स्थान जूनागढ़ (गंगाराम पटेल और बुलाखी दास नाई की कहानियां)

स्थान जूनागढ़ – गंगाराम पटेल और बुलाखी दास नाई

 जब बुलाकी नाई ने गंगाराम पटेल के साथ द्वारिका सुदामापुरी, सोमनाथ, मालिका तीर्थ तथा सत्ताधार आदि के दर्शन कर लिए और लौटने का विचार किया तो गंगाराम पटेल कहने लगे-
दोहा
होता है ना हर जगह, आना बारंबार।
आए हैं तो देख लें, चलकर के गिरनार।।
गंगाराम पटेल जी कि इतनी बात सुनकर बुलाखीदास नाई कहने लगा हे पटेलजी यह बात तो मैं भी आपसे कहने वाला ही था। क्योंकि
दोहा
सुन रक्खा गिरनार है, अतिशय शोभाखान।
गुफा अनेकन है वहां, संतन के स्थान।।
दर्शन वहां के किए से, दूर हो तो सब पाप।
इस कारण चलकर वहां, दर्शन कीजै आप।।
आपस में ऐसी सलाह मिलाकर बुलाखी नाई ने सब सामान तैयार किया और अपना प्रस्थान गिरनार को किया। चलते-चलते वह नरसी जी की पावन जन्मभूमि जूनागढ़ में पहुंच गए। वहां उन्होंने दामोदर कुंड में स्नान किया। नरसी जी का जन्म स्थान, पुराना किला, गिरनार पहाड़ पर भतृहरि गुफा, राम मंदिर, जैन मंदिर, गोमुख, अम्बाजी का मंदिर, गोरख धूना, दत्तात्रेय जी की चरण पादुका, कमंडल, कुंड, मुचुकुंद गुफा इत्यादि देख कर वह जूनागढ़ लौट आए और एक बगीची पर अपना आसन लगा दिया।

गंगाराम पटेल ने बुलाखी को सामान लाने के लिए रुपए दिए। बुलाखी बाजार को गया और वहां से अपना सामान खरीद कर बगीची की ओर आ ही रहा था, तो शहर के बाहर उसने एक स्वच्छ तालाब पानी से भरा हुआ देखा। उसमें शोभायमान कमल के फूल खिले हुए थे तालाब की ओर से संगीत की मनोहर ध्वनि तो आ रही थी, परंतु वहां गाने बजाने वाला कोई भी दिखाई नहीं दे रहा था। बुलाखी को बड़ा आश्चर्य हुआ और वह सामान लेकर सीधा बगीची पर आया और अनमना सा बैठ गया बोला मुझे घर जाना होगा।

बुलाखी नाई की बात सुनकर गंगाराम पटेल ने कहा कि अरे अब तो हम अपने घर को ही लौटेंगे। पहले भोजन बनाओ, खाओ फिर रोज की भांति आज भी सोते समय तुम्हारी समस्या का निदान कर तुम्हें संतुष्ट कर लूंगा। तब बुलाखी नाई पानी भरकर लाया बर्तन साफ किए फिर चूल्हा जलाकर खाना बनाया और खाया। बुलाखी ने पटेल जी का बिस्तर लगा कर हुक्का भर के रख दिया। सब सामान ठीक प्रकार से रखकर बुलाखी, पटेल जी के पांव दबाने लगा। तब पटेल जी ने मुस्कुराते हुए कहा भाई बुलाखी! आज तुम जो अनोखी बात देखकर आए हो वह मुझे बताओ। बुलाखी नाई कहने लगा कि आज मैं जब खाने पीने का सामान लेकर वापस आ रहा था, तो रास्ते में शहर के बाहर एक विशाल तालाब देखा था। जो स्वच्छ जल से भरा हुआ था। उसमें सुंदर सुहाने कमल खिल रहे थे कुछ लोग नौका विहार कर रहे थे। उस तालाब की ओर से गाने बजाने की बड़ी मनोहर ध्वनि सुनाई दे रही थी। परंतु वहां कोई गाने बजाने वाला दिखाई नहीं दे रहा था, ना वहां कोई ऐसा स्थान ही था जहां गाना बजाना हो सकता है। यह देख कर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। आप कृपा करके बताएं कि यह कौन सा तालाब है?

