स्थान मेहसाना (गंगाराम पटेल और बुलाखीदास नाई की कहानियां)

स्थान मेहसाना (गंगाराम पटेल और बुलाखीदास नाई की कहानियां)

प्रातः काल के 4:00 बजे के करीब मुर्गे ने कुकड़ू कूँ की आवाज लगाई। जिसे सुनकर गंगाराम पटेल और बुलाखीदास दोनों उठ बैठे उन्होंने अपना शौच आदि नित्य कर्म किया। कुछ नाश्ता करके अपना सब सामान संभाल कर भावनगर से प्रस्थान किया। मार्ग के किनारे के दृश्यों को देखते हुए वह घोड़े पर जल्दी-जल्दी जा रहे थे, क्योंकि अब तो उन्हें अपने घर पहुंचने की फिकर थी। जहां प्यास लगती थी वहां कुएँ से जल खींच कर पानी पी लिया करते थे। आज तो उन्होंने मार्ग में कहीं विश्राम भी नहीं किया। वह बीकानेर होते हुए सुरेंद्र नगर आए वहां से मार्ग तो अहमदाबाद की तरफ जाता था और दूसरा मेहसाना की ओर अहमदाबाद का मार्ग छोड़कर वह मेहसाना के मार्ग पर चले।

चलते-चलते सांयकाल वह मेहसाना आ गए। नगर के किनारे पर ही संत का एक आश्रम था। गंगाराम पटेल ने वहां के महात्मा से अपने ठहरने का विचार प्रकट किया तो उन्हें ठहरने की आज्ञा मिल गई। पटेल जी और बुलाखी ने देखा कि आश्रम पर अनेक संत महात्मा ठहरे हुए हैं। कोई वैष्णव है, तो कोई सन्यासी, कहीं पर उदासीन अपना धूनी जमाए चिमटा गाड़े हुए आसन पर बिराज रहे हैं। अनेक भक्त संतों की सेवा में लगे हुए हैं। पटेल जी अपना सामान महात्माओं से अलग एक ओर कुएं के पास रखवाया। उसके बाद बुलाखी को ₹50 देकर कहा कि तुम सामान लेकर जल्दी आना कहीं ऐसा ना हो कि तुम बाजार में जाकर इधर उधर घूमते रहो अगर बाजार बंद हो गया और सामान ना मिला तो भूखा ही मरना पड़ेगा।

बुलाखी रुपए लेकर बाजार गया वहां उसने अपना आवश्यक सामान खरीदा और जब वह आ रहा था तो उसने देखा कि एक अच्छा जुलूस जा रहा है। लोगों से पूछने पर पता चला है कि वह राजा के राजगुरु हैं कभी-कभी यहां राजा के महल में इसी भाँति जुलूस के साथ धूमधाम से आते रहते हैं। बुलाखी ने देखा राजगुरु बहुमूल्य वस्त्र पहने हुए हैं। साथ में बाजे बज रहे हैं। उसी समय वहां एक आदमी आया जिसके साथ 4 सिपाही थे। उस आदमी के आदेश से सिपाहियों ने राजगुरु को पकड़कर उसके हाथों में हथकड़ी डाल दी। बुलाखी यह सब देखता रहा जुलूस में हलचल मच गई लोगों ने राजा को खबर की। राजा भी वहां आया और उसने राजगुरु को प्रणाम तो किया, परंतु उन्हें सिपाहियों से मुक्त नहीं करा सका। यह देख बुलाखी को बड़ा आश्चर्य हुआ कि मामूली आदमी के कहने से सिपाहियों ने राजगुरु के हथकड़ी डाल दी और राजा अपने गुरु को मुक्त नहीं करा सका। बुलाखी सोच रहा था कि राजगुरु को गिरफ्तार करने वाला यह कौन आदमी हो सकता है? यों विचार करता हुआ बुलाखी अपना सामान लेकर संत के आश्रम पर आया और पटेल जी के सामने सब सामान रख कर कहने लगा कि अब मैं अपने घर जाता हूं। मेरी राम-राम लो।

पटेल जी बोले- हे बुलाखी! मैं समझता हूं तुम अवश्य कोई अजूबा चरित्र देखकर आए हो। अभी पहले भोजन का प्रबंध तो करो फिर सोते समय तुम्हारी बात को सुन लूंगा और उसका जवाब दूंगा। तब बुलाखी ने कुएं से पानी खींचा। बर्तन व नित्य की भांति मिलजुल कर भोजन बनाकर खाया फिर बुलाखी ने पटेल जी का बिस्तर लगा दिया। हुक्का भर कर रख दिया। पटेल जी हुक्का पीने लगे। तब बुलाकी ने बर्तन साफ करके रखें और सब सामान चौकशी के साथ रख दिया और फिर पटेल जी के पैर दबाने लगा। जब पटेल जी को नींद आने लगी तो बुलाखी बोला कि आज तो मेरी बात का जवाब दिए बिना ही सोने लगे।

