दस महाशक्ति साधना | Das Mahashakti Sadhna

Das Mahashakti Sadhna Mantra

Das Mahashakti Sadhna Mantra

दस महाशक्ति साधना

दस महाशक्ति साधना :-
कालीतारा महाविद्या षोंदसी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ताच विद्या धूमावती।
बगला सिद्ध विद्या च मातंगी कमलात्मिका।
एता दस महाविद्या: सिद्धविद्या: प्रकितिर्ता॥

1. श्री काली तंत्र

बाईस अक्षरी का श्री दक्षिण काली मंत्र -

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं दक्षिणे कालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं स्वाहा॥

विनियोग -:

अस्य श्री दक्षिण मंत्रस्य भैरव ऋषी:।
उस्णिक छंद :।
दक्षिण कलिका देवता।
क्रीं बीजं।
ह्रुं शक्ति :।
क्रीं कीलकम।
ममाभिस्ट सिध्यथर्ये जपे विनियोग :।

ऋषयादी न्यास -:

ॐ भैरव ऋषये नमः शिरसी॥१॥
उष्णिक छंद्से नमः मुखे॥२॥
दक्षिण कलिका देवताये नमः ह्रदि॥३॥
क्रीं बीजाय नमः गृहे॥४॥
ह्रूं शक्तये नमः पादयो॥५॥
क्रीं किलकाय नमः नाभौ॥६॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥७॥

करन्याश -:

ॐ क्राम आन्गुष्ठाभ्याम नमः॥१॥
ॐ क्रीं तर्जनिभ्याम नमः॥२॥
ॐ क्रूं मध्यमाभ्याम नमः॥३॥
ॐ क्रें अनामिकभ्याम नमः॥४॥
ॐ क्रों कनिष्ठकाभ्याम नमः॥५॥
ॐ क्र: करतल कर्पुश्थाभ्याम नमः॥६॥

ह्रद्यादी षडंग न्यास -:

ॐ क्राम ह्रदयाय नमः॥१॥
ॐ क्रीं शिरसे स्वाहा॥२॥
ॐ क्रुम शिखाये वष्ट॥३॥
ॐ क्रेह कवचाय ह्रुं॥४॥
ॐ क्रों नेत्रत्रयाय वौष्ट॥५॥
ॐ क्र: अस्त्राय फट॥६॥

वर्णमाला न्यास -:

ॐ अं अँ ईं ऊं ऊं त्र लृम लृम नामोह्रदी॥१॥
ॐ अं अई ओ औ अं अ: कं खं गे धं दक्षभुजे॥२॥
ॐ दं चं छं जं झं गं थं ठं ड ढ नमो वामभूजे॥३॥
ॐ ण तं थं दं धं नं पं फं लं भं नमो दक्ष पादे॥४॥
ॐ मं यं रं लं वं शं षम सं हं क्षम नमो वामपादे॥५॥

इस न्यास के बाद निचे दिए गए न्यास करे

ॐ क्रीं नमः भ्रमरन्ध्रे॥१॥
ॐ क्रीं नमः भ्रूमध्ये॥२॥
ॐ क्रीं नमः ललाटे॥३॥
ॐ ह्रीं नमः नाभो॥४॥
ॐ ह्रीं नमः गृह्ये॥५॥
ॐ ह्रुं नमः वक्ते॥६॥
ॐ ह्रुं नमः गुवर्गे॥७॥

ध्यान मंत्र -:

(१) ॐ स्धशीचछन्नसिर: कृपणंभयं हस्तेवरम बिभ्रती धोरास्याम सिर्शाम स्त्रजा सुरुचिरामुन्मुक्त केशावलिम॥स्रुकास्रुक प्रव्हाम स्मशान निल्याम श्रुतयो: रावालंकृति श्रुतयो: सवालंकृतिम श्यामांगी कृतमेख्लाम शवकरेदेवीभजे कालिकाम॥

(२) नमामि दक्षिणा मूर्ति कालिकाम पर भैरवीम।
भिन्नाम जन चय प्रख्याम प्रवीर शव संस्थिताम॥१॥

गलत्छोणित धाराभि: स्मेरानन सरोरुहाम।
पिनोंन्नत कुच्द्रन्दा पिनवक्षो नितंबिनिम॥२॥

दक्षिणाम मुक्त केशालिम दिगंबर विनोदिनिम।
महाकाल शवाविष्टाम स्मेरानन्दो परिस्थिताम॥३॥

मुख्सान्द्र स्मिता मोद मोदिनी मद्विहव्लाम।
आराक्त्मुखसांद्राभिनेत्रालीभिर्विराजिताम॥४॥

शवद्रय कृतोताम्साम सिंदूर तिलको ज्ज्व्लाम।
पंचाशंमुंड गटित माला शोणित लोहिताम॥५॥

नाना मणि विशोभाढई नानालंकार शोभिताम।
शावास्थिकृत केयूर शंख कंकण मणिद्ताम॥६॥

शववक्ष स्समारुठाम लेलिहानाम शवं कवचित।
शवमांस कृतग्रासाम सादे हासं मुहुमुर्हुम :॥७॥

खडग मुण्डधरां वामे सव्येदभय वर प्रदाम।
दंतुरान च महारोद्री चंदानादाती भीषणं॥८॥

शिवात्मिधौर रुपाभिरविष्टितान भयनाशिनिम।
माभें मार्भेस्स्वभाक्तेशु जल्पंतीं घोर निहस्वने।
यूयं किमिच्छ्प ब्रूत ददामीति प्रभाषिणीम॥९॥

इस तरह से ध्यान करके मानसोपचार पूजन करे , मंत्र सिद्धि के लिए एक लाख जप करे

(२) श्री दक्षिण काली मंत्र ( अन्य )

ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं दक्षिणकालिके क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं ( मंत्र सिद्धि के लिए एक लाख जप करे )

(३) श्री दक्षिण काली मंत्र ( अन्य )

क्रीं ह्रुं ह्रीं दक्षिणेकालिके क्रीं ह्रुं ह्रीं स्वाहा

(४) श्री दक्षिण काली मंत्र ( अन्य )

ॐ ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके ह्रुं ह्रुं क्रीं क्रीं क्रीं ह्रीं ह्रीं स्वाहा॥

(५) श्री दक्षिण काली मंत्र ( अन्य )

ॐ क्रीं क्रीं क्रीं ह्रुं ह्रुं ह्रीं ह्रीं दक्षिणकालिके स्वाहा॥

(६) श्री दक्षिण काली मंत्र ( एकाक्षरी काली मंत्र )

ॐ क्रीं

(७) षडक्षर काली मंत्र

ॐ क्रीं कालिके स्वाहा॥

(८) तिन अक्षर का काली मंत्र

ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं॥

(९) पंचाक्षरी काली मंत्र

ॐ क्रीं ह्रुं ह्रीं हूँ फट॥

(१०) सप्ताक्षरी मंत्र

ॐ हूँ ह्रीं हूँ फट स्वाहा॥

(११) भद्रकाली मंत्र

ॐ ह्रौं काली महाकाली किलिकिले फट स्वाहा॥

ध्यान मंत्र :-

क्षुतक्षामा कोटराक्षी मसिमलिनमुखी मुक्तकेशिरुन्दती।
नाहं त्रुप्तावंदिती जगदखिलमिदं ग्रासमेकं करोमि॥