गंगाराम पटेल कहने लगे एक ब्राह्मण था। जिसका विवाह नहीं हुआ था। उसने मन में  विचार किया कि भगवान ने अच्छा ही किया जो कि मैं गृहस्थी की सब बाधाओं से दूर हूं। तब मुझे परलोक सुधारना चाहिए। वह अपना घर छोड़कर निकल पड़ा और महात्मा हो गया। उसने बहुत कठोर तप किया किसी भी सांसारिक वस्तु पर ध्यान न देकर सदैव भगवान में लीन रहने लगा। कई-कई दिन निराहार उपवास किए और पानी के सहारे ही अपना जीवन निर्वाह किया। उसकी इस कठिन तपस्या से इंद्र का सिंहासन हिलने लगा। इंद्र भयभीत हो गए और नारद जी से कहने लगे कि हे मुनिदेव क्या कारण है कि आज मेरा सिंहासन चल रहा है।

देवराज की यह बात सुनकर नारदजी कहने लगे
दोहा
एक तपस्वी तप करे, जूनागढ़ दरम्यान।
तपसे सिंहासन हिला, सत्य करूं बखान।।
पूरन तप वह जो करे, लीजे आप विचार।
इंद्रासन पर आयके, कर ले वह अधिकार।।
देव ऋषि की बात सुनकर इंद्र चिंतित हुए और नारद जी से बोले
दोहा
मुझसे जो मुनिदेव यह, सिंहासन छिन जाय।
बात बिगड़ जाय सभी, अब कछु करो उपाय।।
इंद्रदेव की बात सुनकर नारदजी कहने लगे कि आप कुछ उपाय करें। साहस खोने से कोई लाभ नहीं, उनके जाने के पश्चात इंद्र ने विचार किया कि किसी अप्सरा को बुलाकर उस तपस्वी के पास भेजा जाए, तो उसका तप भंग करेगी। अप्सरा के प्रेम में आसक्त होकर तप से विमुख हो वह तपस्वी अप्सरा के साथ बिहार करने लगेगा। तो उसकी शक्ति क्षीण हो जाएगी।

इस प्रकार विचार करके इंद्रदेव ने एक अति चतुर अप्सरा को बुलाकर कहा जूनागढ़ में एक तपस्वी तपस्या कर रहा है। जिससे मेरा सिंहासन ही हिल गया है। अब तुम अपने समाज सहित वहां जाओ और उस तपस्वी को मोहित करके उसको सबसे भ्रष्ट करो।

इंद्रदेव के कहे अनुसार अप्सरा अपने समाज सहित उस स्थान पर आई जहां तपस्वी तपस्या कर रहा था।

उसने अपनी माया से एक सुंदर उपवन और एक विस्तृत सुंदर सरोवर की रचना की। जिसमें सुंदर कमल के फूल खिले हुए थे और भंवरे गुंजन कर रहे थे। इसके बाद उस सुंदर उपवन में अपने साथियों के सहित अप्सरा ने संगीत आरंभ किया था। जिन्होंने नाना प्रकार के साज बजाए। अप्सरा ने पंचम स्वर में मन को मोहने वाली रागिनी गाई तो सारा उपवन गूंज उठा और जो तपस्वी समाधि लगाए बैठा था। उसकी समाधि टूट गई और उसका ध्यान और अप्सरा के संगीत की ओर गया। वह तपस्वी अपना आसन छोड़कर उधर को चल दिया, जिधर से अप्सरा के गाने की मधुर आवाज आ रही थी।

जब तपस्वी अप्सरा के निकट पहुंचा तो अप्सरा ने उसको कनखियों से देखा। अब उसने और भी अधिक मधुर गायन से उसके चित्त को अपनी ओर आकर्षित किया। जिसके बाद तपस्वी भगवान का ध्यान करना बिल्कुल भूल गया और उस अप्सरा के वशीभूत हो कहने लगा।
कुंडली
बतलादे तू कौन है, हे मृगनैनी नारि।
भूला मैं जप-तप सभी, तेरी छटा निहारि।।
तेरी छटा निहारि, हृदय में मैं अपने हरसाया।
सुन तेरा संगीत यहां तक, आसन से आया।।
एक बार फिर मुझे, रागिनी मधुर सुना दे।
आई है किस लिए, यहां पर तू बतला दे।।
तपस्वी की इतनी बात सुनकर अप्सरा कहने लगी
कुंडली
आई हूं स्वर्गलोक से, सुन तपस्वी चितलाय।
सेवा करने आपकी, स्वामी दिया पठाय।।
स्वामी दिया पठाय, दरशकर चित हरसाया।
धन्य हमारा भाग, आपका दर्शन पाया।।
जो कुछ आज्ञा देउ करूं तो अब हूं सेवकाई।
इच्छा पूरन करन आपकी हूँ मैं आई।।
अप्सरा की ऐसी बात सुनकर तपस्वी बड़ा आनंदित हुआ। बोला मैंने अब तक संसार में तुम्हारे समान सुंदर स्त्री नहीं देखी और ना कोई ऐसा सुरीला संगीत सुना है।