इतनी सुनकर पटेल जी कहने लगे मैं थक गया था। इसलिए नींद आने लगी मुझे तुम्हारी बात का ध्यान नहीं रहा था। खैर अब जल्दी बताओ कि तुमने आज क्या देखा तब बुलाखी ने बाजार में जुलूस देखने और उसके बाद राजगुरु की गिरफ्तारी की बात बताई। और अंत में बोला-हे पटेल जी! मुझे यह आश्चर्य हुआ कि राजा की तो शक्ति सबसे बड़ी होती है। राजगुरु राजा के भी पूज्य हैं, तो ऐसा क्या कारण है कि राजगुरु को एक मामूली आदमी ने गिरफ्तार करा दिया और राजा यह सब कुछ देखता ही रहा।

बुलाखी दास नाई की बात सुनकर गंगाराम पटेल बोले- हे बुलाखी! तुम नित्य की भाँति हुंकारा देते जाना तभी मैं अपनी बात को सुनाऊंगा। बुलाखी को समझा कर गंगाराम पटेल ने बात करनी शुरू की और वह हूँकारा देने लगा। पटेल जी बोले- हे बुलाखी! अब मैं तुम्हारी शंका का निवारण कर रहा हूं। सुनो एक नगर में एक पुरुष अपनी पत्नी सहित रहता था। वह अपने परिवार में पति-पत्नी दो ही प्राणी थे।

एक दिन प्रातः काल पत्नी सोते से जाग कर पति से कहने लगी-
दोहा
सोवत में सपनों लखों, सुनो नाथ चितलाय।
भिक्षा मांगने को गयो, एक भिखारी आय।।
भिक्षुक को जब मैं गई, उठकर भिक्षा देन।
उंगली बासे छू गई, हृदय भई बेचैन।।
मेरे पतिव्रत धर्म पर, आय गई है आंच।
उंगली मेरी काट दो, तुम्हें बताऊं सांच।।
अपनी पत्नी की इस प्रकार की बात सुनकर उसका पति बोला कि
दोहा
भीख भिखारी को दई, सपने में सुकुमारि।
उंगली बासे छू गई, तोका भयो बिगारि।।
अरे यह तो सपने की बात है। अगर सपने में किसी भिखारी को भीख देने पर उंगली छू गई तो इसमें कोई पाप नहीं है। ना तेरे पतिव्रत धर्म पर ही कुछ आँच आती है। इसलिए यह उंगली काटने की बात तेरी व्यर्थ है। उसने अपनी पत्नी को समझा कर उसके पतिव्रत धर्म की प्रशंसा की। और अपने अपने नित्य कर्म दोनों ने किए। बाद में पत्नी ने भोजन बनाकर पति को खिलाया और कहने लगी कि यह हमारे कपड़े हैं। इन्हें बाजार से अभी सिला लाओ। वह आदमी अपनी पत्नी के कपड़े लेकर बाजार सिलाने गया। एक दुकान के आगे एक दर्जी बैठा कपड़े सी रहा था। वही उसकी मशीन तथा सब सामान रखा था। उसी के पास जाकर उसने कहा कि हमारी पत्नी के यह कपड़े तुम्हें आज ही सीने हैं। दर्जी ने वह कपड़ा उससे ले लिया और दिए हुए नाप के अनुसार कपड़ा उसी समय काट दिया और बचा कपड़ा व कपड़े की कतरन देकर बोला।
दोहा
कपड़ा यह लो प्रथम तुम, घर रख आओ जाय।
कपड़े तब मैं सीऊंगा, सुन लो कान लगाय।।
यहां ईमानदारी का काम है। मैं किसी की कतरन भी अपने यहां नहीं रहने देता। इतनी बात दर्जी की सुनकर वह पुरुष कहने लगा
दोहा
कपड़े तुम सी दो मेरे, सुनो लगाकर कान।
कतरन रखने से कोई, कहे ना तुम्हें बेईमान।।
लेकिन दर्जी बोला भाई मैंने अपना नियम ऐसा ही बना लिया है। कि मैं अपने यहां किसी की कतरन नहीं रखता पहले उसे घर रख कर आओ तभी कपड़े सिलूँगा। बहुत समझाने से भी दर्जी नहीं माना तो वह आदमी कतरन लेकर अपने घर को चल दिया, और मन में विचार करने लगा कि यह दर्जी तो मेरी पत्नी से भी अधिक धर्मात्मा है। देखो यह तो कतरन भी नहीं रखता। ऐसा विचार था हुआ वह जब घर लौट कर अपने घर आया तो देखा कि उसकी पत्नी घर पर नहीं है। वह घर की नकदी, अपने कपड़े और जेवर लेकर कहीं चली गई है। बक्सों के ताले खुले पड़े हैं। यह देखकर वह आश्चर्य में पड़ गया और सोचने लगा कि मेरी पत्नी का पति धर्म की अधिक बातें बनाना ढोंग निकला। सवेरे तो कह रही थी कि सपने में भिखारी को भीख देने में उंगली छू गई और वह उंगली अपवित्र हो गई है। इसे काट दो, मैं समझा कि बहुत पतिव्रता है परंतु देखो तो वह सब कपड़े जेवर और नकद रुपया लेकर भाग गई। दर्जी उससे भी अधिक ईमानदार बन रहा है। उसने कतरन भी अपने पास नहीं रखी। जब मेरी पत्नी इतनी धर्म की बात करने वाली हो कर भाग गई तो मुझे ऐसा लगता है कि इतना ईमानदार वह दर्जी भी वहां नहीं होगा।
यह विचार कर वह बाजार को वापस गया। वहां आकर क्या देखता है कि ना वहां दर्जी है, ना उसकी मशीन है, और ना कोई कपड़े। अब तो वह अपने मन में विचार करने लगा कि यह दुनिया भी कितनी अजीब है। मैंने जहां जहां अत्यधिक सच्चाई देखी। वहां पर अधिक बेईमानी और बुराई ही पाई।