हस्ताभ्यां धारयन्ति जवळदनल शिखाशन्निभं पाशमुग्रं।
दंतेजर्लू फलाभे: परिहर्तु भयं पातु माँ भद्रकाली॥

( मंत्र सिद्धि के लिए एक लाख जप करे )

(१२) श्री स्मशान काली मंत्र

मंत्र :- एं ह्रीं श्रीं कलीं कालिके ऍह्रींश्रींकलीं॥

विनियोग :-

अस्य स्मशान काली मंत्रस्य भृगुऋषि:॥

त्रीव्रूच्छंद :

स्मशान काली देवता एं बीजं।
ह्रीं शक्ति:। कलीं कीलकम।
म म सर्वेस्टसिद्धये जपे विनियोग :॥

ऋषया न्यास -:

ॐ भृगु ऋषिये नमः शिरसी॥१।
त्रिव्रुच्छंदसे नमः मुखे॥२॥
शम्शायाली देवताये नमः हृदि॥३॥
एं बीजाय नमः गृह्यो॥४॥
ह्रीं शक्तये नमः पद्यो:॥५॥
कली किलकाय नमः नभौ॥६॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥७॥

करन्यास :-

ऐ अगुष्टभ्यां नमः॥१॥
ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः॥२॥
श्रीं मध्यमाभ्यां नमः॥३॥
क्लिं अनामिकाभ्यां नमः॥४॥
कालीय कनिष्टिकाभ्याँ नमः॥५॥
ऐ ह्रीं श्रीं क्लीं कालिके एंह्रींठ्रीमक्लीं करतल कर प्रुष्ठाभ्याँ नमः॥६॥

ह्रदयादी षडंग न्यास :-

एं ह्रदयाय नमः॥१॥
ह्रीं शिरसे स्वाहा॥२॥
श्रीं शिखाये वषट॥३॥
क्लीं कवचाय ह्रुं॥४॥
कालिके नेत्र त्रयाय वौष्ट॥५॥
एं ह्रीं श्रीं कालिके एंह्रींश्रींक्लीं अस्त्राय फट॥६॥

ध्यान मंत्र :-

अन्जनाद्रिनिभ्याँ देवी श्मशानलिय वासिनिम।
रक्तनेत्रान मुक्तकेशी शुष्कमामंसाती भैरवीम॥१॥

पिंगाक्षी वाम्हस्तें मधपुर्ना समांसकाम।
सधः कृतं शिरो दक्ष हस्तेन दधतीं शिवाम॥२॥

स्मितवक्त्रान सदा चाम मांस चवर्ण तत्पराम।
नानालंकार भुशांगी नग्नां मत्तां सदाशवे:॥३॥

इस तरह से ध्यान करके देवी का पूजा करके जप कीजये , इस मंत्र का पुस्चरण ११ लाख मंत्र जप से होता है .

2. श्री तारा तंत्र

(१) श्री तारा पंचाक्षर मंत्र

मंत्र :- ॐ ह्रीं त्रीम ह्रुं फट।

विनियोग :-

अस्य तारा मंत्रस्य अक्षोभ्य ऋषि :।
बृहती छंद :।
तारा देवता॥
ह्रीं बीजम।
ह्रुं शक्ति :।
मम अभिस्ट सिद्धयर्ठे जपे विनियोग :।

ऋषयदि न्यास :-

ॐ अक्षोभ्य ऋषिये नमः : सिरशी॥१॥
बृहती छंद्से नमः मुखे॥२॥
तारा देवताये नमः हृदि॥३॥
ह्रीं बीजाय नमः लिंगे॥४॥
हुं शक्तये नमः पादयो:॥५॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥६॥

करन्यास :-

ॐ ह्रां ह्रदयाय नमः॥१॥
ॐ ह्रीं सिरशे स्वाहा॥२॥
ॐ ह्रुं शिखाये वष्ट॥३॥
ॐ ह्रेम कवचाय ह्रुं॥४॥
ॐ ह्रों नेत्र त्रयाय वौषट॥५॥
ॐ ह्र: अस्त्राय फट॥६॥

षोढा न्यास :-

 (१) कंकादी न्यास

ॐ ह्रीं त्रीन ह्रुं अं श्री कंठाय नमो ललाटे॥१॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं आं अनंताय नमः मुखे॥२॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं इं सूक्ष्मे शाय नमः दक्षिण नेत्रे॥३॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं इं त्रीमुर्ताय नमः वामनेत्रे॥४॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं उं अमरेशाय नमो: दक्ष कर्णऐ॥५॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं उं अर्शीशाय नमो वामकरणे॥६॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं ऋन भारभुतिसाय नमो दक्षनासा पुटे॥७॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं ऋन अतिथिशाय नमो वामनासापुटे॥८॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं ऋन स्थाणविसाय नमो दक्ष गंडे॥९॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं लं हरेशायनमः वाम गंडे॥१०॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं एँ मिटीशाय नमः उधार्वास्ठे॥११॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं एँ भौतिकेसहाय नमः अध्रोश्ठे॥१२॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं ओं सधोजातेस्हाय नमः उधर्वदंत्पंक्तो॥१३॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं ओं अनुग्रहेशाय नमः अधोदंतपंक्तो॥१४॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं अं अक्रूरशाय नमः सिरशी॥१५।
ह्रीं त्रीन ह्रुं अ: महासेनेशाय नमः मुखमध्ये॥१६॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं कं क्रोधिशाय नमो दक्षस्कन्धे॥१७॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं खं चंदेशाय नमो दक्षकपुरे॥१८॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं गं पंचातकेशाय नमो दक्षिनमणिबन्धे॥१९॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं धं शिवोत्त्मेशाय नमो दक्षहस्तांगुलीमुले॥२०॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं डं एकरुद्रेशाय नमो दक्षहस्तांमूल्यग्रे॥२१॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं चं कुर्मेशाय नमो वाम स्कंधे॥२२॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं छं एकाननेशाय नमो वाम कुपर्रे॥२३॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं जं चतुराननेशाय नमो वाममणिबंधे॥२४॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं झं अजेशाय नमो वामहस्तांगुलिमुले॥२५॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं गं सर्वेशाय नमो वाम्हास्तांगुल्यग्रे॥२६॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं टं सोमेशाय नमो दक्षजानुनी॥२७॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं ठं लांगलिशाय नमो दक्षजानुनी॥२८॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं डं दारूकेशाय नमो दक्षगुल्फे॥२९॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं ढन अर्धनारीस्वरेशाय नमो दक्षपान्दौगुलिमुले॥३०॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं णह उमाकान्तेशाय नमो दक्षपादांगुलिमुले॥३१॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं तं आशाठीशायनमः वामपादमुले॥३२॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं ठन दंदिशाय नमो वामजानुनी॥३३॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं दं अत्रीशाय नमो वामगुल्फे॥३४॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं धं मिनेशाय नमो वामपादांगुलिमुले॥३५॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं नं मेषेशाय नमो वामपादांगुल्यग्रे॥३६॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं पं लोहितेशाय नमो दक्षकुशौ॥३७॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं फं शिखी शाय नमो दक्षवामकुशौ॥३८॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं बं छागलंदेशाय नमः पृष्ठे॥३९॥
ह्रीं त्रिन ह्रुं भं द्रीरंदेशाय नहीं नाभो॥४०॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं मं महाकालेशाय नमः उदरे॥४१॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं यें बालेशाय नमः ह्रदये॥४२॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं रं भुजंगेशाय नमः दशांसे॥४३॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं लं पिनाकिशाय नमः ककुदि॥४४॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं वं खड़गिशाय नमो वामांसे॥४५॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं शं केशवाय नमो ह्र्दयादी दक्ष हस्तानतम॥४६॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं ष्हन स्वेतेशाय नमो ह्र्दयादी वामहस्तान्तम॥४७॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं सं ब्रुग्विशाय नमो ह्र्दयादी वामपादानतम॥४८॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं हं लाकुलेशाय नमो ह्र्दयादी दक्ष पादानतम॥४९॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं हं शिवेशाय नमो ह्र्दयादी नाभायानतम॥५०॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं क्षं सवर्तकेशाय नमो ह्र्द्यादी शिरोंतम॥५१॥

