थोड़े दिन में एक 20 वर्ष की कन्या से विवाह कर लिया। सेठ जी विवाह कर नई वधू को अपने संग लाए तो दरवाजे पर आकर नई पत्नी कहने लगी-
दोहा
अलग रहूंगी सौत से, सुनो नाथ चितलाय।
कमरा मेरे लिए एक, खाली देए कराय।।
नई वधू की ऐसी बात सुनकर सेठ कहने लगा-
दोहा
पत्नी मेरी वृद्ध है, सभी गुणों की खान।
मिलकर के उससे रहो, पाओ सुक्ख महान।।
सेठ ने बहुत समझाया मगर नई पत्नी कहने लगी कि एक म्यान में दो तलवार नहीं समा सकती। सेठ ने परेशान देखकर सब हाल अपनी पहली पत्नी से कहा जिसे सुनकर उसने एक कमरा नई बहू के लिए अलग रहने को खाली कर दिया। नई बहू उस कमरे में आई और रहने लगी।

सेठ का एक मुनीम था जिसकी उम्र लगभग 24 साल की थी। थोड़े दिन में नई बहू की उस मुनीम से आंख लड़ गई तो वह दोनों छिपकर अपनी वासना की तृप्ति करने लगे। मोहल्ले में मुनीम ने खबर कर दी कि सेठ पागल हो गए हैं। धीरे-धीरे सेठ के पागल होने की खबर सब नगर में फैल गई। सेठ ने यह बात सुनी तो उसे बड़ा दुख हुआ, परंतु उसकी समझ में कोई बात नहीं आई। सेठ की पहली पत्नी ने मुनीम और सेठ की पत्नी का व्यवहार ताड़ लिया था। वह अपने पति से कहने लगी कि तुम्हारे मुनीम ने तुम्हारे पागल होने की खबर उड़ाई है। उसके नई बहू से दूषित संबंध हैं। यह लोग किसी षड्यंत्र से हम तुम दोनों को मरवा कर आप आनंद से जीवन व्यतीत करना चाहते हैं। सेठ ने कहा कि अब मैं होशियार रहूंगा।

मुनीम और सेठ की नई पत्नी आपस में एक साथ रहती थी। एक दिन मुनीम ने सेठ की नई पत्नी को समझाया कि कहीं ऐसा ना हो कि पहली पत्नी को सेठ सभी जायदाद दे दें। इसलिए उचित है कि सेठ से उसकी संपत्ति को अपने हक में लिखवालूं। सेठ की नई पत्नी ने भी इस का समर्थन किया। मुनीम उस शाम को शराब पीकर आया और एक लिखा हुआ पत्र सेठ के सामने रख दिया। उसने सेठ को पिस्तौल दिखाकर जबरन उस कागज पर हस्ताक्षर करा लिए।
सेठ ने मरने के डर से उस पर हस्ताक्षर कर दिए। अब मुनीम और सेठ की नई पत्नी स्वच्छंद होकर रहने लगे। फिर एक दिन मुनीम ने सेठ को भोजन के साथ विष खिलाकर एक बड़े नाले में बहा दिया, और दूसरे दिन मोहल्ले में खबर उड़ा दी कि सेठ पागल थे। ना जाने वह रात में कहां चले गए। यह खबर सुनकर लोग बहुत दुखी हुए। अब पहली बहू के दुख का ठिकाना भी ना रहा। बेचारी बहुत रोई मगर क्या करती?

एक दिन उस मुनीम ने सेठ के कपड़ों में खून के कुछ दाग लगाकर और हड्डियों का एक पंजर तलाश कर के मोहल्ले में एक खबर सुनाई की। जंगल में सेठ की हड्डियां और वस्त्र मिले हैं, ऐसा मालूम होता है कि उन्हें जंगल में कोई जानवर खा गया। मोहल्ले के लोग वहां गए और सेठ के कपड़ों तथा हड्डियों के पंजर को उठा लाए और वैदिक रीति से दाह संस्कार कर दिया।
अब सेठ की नई पत्नी और मुनीम, पति-पत्नी की भाँति मकान में निडर होकर रहने लगे। और सेठ की पहली पत्नी को दुख पहुंचाने लगे। वह कहने लगी मैं सेठ की पत्नी हूँ। उसकी संपत्ति मालिक हूं। मुझे सेठ के मरने की बात में भी बहुत लोगों का षड्यंत्र दिखता है। मैं यह सब पुलिस को बताऊंगी। यह सुनकर मुनीम और सेठ की नई पत्नी ने विचार किया कि अभी मामला ताजा है। इसलिए थोड़े दिन तो इसे सुख से रखना चाहिए। जिससे यह सेठ को भूल जाए फिर इसका भी कुछ इंतजाम कर देंगे। यह विचार कर सेठ की नई पत्नी ने बनावटी प्रेम दिखाकर उसकी खुशामद की और कहा तुम मुझसे बड़ी हो मैंने बड़ी भूल की है, जो तुम्हें कष्ट दिया है, अब कष्ट नहीं दूंगी तुम्हें बड़ी बहन बना कर रखूंगी।