मेरी पत्नी पतिव्रत होने का इतना पाखंड दिखाती थी। और वह भाग गई। दर्जी इतना ईमानदार बन रहा था कि किसी की कतरन भी रखना मंजूर ना था। वह सब कपड़ा ही लेकर भाग गया। खैर हुआ सो हुआ अब इतना ज्ञान अवश्य हो गया है। कि अब मैं किसी भी आडंबर वाले पर विश्वास नहीं करूंगा। जो अधिक दिखावे की बात करते हैं। वही अधिक बेईमान हैं। यह विचार करता वह अपने घर चला आया। पत्नी के बिना उसने घर में बड़ी मुश्किल से रात काटी। सवेरे उठकर उसने सोचा कि अब यहां रहना ठीक नहीं। अब मोहल्ले के लोगों को पता चलेगा कि मेरी पत्नी भाग गई है, तो वह लोग मेरी हंसी करेंगे। उसने अपने मकान में ताला लगाया और सोचा कि कहीं परदेस में चलकर नौकरी करनी चाहिए। घूमता हुआ वह एक राजा के यहां पहुंचा और अपनी नौकरी की इच्छा प्रकट की।

राजा उन दिनों अपने मन में एक कारण से परेशान रहता था। बात यह थी कि राजा के नगर से बालक चोरी हो जाते थे और बहुत प्रयत्न करने पर भी बालकों को चुराने वाला पकड़ा नहीं गया था। राजा ने उस आदमी को बालकों के चोर को पकड़ने के लिए नौकर रख लिया। वह आदमी राजा से बोला कि चार सिपाही मेरी आज्ञा पालन करने को मुझे दिए जाएं। और मैं जिसे बताऊं उसे गिरफ्तार कर लें। राजा ने ऐसा ही किया उसे नौकरी करते हुए कई महीने हो गए। आज जब राजगुरु की सवारी आई तो वह आदमी भी सिपाहियों सहित वहां था। उसने देखा कि राजगुरु बहुमूल्य वस्त्र पहने हैं। इत्रों की सुगंध आ रही है, गाजे-बाजे बज रहे हैं। यह देखकर वह आदमी विचार करने लगा कि राजा के गुरु का तो राजा सहित सभी लोग सम्मान करते हैं। फिर इन्हें इतना आडंबर दिखाने की क्या आवश्यकता। अधिक आडम्बर देखकर मुझे मालूम होता है, कि मेरी पत्नी और दर्जी के समान यह भी पूरे बेईमान होंगे। मेरा विश्वास है कि यही बालकों को चुराने वाले भी हैं। ऐसा विचार कर उसने सिपाहियों को आदेश दिया कि यही बालकों के चोर हैं इसलिए सिपाहियों इन्हें गिरफ्तार कर लो। जब राजा को समाचार ज्ञात हुआ तो वहां आकर उसने गुरु को प्रणाम किया। बालक पकड़ने की जांच कराई तो वहां नगर से बहुत से चोरी हुए बच्चे पाए गए। बात यह पता लगी थी कि जब राजगुरु धूमधाम से आते थे, तो लौटती बार कुछ बालकों की चोरी कराकर अपने आश्रम ले जाते थे। राजगुरु होने के कारण राजा या कोई अन्य पुरुष उन पर संदेह भी नहीं कर पाता था। कि गुरु बालकों के चोर होंगे। जिन लोगों के बालक राजगुरु के आश्रम पर मिले, वे लोग उन्हें वहां से अपने साथ में ले आए।

राजा ने उस आदमी को बुलाकर कहा- मैं तुमसे प्रसन्न हूं, कि तुमने बालकों के चोर का पता लगा लिया, परंतु यह बताओ कि राजगुरु पर तो कोई बालकों को चुराने का संदेह भी नहीं कर सकता था। परंतु तुमने उन्हें किस प्रकार चोर माना।

तब वह आदमी कहने लगा कि आज की दुनिया में मेरा अनुभव है कि जिस का अधिक आडंबर देखो उसी को अधिक बेईमान समझो। इसके बाद उसने राजा को आपबीती घटनाओं को सुनाया। जिसे सुनकर राजा ने उसे बहुत सम्मान दिया। गंगाराम पटेल बोले कि हे बुलाखी! तुम यही घटना आज देख कर आए हो। अब मैंने तुम्हारा सब आश्चर्य दूर कर दिया है। रात भी अधिक हो गई है सवेरे जल्दी उठना है इस कारण तुम सो जाओ।
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