ग्रह न्यास :-

ह्रीं त्रीन ह्रुं अं आं इं इं उं उं त्रन त्रन ल्रून ल्रून अं एं ओँ ओउं अं अ: रक्वर्ण सूर्य ह्रदि॥१॥
ह्रीं त्रीन हूँ यं रं लं वं शुक्लवर्ण सोम भद्राए॥२॥
ह्रीं त्रीन हूँ कं खं गं घं डं रक्तवर्ण मंगलम लोचनत्रये॥३॥
ह्रीं त्रीन हूँ चं छं जं झं गं श्यामवर्ण बुधं वक्षस्थले॥४॥
ह्रीं त्रीन हूँ टं ठं डं ठन णं पीतवर्ण बृहस्पति कंठकूपे॥५॥
ह्रीं त्रीन हूँ तं थं दँ धं नं स्वेतवर्ण भार्गव घंटिकायाम॥६॥
ह्रीं त्रीन हूँ पं फं बं भं मं नीलवर्ण शनेस्चरन नाभि देशे॥७॥
ह्रीं त्रीन हं शं श्हं सं हे धूम्रवर्ण राहून मुखे॥८॥
ह्रीं त्रीन हूँ लं क्षं धूम्रवर्ण केतु नाभो॥९॥

दिकपाल न्यास :-

ह्रीं त्रीन हूँ अं इं उं त्रं ल्रुन अं ओँ अं इन्द्राय नमः॥१॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं ओँ इं उं त्रं ल्रून एं ओँ अ: अग्न्ये नमः ललाटाग्नेयाम॥२॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं कं खं गं घं डं यमाय नमः ललाट दक्षिणे॥३॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं चं छं जं गं नेत्रुत्वये नमः ललाट नेत्रुत्याम॥४॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं टं ठं डं ठं णं वरुणाय नमः ललाट पश्चिमे॥५॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं तं थं दं धं नं वायवे नमः ललाट वायव्यां॥६॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं पं फं बं भं मं सोमे नमः ललाटोत्तरस्याम॥७॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं यं रं लं वं इसानाय नमः ललाटेशान्याम॥८॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं शं श्हं सं हं ब्राह्मणे नमः ललाटोध्वर्याम॥९॥
ह्रीं त्रीन ह्रुं लं क्षं अनंताय नमः ललाटोधो दिसि॥१०॥

ष्ठचक्र न्यास :-

सुषुम्णा पथ में आ रहे ष्ठचक्र में आ रहे दल ( पाखंडी ) क्रमश दिए हुवे न्यास मंत्र के अक्षरों का न्यास करे , जितनी पाखंडी जिस चक्र में है उने वर्ण वर्णाक्षरो न्यासमंत्र में दिए है , उसको ध्यान में रखते हुवे ये न्यास करना है

मूलाधार चक्र में ( चार दल ) :-

ह्रीं त्रीन हूँ वं शं श्हं सं दाकिनियुत भ्र्मांड चतुर्दल सम्निवित भुताधारे न्यसेत॥१॥

स्वाधिस्थान चक्र में ( छह दल ) :-

ह्रीं त्रीन हूँ बं भं मं यं यं रं लं रकिनियुत ठ्री विष्णु लिंग्स्त षडदले सर्वधिस्थान चक्रे न्यसेत॥२॥

मणिपुर चक्र में (दस दल ) :-

ह्रीं त्रीन हूँ डं ठं णं तं ठं दं धं नं पं फं राकिनियुत रुद्रं दसदल चक्रे नाभिस्थे मणिपुरके न्यसेत॥३॥

अनाहत चक्र में (बारह दल ) :-

ह्रीं त्रीन हूँ कं खं गं घं चं छं जं झं गं टं ठन काकिनियुतमिष्वरमनाहते द्रादस दले चक्रे ह्रादिनीयसेत॥४॥

विसुद्राख्य चक्र ( सोलह दल ) :-

ह्रीं त्रीन हूँ अं आं इं इं उं उं त्र्रू ल्रून ल्रून अं ओँ आं ओँ एं अ: शाकिनियुत सदाशिव विसुद्राख्य षोड्स दले कन्ठास्ते विन्यसेत॥५॥

आज्ञाचक्र (दो दल ) :-

ह्रीं त्रीन हूँ हें क्षें हाकिनियुत परशिवमाज्ञनाचक्रे मनोहरे भूमध्य संस्थिते प्रविन्यसेत॥५॥

तारादी न्यास :-

ह्रीं त्रीन हूँ अं आं कं खं गं घं डं ताराये बमों ब्रमरंधे॥१॥
ह्रीं त्रीन हूँ इं इं चं छं जं जं गं उग्राए नमो ललाटे॥२॥
ह्रीं त्रीन हूँ उं उं टं ठं डं ठं णं महोग्राये नमो भुमध्ये॥३॥
ह्रीं त्रीन हूँ त्रन त्रन तं ठं दं धं नं व्ज्राये नमः कंठदेशे॥४॥
ह्रीं त्रीन हूँ हूँ ल्रून ल्रून पं फं बं भं मं महाकाल्ये नामोह्र्दी॥५॥
ह्रीं त्रीन हूँ अं एँ यं रं लं वं सरस्वते नमो नाभो॥६॥
ह्रीं त्रीन हूँ ओँ ओँ शं षन हं कामेस्वर्ये नमो लिगमुले॥७॥
ह्रीं त्रीन हूँ अं अ: लं क्षन चामुन्दाये नमो मूलाधारे॥८॥

पीठ न्यास :-

ह्रीं त्रीन हूँ अं इं त्र्रू ल्रुन अं आं अं कामरूप पिठाय नमः आधारे॥१॥
ह्रीं त्रीन हूँ आं इं ऊँ त्र्रून लूँ एन ओं अ: जालंधर पिठाय नमो ह्रदि॥२॥
ह्रीं त्रीन हूँ कं खं गं धं डं पूर्ण गिरिपिठाय नमो ललाटे॥३॥
ह्रीं त्रीन हूँ चं छं जन झं गं उहियान पिठाय नमः केश संधो॥४॥
ह्रीं त्रीन हूँ टं ठं डं ढं णं वाराणसी पिठाय नमो भ्रुवो :॥५॥
ह्रीं त्रीन हूँ तं थं दं धं नं अवंती पिठाय नमो नेत्रयो :॥६॥
ह्रीं त्रीन हूँ पं फं बं भं मं मायापुरी पिठाय नमः मुखे॥७॥
ह्रीं त्रीन हूँ यं रं लं वं मथुरा पिठाय नमः कंठे॥८॥
ह्रीं त्रीन हूँ शं षहन सं हं अयोध्या पिठाय नमो नाभौ॥९॥
ह्रीं त्रीन हूँ लं क्षं कांचीपूरी पिठाय नमः कट्याम॥१०॥