मेरा मन तुम्हारी सुंदरता को देखकर ऐसा मोहित हो गया है। कि मैं यही चाहता हूं कि तुम सदा मेरे नेत्रों के सामने रहो और अपने मधुर संगीत द्वारा मेरी इच्छा पूर्ण करती रहो।

तपस्वी की यह बात सुनकर अप्सरा कहने लगी आप एक तपस्वी हैं आपकी इच्छा पूरी करना तो मेरा परमकर्तव्य तथा धर्म है। मैं आपकी आज्ञा को शिरोधार्य कर पालन करूंगी। अब आप मुझे सेवा की आज्ञा तो दीजिए। मैं वही करूंगी जिसे करके आपको सुख पहुंचे।

अप्सरा की यह बात सुनकर तपस्वी कहने लगा यदि तुम यहां उपवन में रह अपने संगीत एवं सहवास से मेरी इच्छा पूरी करोगी तो समाज वाले देखकर हसेंगे। अतः किसी अदृश्य स्थान में तुम मेरी कुछ समय तक इच्छा पूरी कर सको तो मैं अपने को अत्यंत भाग्यशाली समझूंगा।

अप्सरा ने यह बात सुनी तो समझ गई कि अब तो तपस्वी मेरे वश में है। इससे अपने बिगाड़ का कुछ भय नहीं और अब मैं आसानी से इंद्रदेव का कार्य पूरा कर सकूँगी। वह कहने लगी मैं कोई साधारण स्त्री नहीं हूं। स्वर्गलोक की रहने वाली हूं। अब तक मैं किसी पुरुष पर मोहित नहीं हुई हूं और ना किसी के साथ बिहार ही किया है। यदि आप सदैव मेरे साथ बिहार करने का प्रण करें तो मैं आपकी इच्छा पूरी कर सकती हूं। नहीं तो अपने स्थान को चली जाऊंगी।

अप्सरा की इतनी बात सुनकर तपस्वी बोला कि मेरी भी यही इच्छा है, जो तुम्हारी है। मेरा भी विवाह नहीं हुआ और ना मैंने अब तक किसी स्त्री पर दृष्टि डाली है। मेरी इच्छा है कि मेरा तुमसे आजीवन बिहार होता रहे तो अच्छा है। इतनी सुनकर अप्सरा कहने लगी कि ऐसा सुख तो आप जैसे बड़े तपस्वी जनों को ही प्राप्त हो सकता है, सबको नहीं। अब मैं आप जैसी इच्छा कर रहे हैं वैसा ही सदैव करूंगी।

अपने मन में विचार कर अप्सरा ने इंद्रदेव के कार्य को सिद्ध करने का उचित उपाय किया। उस सरोवर के नीचे उसने अपनी माया से एक ऐसे बहुत सुंदर भवन की रचना की जो कि दिखाई नहीं देता था। उस भवन के ऊपर जल भरा हुआ था। जिसमें कि सुहाने सुहाने कमल भी खिल रहे थे। भवरे फूलों पर गुंजार कर रहे थे।

भवन में अनेकों मणियाँ लगी हुई थी। जिनसे की अद्भुत प्रकाश होता था। स्वर्ग जैसे समस्त सुखों के साधन उस भवन में उपलब्ध थे। अप्सरा अपने साथियों सहित उस तपस्वी सहित निवास करने लगी। अन्य कक्षाओं में अपने साथियों को ठहराया और स्वयं अप्सरा तपस्वी से बिहार करने लगी। जब भी तपस्वी को संगीत सुनने की इच्छा होती है तभी अप्सरा अपने साथियों सहित वहां गाना बजाना आरंभ कर देती है। हे बुलाखीदास! इस तालाब में जल के नीचे उसी अप्सरा द्वारा बनाए हुए माया का भवन है। जो किसी को दिखाई नहीं देता और वहां अप्सरा उस तपस्वी सहित बिहार करती है। उस अप्सरा के साथी भी दूसरे कमरे में रहते हैं। तुमने जो गाने बजाने की आवाज सुनी है वह उसी अप्सरा और उसके साथियों की है। अब तुम्हारी बात का जवाब मिल गया रात भी अधिक हो गई है अतः अब सो जाओ क्योंकि सवेरे जल्दी उठना है।
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