जिस नाले में सेठ को जहर खिलाकर फेंका गया था, आगे चलकर उस के किनारे एक महात्मा की कुटिया थी। महात्मा की नजर सेठ की लाश पर पड़ी तो उसने उसे निकलवाया। उसने देखा कि यह मरा नहीं है, बल्कि किसी ने जहर खिला दिया है। महात्मा ने जड़ी बूटियों से उसका इलाज किया तो सेठ का विष उतर गया और उसे होश आ गया। महात्मा ने उसे अच्छी तरह रखा जिससे कुछ दिनों में वह स्वस्थ हो गया। वह सेठ महात्मा का शिष्य होकर उसी स्थान पर भगवान का भजन करने लगा। अब उसका हृदय समाज से ऐसी घृणा करने लगा कि उसने अपने घर जाने का भी विचार छोड़ दिया। उधर मुनीम आनंदपूर्वक सेठ की नई पत्नी के साथ बिहार करता रहा। एक दिन उसने पहली पत्नी को भी विष देकर नौकर से रात में उसी नाले में फिंकवा दिया और महल में खबर करदी की सेठ की मृत्यु से दुखी होकर उसकी पत्नी भी ना जाने कहां चली गई है। जब यह बात मोहल्ले वालों ने सुनी तो उन्हें बहुत दुख हुआ। परंतु करते भी तो क्या करते?

सेठ की वृद्धा पत्नी की लाश भी उस नाले में बहती हुई उसी महात्मा की कुटिया के पास पहुंची तो महात्मा ने उसे भी निकलवाया और उसका भी जड़ी बूटियों से इलाज कर विष दूर कर दिया। जब उसे होश आया तो सेठ ने बताया कि यह तो मेरी पत्नी है। यह सुनकर महात्मा बहुत प्रसन्न हुआ और स्त्री को भी वही रखा। जब वह स्वस्थ हो गई तो उसने भी उस कुटी पर रहकर भगवान का भजन करने का विचार किया और अपने पति के सहित कुटी पर रहकर भगवान का भजन तथा महात्मा और अपने पति की सेवा करने लगी। महात्मा ने उन दोनों को समझाया कि जल्दी से जल्दी ही ऐसा समय आने वाला है कि मैं तुम्हें इस कुटी से तुम्हारे मकान को ले चलूंगा। पति-पत्नी दोनों ने महात्मा की आज्ञा शिरोधार्य मानकर उनके वचनों को मानने का वचन दिया।

थोड़े दिन के बाद मुनीम ने सोचा कि सेठ और वृद्ध सेठानी का अंत हो चुका है। मेरी इन बातों का पता सेठ की नई पत्नी को ही है। यदि इसको जा से मरवा दिया जाए, तो मैं इस सेठ की सभी जायदाद का अकेला मालिक बन जाऊं। उसने जिस नौकर से सेठ-सेठानी को जहर दिलवाया था। उसे ₹5000 देने का वादा करके अपनी ओर मिला लिया। रात में सेठ जी की सोती हुई नई पत्नी को भी चाकू से गोद दिया और उसी नौकर से गड्ढा खोदवा कर उसमें गढ़वा दिया। जब नौकर ने ₹5000 मांगे तो उसे मारने को पिस्तौल दिखा दी नौकर मुनीम की मनसा समझ गया और वहां से भागकर पुलिस के दफ्तर में गया। और सेठ, सेठानी को विष देने तथा नई सेठानी को जान से मारने की सभी बातें पुलिस को बताई। पुलिस अधिकारी मकान पर छापा मारकर सेठ की नई पत्नी की लाश गधे से निकालकर मुनीम को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया। 

जब यह समाचार एक दिन महात्मा ने कुटी पर सुना तो उसने सेठ-सेठानी को सम्मानपूर्वक उस नगर में भेजा। लोगों ने सेठ-सेठानी को पहचानकर बड़ी खुशी मनाई और उसी खुशी में जुलूस निकाल कर उनका जगह-जगह पर सम्मान किया। हे बुलाखी! लोग सच कहते हैं, बुराई का फल बुरा होता है और भलाई का भला। तुम जिन सेठ सेठानी का सम्मान होते हुए देख आए हो वह यही दोनों पति-पत्नी है। जिन्हे उनके मुनीम ने षड्यंत्र करके मृत घोषित करवाया था। देखो बुढापे में ब्याह करना बहुत बुरी बात है। दो पत्नी वाले किसी पुरुष को सुख नहीं मिलता, अब रात बहुत हो गई है इसलिए सो जाओ।
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