यह षोठा न्यास करने से साधक ( का सरीर ) देव रूप होता है , यह न्यास करने के बाद ह्र्दयादी न्यास करे

ह्र्दयादी षडंग न्यास :-

ॐ ह्रों त्रान हाँ एक जटाये ह्रदयाय नमः॥१॥
ॐ ह्रीं त्रीन हीं तारिणये शिरसे स्वाहा॥२॥
ॐ हूँ त्रुन हूँ वज्रोदकाये शिखाये वष्ट॥३॥
ॐ ह्रें त्रेन हें उग्रताराये कवचाय हूँ॥४॥
ॐ ह्रों त्रोऊ ह्रों महापरिश्राये नेत्र त्रयाय वौषठ॥५॥
ॐ ह्र: त्र: ह: पिंगाग्रेक जटाये अस्त्राए फट॥६॥

इसी तरह से करन्यास करे उसके बाद ध्यान मंत्र से ध्यान करे

ध्यान मंत्र :-

ॐ विश्वव्यापक वारि मध्य विलसत स्वेतांबूजन्म स्थिता कत्री खडग कपाल नील नलिने राजत्करान निलभाम।
कांची कुंडल हार कंकण लसत केयूर मंजिरताम आप्तेनरार्ग वरौ विभूषित तानुमाकत नेत्र त्रयाम॥१॥

पिंगोग्रेक जटां लसत्सुरसनां द्रष्टा करालानां हस्तेश्चापी वरं कटो विद्धंती स्वेतास्थी पट्ठालिकाम।
अक्षोभयें विराजमान शिरसं स्मेराननां भोरुहान तारां शाव ह्रदासनां दृढ कूचा मंबा त्रिलोक्य: स्मरेत॥२॥

इस तरह से ध्यान करके देवी का मानसोपचार पूजा करे , यन्त्र की स्थापना करके उसमे आवरण पूजा करे , देवी को बलि ( नैवेध ) अर्पित करते हुवे इस मंत्र का पाठ करे

बलि मंत्र :-

ॐ ह्रीं श्रीमदेकजटे नील सरस्वती महोग्रतारे देवी ख ख सर्वभूत पिचास राक्षसान ग्रस ग्रस मम जाड्यं छेदय थ्रीं ह्रीं फट स्वाहा॥

साधना अनुष्ठान के दोरान मध्यरात्रि को जहा से चार रास्ते हो वहा पर हररोज ये मंत्र बोलके बलि प्रदान करे ,

मंत्र :-

ॐ ह्रीं एक जटे महायक्षधिपते मयोपनितं बलिं ग्रहण ह्रीं ग्रहण ह्रीं स्वाहा॥

इस श्री तारा मंत्र के चार लाख जाप करे , घी और लाल कमल के फूल से चालीश (४०) हजार मंत्र की आहुति दे

3. श्री षोडसी विद्या तंत्र ( महात्रिपुर सुंदरी )

मंत्र :-

श्रीं ह्रीं कलीं एँ सौ: ॐ ह्रीं कऐइलह्रीं हसकलह्रीं सकलह्रीं सौ: ऐन क्लीं ह्रीं श्रीं॥

विनियोग :-

अस्य त्रिपुरी सुंदरी मंत्रस्य दक्षिणामूर्तिऋषि:॥

पंक्तिश्छंद :

त्रीम त्रीपुर सुंदरी देवता॥
ऐन बीजं॥
सौ:शक्ति:॥
कलीं कीलकम॥
मम अभिस्ठ सिध्ध्ये जपे विनियोग॥

ऋषियादी :-

ॐ दक्षिणामूर्ति ऋषिये नमः शिरसी॥१॥
पंक्तिश्छंद्से नमः मुखे॥२॥
श्रीमत्रीपुर सुंदरी देवताये नमः हृदि॥३॥
एन बिजय नमः गृह्ये॥४॥
सौ: शक्तये नमः पादयो:॥५॥
क्लीं किलकाय नमः नाभौ॥६॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥७॥

करशुध्धि न्यास :-

ह्रीं श्रीं अं मध्यमाभ्यां नमः॥१॥
ह्रीं श्रीं आं अनामिकाभ्यां नमः।२॥
ह्रीं श्रीं सौ: कनिष्ठाकाभ्याँ नमः॥३॥
ह्रीं श्रीं अं अन्गुस्ठाभ्यान नमः॥४॥
ह्रीं श्रीं आं तर्जनीभ्यां नमः॥५॥
ह्रीं श्रीं सौ: करतल करतलपृस्ठाभ्यान नमः॥६॥

आसन न्यास :-

ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं सौ: देव्याशनाय नमः पादयो:॥१॥
ह्रीं श्रीं ह्रें ह्र स क्लीं ह्रसौ: चक्रास्नाय नमः जनध्यो:॥२॥
ह्रीं श्रीं हे सें ह्र स क्लीं हेसौ: सर्वमंत्रास्नाय नमश्र जानुनो:॥३॥
ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं ल्वें साध्य सिद्धास्नाय नमो लिंगे॥४॥

ह्र्द्यादी षडंग न्यास :-

ह्रीं श्रीं क्लीं एं सौ:ह्रदयाय नमः॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीं शिरसे स्वाहा॥२॥
कएइलाही शिखाये वष्ट॥३॥
हसकहलह्रीं कवचाय ह्रुम॥४॥
सकलह्रीं नेत्रत्रयाय वौष्ट॥५॥
सौ: ऐक्लीं ह्रीं श्रीं अस्त्राय फट॥६॥

अक्षर न्यास :-

ॐ श्रीं नमः पादयो:॥१॥
ॐ ह्रीं नमः जंधयो :॥२॥
ॐ क्लीं नमः जानुनो:॥३॥
ॐ ए नमः कटयो:॥४॥
ॐ सौ: नमः लिंगे॥५॥
ॐ ॐ नमः पृष्ठे॥६॥
ॐ ह्रीं नमः नाभो॥७॥
ॐ श्रीं नमश्री पाश्वर्यो:॥८॥
ॐ कएइल ह्रीं नमः स्तनयो:॥९॥
ॐ हस्कलह ह्रीं नमः अंसयो :॥१०॥
ॐ सकल ह्रीं नमः कर्णयो:॥११॥
ॐ सौ: नमः ब्रह्मरंधे॥१२॥
ॐ ऐ नमः वक्त्रे॥१३॥
ॐ क्लीं नमः नेत्रयो:॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः कर्णयो:॥१५॥
ॐ श्रीं नमः कर्ण शष्कुल्यो:॥१६॥

वाग्देवता न्यास :-

अं आं इं इं उं उं ऋ ऋ ल्रून ल्रून ऐं ऐ ओं औ अं अ: ब्लूं वशिनी वाग्देवताये नमः शिरसी॥१॥
कं खं गं धं डं क्लीं ह्रीं कामेश्वरी वाग्देव्ताये नमो ललाटे॥२॥
चं छं जं झं क्लीं मोहिनी वाग्देव्ताये नमो हृदि॥३॥
टं थं डं ढं णं प्लुं विमला वग्देव्ताये नमः कंठे॥४॥
तं थं दं धं नं ज्म्री अरुणा वाग्देव्ताये नमो हृदि॥५॥
पं फं बं भं मं हस्लव्यन जयिनी वाग्देव्ताये नमो नाभो॥६॥
यं रं लं वं ज़म्र्यु सर्वेश्वरी वाग्देव्ताये नमो मूलाधारे॥७॥
शं ष्ह सं हं लं क्षं क्ष्मीं कालिनी वाग्देव्ताये नमः उर्वादीपादान्तं॥८॥
वाग्देव्ताये नमः पादयो:॥९॥

सृष्टि न्यास :-

ॐ श्रीं नण: ब्रह्मरंधे॥१॥
ॐ ह्रीं नमः ललाटे॥२॥
ॐ क्लीं नमः नेत्रयो:॥३॥
ॐ एँ नमः कर्णयो:॥४॥
ॐ सौ: नमः अंश्यो:॥५॥
ॐ ॐ नमः गंद्यो:॥६॥
ॐ ह्रीं नमः दंतयो:॥७॥
ॐ श्रीं नमः ओष्ठ्यो:॥८॥
ॐ कऐइलह्रीं नमः जिह्वायाम॥९॥
ॐ हसकलय ह्रीं नमः मुखे॥१०॥
ॐ सकल ह्रीं नमः पृष्ठे॥११॥
ॐ सौ: नमः सर्वांगे॥१२॥
ॐ ऍन नमः हृदि॥१३॥
ॐ क्लीं नमः स्तनयो:॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः कुक्षो॥१५॥
ॐ श्रीं नमः लिंगे॥१६॥

स्थिति न्यास :-

ॐ श्रीं नमः अन्गुश्ठो:॥१॥
ॐ ह्रीं नमः तर्जन्यो:॥२॥
ॐ क्लीं नमः मध्यमयो:॥३॥
ॐ ऍन नमः अनामिक्मयो:॥४॥
ॐ सौ:नमः कनिष्ठिक्यो :॥५॥
ॐ ॐ नमः ब्रह्मरंधे॥६॥
ॐ ह्रीं नमः मुखे॥७॥
ॐ श्रीं नमः हृदि॥८॥
ॐ कऐइलह्रीं नमः नाभ्यादी पादातम॥९॥
ॐ हसकल्हह्रीं नमः कंठादी नाभ्यानतम॥१०॥
ॐ सकलह्रीं नमः ब्रह्मरन्ध्रात कंठानतम॥११॥
ॐ सौ नमः पदांगुष्ठ्यो :॥१२॥
ॐ ऐ नमः पद तर्जन्यो :॥१३॥
ॐ क्लीं नमः पद मध्योमयो :॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः पदानामिक्यो:॥१५॥
ॐ श्रीं नमः पद्कनिष्ठ्यो :॥१६॥

पंचावृति न्यास :-

इस न्यास में मुलतंत्र की पांच आवृति होती है . इस लिए इसे पंचावृति न्यास कहते है . इसमें पांच तरह के न्यास होते है।

प्रथम न्यास :-

ॐ श्रीं नमः कुध्रीन॥१॥
ॐ ह्रीं नमः वक्त्रे॥२॥
ॐ क्लीं नमः दक्ष नेत्रे॥३॥
ॐ ऐ नमः वाम नेत्रे॥४॥
ॐ सौ: नमः दक्ष करणे॥५॥
ॐ ॐ नमः वाम करणे॥६॥
ॐ ह्रीं नमः दक्षिणासे॥७॥
ॐ श्रीं नमः वामांसे॥८॥
ॐ कऐइलह्रीं नमः दक्षिण गंडे॥९॥
ॐ हसकलहलह्रीं नमः वाम गंडे॥१०॥
ॐ सकलह्रीं नमः उध्वोर्स्ठे॥११॥
ॐ सौ: नमः अधरोश्ठे॥१२॥
ॐ ऐ नमः वक्त्रे मध्ये॥१३॥
ॐ क्लीं नमः उद्वर दन्त पक्तो॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः अधौ दन्त पन्क्तौ॥१५॥
ॐ श्रीं नमः वदने॥१६॥

द्रितीय न्यास :-

ॐ श्रीं नमः शिखायाम॥१॥
ॐ ह्रीं क्लीं शिरसी॥२॥
ॐ क्लीं नमः ललाटे॥३॥
ॐ ऐ नमः भ्रुवो :॥४॥
ॐ सौ: नमः नासिक्यो :॥५॥
ॐ ॐ नमः वक्त्रे॥६॥
ॐ ह्रीं नमः दक्षिण हस्तामुले॥७॥
ॐ श्रीं नमः दक्षिण कुप्ररे॥८॥
ॐ कऐइल ह्रीं नमः दक्षिण मणिबन्धे॥९॥
ॐ हसकहल ह्रीं नमः दक्षहस्तागुली मुले॥१०॥
ॐ सकलह्रीं नमः दक्ष हस्तान्गुल्यग्रे॥११॥
ॐ सौ: नमः वाम हस्ता मुले॥१२॥
ॐ ऐ नमः वामकुपर्रे॥१३॥
ॐ क्लीं नमः वाम मणिबन्धे॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः वाम हस्तान्गुलिमुले॥१५॥
ॐ श्रीं नमः वाम हस्तान्गुल्यग्रे॥१६॥

तृतीय न्यास :-

ॐ श्रीं नमः शिरसी॥१॥
ॐ ह्रीं नमः ललाटे॥२॥
ॐ क्लीन नमः दक्ष नेत्रे॥३॥
ॐ ए नमः वाम नेत्रे॥४॥
ॐ सौ: नमः मुखे॥५॥
ॐ ॐ नमः जिह्वायाम॥६॥
ॐ ह्रीं नमः दक्षिण पाद्मुले॥७॥
ॐ शीन नमः दक्षिण जानुनी॥८॥
ॐ कऐइलह्रीं नमः दक्षिण गुल्फे॥९॥
ॐ हसकहलह्रीं नमः दक्ष पादान गुलिमुले॥१०॥
ॐ सकल ह्रीं नमः दक्ष पादानगुल्यग्रे॥११॥
ॐ सौ: नमः वामपादमुले॥१२॥
ॐ एँ नमः वाम जानुनी॥१३॥
ॐ क्लीं नमः वाम गुल्फे॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः वाम पादांगुलिमुले॥१५॥
ॐ श्रीं नमः वाम पदानगुल्यग्रे॥१६॥

चतुर्थ न्यास :-

ॐ श्रीं नमः शिरसी॥१॥
ॐ ह्रीं नमः मुखे॥२॥
ॐ क्लीं नमः दक्ष नेत्रे॥३॥
ॐ एँ नमः वाम नेत्रे॥४॥
ॐ सौ: नमः दक्षिण कर्ण॥५॥
ॐ ॐ नमः वाम कर्ण॥६॥
ॐ ह्रीं नमः दक्षनासापुटे॥७॥
ॐ श्रीं नमः वामनासापुटे॥८॥
ॐ कऐइलह्रीं नमः दक्ष कपोले॥९॥
ॐ सकलकह्रीं नमः उध्व्रोश्ते॥११॥
ॐ सौ: नमः उध्रोश्ठे॥१२॥
ॐ एँ नमः उध्व्रदंत पन्क्तौ॥१३॥
ॐ क्लीं नमः अधोदंत पन्क्तौ॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः मुधिर्ना॥१५॥
ॐ श्रीं नमः मुखे॥१६॥

पंचम न्यास :-

ॐ श्रीं नमः ललाटे॥१॥
ॐ ह्रीं नमः कन्ह्ठे॥२॥
ॐ क्लीं नमः हृदि॥३॥
ॐ एँ नमः नभौ॥४॥
ॐ सौ: नमः मूलाधारे॥५॥
ॐ ॐ नमः भ्रम्रंधे॥६॥
ॐ ह्रीं नमः मुखे॥७॥
ॐ श्रीं नमः गुदे॥८॥
ॐ कऐइलह्रीं नमः आधारे॥९॥
ॐ हसकहलह्रीं नमः हृदि॥१०॥
ॐ सकल ह्रीं नमः भ्रमरंधे॥११॥
ॐ सौ: नमः दक्षिण हस्ते॥१२॥
ॐ एँ नमः वाम हस्ते॥१३॥
ॐ क्लीं नमः दक्ष पादे॥१४॥
ॐ ह्रीं नमः वामपादे॥१५॥
ॐ श्रीं नमः हृदि॥१६॥

व्यापक न्यास :-

ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं एँ सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ऐ इ ल ह्रीं हसकहल ह्रीं सौ: एँ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ नमः इति सर्वांगे॥१॥
ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं एँ सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ऐ इ ल ह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं सौ: एँ क्लीं ह्रीं श्रीं ॐ नमः इति ह्रदये॥२॥

ध्यान मंत्र :-

बालाकार्युत तेजसं त्रेनयनां रक्तानबरोल्लासिनी। नानालंकृति राजमानवपुष्हं बलोदुरातशेखराम॥
हस्तेरिक्षहूधनु: श्रुनी सुम्सर्न पाशमुदा बिभ्रती। श्रीं चक्रस्थित सुंदरी त्रिजगतामाधारभूतां स्मरे॥१॥

ध्यान करके मानसोपचार पूजा करे , इस महाविद्या के १ लाख जप करे

(२) काम राज साधना :-

क ऐ इ ल ह्रीं हसकल ह्रीं सकल ह्रीं॥

(३) अगस्त्य पूजित लोपामुद्रा साधना :-

हसकहलह्रीं हसकहल ह्रीं सकएइल ह्रीं॥

(४) मनु पूजिता साधना :-

कहऐइलह्रीं हकऐइलह्रीं सकऐइलह्रीं॥

(५) चन्द्र पूजिता साधना :-

सहकअलइलह्रीं हसकऐइलह्रीं सहकऐइलह्रीं॥

(६) कुबेर पूजिता साधना :-

हसकऐइलह्रीं हसकऐइलह्रीं हसकऐइलह्रीं॥

(७) द्रितीय लोपा मुद्रा :-

कऐइलह्रीं सकहलह्रीं सहसकलह्रीं॥

(८) नंदी पूजिता साधना :-

सऐइलह्रीं सहकहलह्रीं सकल ह्रीं॥

(९) इन्द्र पूजिता साधना :-

कऐइलह्रीं हसकहलह्रीं सकलह्रीं॥

(१०) सूर्य पूजिता साधना :-

कऐइलह्रीं सहकलह्रीं सहकसकलह्रीं॥

(११) शंकर पूजिता साधना :-

कऐइलह्रीं हसकलह्रीं सहसकलह्रीं कऐइल हसक हल सक सकल ह्रीं॥

(१२ ) विष्णु पूजिता साधना :-

कऐइलह्रीं हसकहल ह्रीं सहसकल ह्रीं कऐइल ह्रीं हसक सकल ह्रीं सकल ह्रीं॥

(१३) दुर्वासा पुजिता साधना :-

कऐइलह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं॥

(१४) गृह्य षोडशी मंत्र :-

यह मंत्र बोहोत ही गोपनीय है , यह मंत्र एक गुरु द्वारा शिष्य को दिया जाता है। 

ॐ ह्रीं ॐ श्रीं सौ: क्लीन ऍन हसकल ह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं ॐ ह्रीं ॐ श्रीं ह्रीं॥

(१५) महाषोडशी मंत्र :-

ह्रीं श्रीं क्लीन से सौ: ॐ ह्रीं श्रीं क ऐ इ ल ह्रीं हसकहल ह्रीं सौ: ऐ क्लीन श्रीं ह्रीं॥

(१६)महाषोडशी मंत्र ( द्रितीय ) :-

ॐ क्लीन ह्रीं श्रीं ऐ क्लीन सौ: क ऐ इ ल ह्रीं हसकहल ह्रीं सकल ह्रीं स्त्रीं ऍन क्रों क्रीं इं हूँ॥

(१७) श्री बाला त्रीपुरा मंत्र :-

ऐ क्लीन सौ:॥

(१८) श्री बाला गायत्री मंत्र :-

क्लीन त्रीपुरा देवी विग्रहे कामेस्वरी धीमहि क्लिंन्ने प्रचोदयात॥

(१९) श्री बाला मंत्र :-

ह्रीं क्लीन हसौ:॥

(२०) श्री षदक्षर बाला मंत्र :-

ह्रीं क्लीन हसौ: हसौ: क्लीन ह्रीं॥

(२१) श्री नवाक्षर बाला मंत्र :-

श्री क्लीं ह्रीं ऍन क्लीं सौ: ह्रीं क्लीं श्रीं॥

(२२) श्री दशाक्षर बाला मंत्र :-

ऍन क्लीं सौ: बाला त्रीपुरा स्वाहा॥

(२३) श्री चतुद्राक्षर बाला त्रीपुरा मंत्र :-

ऍन क्लीं सौ: बाला त्रीपुरे सिध्धि देहि नमः॥

(२४) श्री षोडशाक्षर बाला मंत्र :-

ह्रीं श्रीं क्लीं त्रीपुरे भारती कवित्वं देहि स्वाहा॥

(२५) श्री सप्तदशाक्षर त्रीपुर सुंदरी मंत्र :-

स्क्लीं क्ष्म्यो ऍन त्रीपुरे सावरा वांछित देहि नमः स्वाहा॥

(२६) श्री अष्टदशाक्षर प्रौठ त्रीपुरा मंत्र :-

ह्रीं ह्रीं ह्रीं प्रौठ त्रीपुरे आरोग्यमेश्वर्य च देहि स्वाहा॥

(२७) श्री अष्ट दशाक्षर त्रीपुर मर्दिनी मंत्र :-

ह्रीं श्रीं क्लीं त्रीपुर मर्दने सर्व शुभ साधय स्वाहा॥

(२८) श्री विश्त्याक्षर : बाला त्रीपुरा मंत्र :-

ह्रीं श्रीं क्लीं बाला त्रीपुरे मदयतान विध्या कुरु नमः स्वाहा॥

(२९) श्री विश्त्याक्षर परापर त्रीपुरा मंत्र :-

ह्रीं श्रीं क्लीं परापरे त्रीपुरे सर्वमिप्सित साधय स्वाहा॥

(३०) श्री अष्ट विश्त्याक्षर त्रीपुरा मंत्र :-

क्लीन क्लीन श्रीं श्रीं ह्रीं त्रीपुरा ललिते मदिप्तिसां योशितीं देहि वांछित कुरु स्वाहा॥

(३१) श्री पञ्च विश्त्याक्षर बाला वस्य मंत्र :-

क्लीं क्लीं क्लीं श्रीं श्रीं श्रीं ह्रीं ह्रीं ह्रीं त्रीपुर सुंदरी सर्व जगत मम वशे कुरुकुरु मह्यं बलं देहि स्वाहा॥

(१८) से (३१) तक दिए हुवे मंत्र को सिध्ध करने के लिए १ लाख जप करना पड़ता है

4. श्री भुवनेश्वरी तंत्र

भुवनेश्वरी एकाक्षर बीज मंत्र :-

मंत्र :-

" ह्रीं "

विनियोग :-

अस्य भुवनेश्वरी मंत्रस्य शक्तिऋषि :॥
गायत्री छंद :॥
हकारो बीजं :॥
इकार: शक्ति॥
रेफ: कीलकम॥
श्री भुवनेश्वरी देवता॥
चतुवर्ग सिध्यर्थे जपे विनियोग॥

ऋषियादी न्यास :-

शक्ति ऋषिये नमः सिरशी॥१॥
गायत्रीछन्दसे नमः मुखे॥२॥
भुव्नेस्वर्ये देवताये नमः हृदि॥३॥
हूँ बिजय नमः गृह्ये॥४॥
इं शक्तये नमः पद्यो :॥५॥
रं किलकाय नमः नभौ:॥ ६॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥७॥

करन्यास :

ॐ ह्रां अंगुष्ठाभ्यां .नमः॥१॥
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः॥२॥
ॐ हूँ मध्यमाभ्यां नमः॥३॥
ॐ ह्रें अनामिकाभ्यां नमः॥४॥
ॐ ह्रों कनिष्ट्भ्याँ नमः॥५॥
ॐ ह: करतलकर पृष्ठाभ्यान नमः॥६॥

ह्र्द्यादी षडंग न्यास :-

ॐ ह्रां ह्रदयाय नमः॥१॥
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा॥२॥
ॐ हु शिकय वस्ट॥३॥
ॐ ह्रे कवचाय हु॥४॥
ॐ ह्रों नेत्र त्रयाय वौष्ठ॥५॥
ॐ ह्र: अस्त्रयाय फट॥६॥

ध्यान मंत्र :-

उध्द्रीनधृति मिन्दूकिरीट तुंगकुंचा त्रय युक्तां॥
स्मेर मुखी वर्दंकुश पासा भीती करान प्रभ्जे भुव्नेशिम॥

पीठ पूजा करके यन्त्र की स्थापना करे ३२ लाख जप करे

5. श्री त्रीपुर भैरवी तंत्र

मंत्र :-

 हसे हसकरी हसे॥

विनियोग :-

अस्य त्रीपुर भैरवी मंत्रस्य दक्षिणामूर्तिऋषि :॥

पंक्तिछंद :

त्रीपुर भैरवी देवता।
ऐ बीजं।
ह्रीं शक्ति:।
क्लीं कीलकम।
मम अभीष्ट सिध्ये जपे विनियोग:।

ऋषियादी न्यास :-

ॐ दक्षिणामूर्तिऋषिये नमः शिरसी॥१॥
पंक्तिश्छंद्से नमः मुखे॥२॥
श्री त्रीपुर भैरवी देवताये नमः हृदि॥३॥
ऐ बिजय नमः गृह्ये॥४॥
ह्रीं शक्तिए नमः पादयो॥५॥
क्लीं किलकाय नमः सर्वांगे॥६॥

करन्यास :-

हसरं अन्गुष्ठ्भ्याँ नमः॥१॥
हसरी तर्जनीभ्यां नमः॥२॥
हसरं मध्यमाभ्यां नमः॥३॥
हसरे अनामिकाभ्यां नमः॥४॥
ह्स्रो कनिष्ठिभ्यान नमः॥५॥
हसर: करतल करपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥

ह्र्द्यादी न्यास :-

हसरं ह्रदयाय नमः॥१॥
हसरी शिरसे स्वाहा॥२॥
ह्सुर शिखाये वषत॥३॥
हसरे कवचाय हूँ॥४॥
हसरो नेत्र त्रयाय वौष्ट॥५॥
हसर: अस्त्राय फट॥६॥

ध्यान मंत्र :-

उधाभ्द्रनु सहस्त्र क्रांति मरूं क्षोमा शिरो मलिका रक्तालिप्त पयोधारण जप परं विधयाँभीती वरम॥
हस्ताब्जेद्रधती त्रिनेलविल्सद्कत्रर्विंद त्रीय देवी बर्ध हिमांसु रत्ना मुकुता' वन्दे सुमंद स्मिताम॥

इस मंत्र के २४ लाख जप करे

6. श्री छिन्नामस्ता तंत्र

मंत्र :-

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्र वैरोच्निये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा॥

विनियोग :-

अस्य शिर्श्छिन्ना मंत्रस्य भैरव ऋषि :॥
सम्राट छंद:॥
छिन्नमस्ता देवता॥
ह्रींकार ड्रय बीजं॥
स्वाहा शक्ति:॥
अभिस्ट सिध्ये जपे विनियोग :॥

ऋषियादी न्यास :-

ॐ भैरव ऋषिये नमः शिरसी॥१॥
सम्राट छन्दसे नमः मुखे॥२॥
छिन्नमस्ता देवताये नमः ह्रदये॥३॥
ह्रीं ह्रीं बीजाय नमो गृह्ये॥४॥
स्वाहा शक्तिए नमः पादयो:॥५॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥६॥

करन्यास :-

ॐ आं खड्गाय स्वाहा अन्गुस्थ्यो :॥१॥
ॐ इं सुखदगाय स्वाहा तर्जन्यो:॥२॥
ॐ ऊँ वज्राय स्वाहा माधयमो :॥३॥
ॐ ऐ पाशाय स्वाहा अनामिक्यो :॥४॥
ॐ औ अंकुशाय स्वाहा कनिष्ठक्यों :॥५॥
ॐ अ: सुरक्षरक्ष ह्रीं ह्रीं स्वाहा करतलकर पृस्थयो:॥६॥

ह्र्दयादी षडंग न्यास :-

ॐ आं खड्गाय ह्रदयाय नमः स्वाहा॥१॥
ॐ इं सुखाड्गाय शिरसे स्वाहा॥२॥
ॐ ऊँ वज्राय शिखाये वष्ट स्वाहा॥३॥
ॐ ऐ पाशाय कवचाय हूँ स्वाहा॥४॥
ॐ औ अंकुशाय नेत्र त्रयाय वौशतस्वाहा॥५॥
ॐ अ: सुरक्षरक्ष ह्रीं ह्रीं अस्त्राय फट स्वाहा॥६॥

व्यापक न्यास :-

ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्रवेरोच्नीय ह्रींह्रीं फट स्वाहा मस्तकादी पाद पर्यतम॥१॥
ॐ श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऐ वज्रवेरोच्निये ह्रीं ह्रीं फट स्वाहा पादादी मस्त्कानतम॥२॥

ये न्यास तिन बार करे

7. श्री धूमावती तंत्र

मंत्र :

(१) धूं धूं धूमावती स्वाहा॥
(२)धूं धूं धूमावती ठ: ठ:॥

अस्य धूमावती मंत्रस्य पिप्पलाद ऋषि:।

निच्चुश्छंद :-

जयेष्ठा देवता।
धूं बुजम।
स्वाहा शक्ति :।
धूमावती कीलकम।
मम अभीष्ट सिध्ध्यर्ते जपे विनियोग :।

ऋषियादी न्यास :-

ॐ पिप्पलाद ऋषिये नमः शिरसी॥१॥
निवृच्छंद्से नमः मुखे॥२॥
जयेष्ठा देवताये नमः हृदि॥३॥
धूं बीजाय नमः गृह्ये॥४॥
स्वाहा शक्तये नमः पादयो॥५॥
धूमावती किलकाय नमः नभौ॥६॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥७॥

करन्यास :-

ॐ धूं धूं अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥
ॐ धूं तर्जनीभ्यां नमः॥२॥
ॐ मां मध्यमाभ्यां नमः॥३॥
ॐ वं अनामिकाभ्यां नमः॥४॥
ॐ तरीं कनिष्ठाकभ्यान नमः॥५॥
ॐ स्वाहा करतल करपृष्ठाभ्यां नमः॥६॥

ह्र्द्यादी न्यास :-

ॐ धूं धूं ह्द्याय नमः॥१॥
ॐ धूं शिरसे स्वाहा॥२॥
ॐ मां शिखाये वष्ट॥३॥
ॐ वं कवचाय ह्रुम॥४॥
ॐ ति नेत्र त्रयाय वौषत॥५॥
ॐ स्वाहा अस्त्रयाय फट॥६॥

ध्यान मंत्र :-

अत्तुय्च्चा मलिना बराखिलजनोद्रेगा वह दुम्रण। रुक्षाक्षीत्रित्या विशालदशना सुप्योर्दायी चंचला।
प्रस्वेदाम्बुचिता स्रुधाकुल तनु: कृष्णतिरुक्षा प्रभा धयेय मुक्त कचा सदाप्रिय कलि धूमावती मन्त्रिणा॥

पूजा के बाद एक लाख जप करे

8. श्री बगलामुखी तंत्र

शत्रु स्तंभन के प्रयोग में बगलामुखी तंत्र से बड़ा कोई तंत्र नहीं है

मंत्र :-

ॐ ह्रीं बगलामुखी सर्व दुष्टाना वाचं मुखं पदं स्तंभय जिह्वा किलय बुध्धि विनाशय ह्रीं ॐ स्वाहा॥

संकल्प मंत्र :-

 मम श्री बगलामुखी अमुक मंत्र शिध्ध्य्ठे श्री बगलामुखी प्रसदार्थम अमुक संख्या परिमित जप अहं करिष्ये॥

विनियोग :-

ॐ अस्य श्री बगलामुखी मंत्रस्य नारद ऋषि :॥

ब्रुहतिछंद :॥

बगलामुखी देवता॥

ह्रीं बीजं॥

स्वाहा शक्ति :॥

ममाखिल्वाप्त्ये जपे विनियोग :॥

ऋषियादी न्यास :-

ॐ नारद ऋषिये नमः शिरसी॥१।

ब्रुहतिच्छान्द्से नमः मुखे॥२॥

बागला देवताये नमः हृदि॥३॥

ह्रीं बीजाय नमः गृह्ये॥४॥

स्वाहा शक्तये नमः पादयो :॥५॥

विनियोगाय नमः सर्वांगे॥६॥

करन्यास :-

ॐ ह्रीं अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥

बगलामुखी तर्जनीभ्यां नमः॥२॥

सर्व दुष्ठाना मध्यमाभ्यां नमः॥३॥

वाचं मुखं पदं स्तंभय अनामिकाभ्यां नमः॥४।

जिह्वा किलय कनिष्ठाभ्यान नमः॥५॥

बुध्धि विनाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा करतलकर प्रुष्ठाभ्यान नमः॥६॥

ह्र्द्यादी न्यास :-

ॐ ह्रीं ह्द्याय नमः॥१॥

बगलामुखी शिरसे स्वाहा॥२॥

सर्वदुश्ताना शिखाये वष्ट॥३॥

वाचं मुखं पदं स्तंभय कवचाय हूम॥४॥

जिह्वा किलय नेत्र त्रयाय वौशत॥५॥

बुध्धि विनाशाय ह्रीं ॐ स्वाहा अस्त्र्याय फट॥६॥

9. श्री मातंगी तंत्र

मंत्र :-

 ॐ ह्रीं ऐ श्री नमो भगवती उचिष्ठ चान्डाली श्री मतंगेस्वरी सर्वजन वन्श्कारी स्वाहा॥

विनियोग :-

अस्य मातंगी मंत्रस्य मातंग ऋषि:॥

अनुश्तुश्छंद :॥

मातंगी देवता॥

ममा भिष्ट सिध्धयार्थे जपे विनियोग :॥

ऋषियादी न्यास :-

ॐ मातंग ऋषिये नमः शिरसी॥१॥

अनुष्टुप छन्दसे नमः मुखे॥२॥

मातंगी देवताये नमः हृदि॥३॥

विनियोगाय नमः सर्वांगे॥४॥

करन्यास :-

ॐ ह्रीं ऐ श्री अंगुष्ठाभ्यां नमः॥१॥

नमो भगवती तर्जनीभ्यां नमः॥२॥

उचिष्ठ चान्डाली मध्यमाभ्यां नमः॥३॥

श्री मतंगेस्वरी अनामिकाभ्यां नमः॥४॥

सर्वजन वंश करी कनिश्तिकभ्यान नमः॥५॥

स्वाहा करतल कर्प्रुष्ठाभ्यान नमः॥६॥

ह्र्द्यादी षडंग न्यास :-

ॐ ह्रीं ऐ श्रीं ह्रदयाय नमः॥१॥

नमो भगवती शिरसे स्वाहा॥२॥

उचिष्ठ चान्डाली शिखाये वष्ट॥३॥

श्री मतंगेस्वरी कवचाय हूम॥४॥

सर्वजनवशंकरी नेत्र त्रयाय वौष्ट॥५॥

स्वाहा अस्त्रयाय फट॥६॥

10. श्री कमलात्मिका ( लक्ष्मी ) तंत्र

मंत्र :-

" श्री "

विनियोग :-

अस्य कमला मंत्रस्य ब्रुगुऋषि :॥

निवृच्छंद :

श्री लक्ष्मी देवता॥
मम धनाप्त्ये जपे विनियोग:॥

ऋषियादी न्यास :-

भृगुऋषिये नमः शिरसी॥१॥
निवृच्छंद्से नमो मुखे॥२॥
श्री लक्ष्मी देवताये नमो हृदि॥३॥
विनियोगाय नमः सर्वांगे॥४॥

करन्यास :-

ॐ श्रान अन्गुष्ठ्भ्याँ नमः॥१॥
ॐ श्रीं तर्जनीभ्यां नमः॥२॥
ॐ श्रू मध्यमाभ्यां नमः॥३॥
ॐ श्रे अनामिकाभ्यां नमः॥४॥
ॐ श्रो कनिष्ठाभ्यान नमः॥५॥
ॐ श्र: करतलकर प्रुष्ठान्भ्यान नमः॥६॥

ह्द्यादी न्यास :-

ॐ श्रान ह्द्याय नमः॥१॥
ॐ श्रीं शिरसे नमः॥२॥
ॐ श्रू शिखाये वषत॥३॥
ॐ श्रे कवचाय हूँ॥४॥
ॐ श्रों नेत्र त्रयाय वौष्ट॥५॥
ॐ श्र: अस्त्र्याय फट॥६॥

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